क्यों है बहुत मुश्किल है चंद्रमा पर स्पेस स्टेशन का निर्माण
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा अब अंतरिक्ष में लंबे अभियानों को ध्यान में रखते हुए काम करेगी
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा (NASA) अब अंतरिक्ष में लंबे अभियानों को ध्यान में रखते हुए काम करेगी. यह फैसला उसने तब से लिया जब से वह मंगल पर अपने मानव अभियानों की तैयारी कर रही है. इसी को ध्यान में रख कर नासा ने अपने आर्टिमिस अभियान का नियोजन किया है. अंतरिक्ष में भी इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (Space Station) का खासा महत्व है. चीन का अपना स्पेस स्टेशन भी तैयार है और रूस भी पांच साल में खुद का स्पेस स्टेशन लॉन्च कर सकता है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर स्पेस एजेंसियां चंद्रमा (Moon) पर स्पेस स्टेशन स्थापित क्यों नहीं कर रही हैं.
उपयोगी हो सकता है स्टेशन
चंद्रमा पर स्पेस स्टेशन बहुत उपयोगी हो सकता है. यह भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए बहुत उपयोगी हो सकता है. यह पृथ्वी से दूर आने जाने वाली यात्राओं के उपयोगी पड़ाव हो सकता है जिसमें सौरमंडल या मिल्की वे गैलेक्सी में ही सुदूर यात्रा का मकसद हो. इतना ही नहीं हम चंद्रमा पर भी ज्यादा लोग नहीं भेज सकते हैं 1969 से लेकर 1972 के बीच 12 लोग ही चंद्रमा पर जा सके और इसके बाद किसी तरह का प्रयास ही नहीं किया गया.
इतना शक्तिशाली रॉकेट नहीं
चंद्रमा पर भेजे गए यात्रियों के लिए उपयोग में लाया गया रॉकेट सैटर्न 5 बहुत ही शक्तिशाली था जिसका अब उत्पादन ही नहीं होता है. इसका अर्थ यही हुआ है कि फिलहाल हमारे पास दुनिया में कहीं भी इतना शक्तिशाली रॉकेट नहीं है जो लोगों को चंद्रमा तक पहुंचा सके, स्पेस स्टेशन तो बहुत दूर की बात है.
निर्माण होने लगा है
अब इस तरह के शक्तिशाली रॉकेट का निर्माण शुरू हो गया है. स्पेस एक्स कंपनी ऐसी क्षमता वाले शक्तिशाली रॉकेट का निर्माण कर रहा है जो चंद्रमा पर लोगों को पहुंचा सके. नासा भी अपने आर्टिमिस अभियान के लिए खास एसएलएस रॉकेट तैयार कर रहा है जिसका परीक्षण इसी साल होगा जिससे सा 2025 के आसपास वह आर्टिमिस अभियान के तहत अलगा पुरुष और एक महिला को चंद्रमा पर भेजेगा.
छोटी यात्रा और स्पेस स्टेशन में फर्क
इसके बाद भी छोटी यात्राओं और स्पेस स्टेशन बनाने में बहुत बड़ा फर्क है और इसलिए चंद्रमा पर स्पेस स्टेशन बनाना बहुत मुश्किल है. एक तरीका यह है कि पृथ्वी पर ही चंद्रमा के स्पेस स्टेशन के हिस्से तैयार किए जाएं और उन्हें चंद्रमा पर ले जा कर जोड़ दिया जाए. यह इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की तरह ही होगा. जिसके हिस्सों को अंतरिक्ष यात्रियों ने जोड़ा था.
दूरी का भी अंतर
फिलहाल इंटरनेशनल स्पेस सटेशन पृथ्वी से 400 किलोमीटर दूर है जबकि चंद्रमा की दूरी 384 हजार किलोमीटर की दूरी है. एक चंद्रमा की यात्रा तीन दिन का समय लेगी और इसके लिए बहुत ही ज्यादा मात्रा में ईंधन की जरूरत होगी जिससे पृथ्वी पर जलवायु समस्याएं बढ़ सकती हैं. इससे बेहतर है कि चंद्रमा पर ही उपलब्ध सामग्री से ही जितना हो सके बेस बनाया जाए. इसके लिए लूनार कंक्रीट का परीक्षण भी चल रहा है.
और भी जरूरतें
पृथ्वी पर कंक्रीट के लिए रेत गिट्टी, सीमेंट और पानी की जरूरत होती है और इनमें से कुछ भी चंद्रमा पर नहीं मिलता है. फिर भी चंद्रमा पर धूल और सल्फर है इन गला कर मिलाया जाए तो ठंडा होने पर पृथ्वी कई पदार्थों से ठोस पदार्थ बन जाता है. वहीं स्पेस स्टेशन पर रुकने वाले यात्रियों की जरूरतों जैसे खाना, बिजली, सांस लेने के लिए ऊर्जा आदि के बारे में भी सोचना होगा. चंद्रमा पर संभव होने वाली खाद्य उत्पादन की तकनीकों पर काम चल रहा है.
चंद्रमा पर बिजली उत्पादन पर भी गंभीरता से प्रयोग चल रहे हैं. सौर ऊर्जा केवल 14 दिन ही उपलब्ध रह सकेगा क्यों वहां सूर्य की रोशनी 14 दिन ही रह पाती है. इसका समाधान केवल ध्रुवों पर ही स्टेशन बनाने से हो सकता है जहां लगातार सौर ऊर्जा मिल सकती है. इसके अलावा चंद्रमा की सतह की जगह उसका चक्कर लगाने वाला सैटेलाइट भी एक स्पेस स्टेशन की तरह विकसित किया गया जा सकता है. नासा इसकी योजना बना भी रहा है.