क्या होते हैं पृथ्वी की निचली कक्षा के सैटेलाइट

सैटेलाइट (Satellite) की दुनिया में कई तरह के कृत्रिम उपग्रह (Artificial Satellite) होते हैं. इनकी स्थिति अलग अलग होने के साथ ही इनके उद्देश्य भी अलग अलग होते हैं. आज इन उपग्रहों ने दुनिया भर के संचार तंत्र में क्रांति ला दी है.

Update: 2022-09-01 02:04 GMT

सैटेलाइट (Satellite) की दुनिया में कई तरह के कृत्रिम उपग्रह (Artificial Satellite) होते हैं. इनकी स्थिति अलग अलग होने के साथ ही इनके उद्देश्य भी अलग अलग होते हैं. आज इन उपग्रहों ने दुनिया भर के संचार तंत्र में क्रांति ला दी है. पिछले साठ सालों से उपग्रहों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है जिसमें पिछले चार पांच सालों में तो उपग्रहों की संख्या में बहुत ही ज्यादा तेजी देखने के मिली है. हर सैटेलाइट की पृथ्वी से दूरी के अलग अलग फायदे नुकसान होते हैं मुख्यतः भूस्थिर कक्षा, मध्यम कक्षा और निचली कक्षा के सैटेलाइट (Lower Earth Orbit Satellite) में से निचली कक्षा के सैटेलाइट ज्यादा उपयोग में लिए जाते हैं.

पृथ्वी की निचली कक्षा के सैटेलाइट (Lower Earth Orbit Satellite) धरती की तुलना में स्थिर नहीं रहते हैं बल्कि अपनी कक्षा में तेजी से घूमते रहे हैं. पृथ्वी (Earth) के धरातल से 2000 किलोमटीर की ऊंचाई पर काम करने वाले इन सैटेलाइट का उपयोग दूरसंचार, तस्वीरें लेने, जासूसी जैसे कामों के लिए किया जाता है. इनमें प्रमुख रूप से हबल स्पेस टेलीस्कोप और इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) जैसे सैटेलाइट भी शामिल हैं. 

पृथ्वी की निचली कक्षा के सैटेलाइट (Lower Earth Orbit Satellite) में से अधिकांश इसी वजह से है कि वे पृथ्वी (Earth) के ज्यादा से ज्यादा करीब रह सकते हैं. वे मानक रेडियो तरंगों का उपयोग करते हैं. सामान्यतः अधिकांश व्यवसायिक सैटेलाइट चार आवृत्ति बैंड- कू बैंड, का बैंड, सी बैंड और एल बैंड में से एक बैंड पर काम करते हैं. निचली कक्षा के सैटेलाइट एल बैंड (L Band Frequency) का इस्तेमाल करते हैं. यह बैंड इन सैटेलाइट के अनुप्रयोगों के लिए आदर्श होता है. इसमें लंबी दूरी के विमानन संचार शामिल हैं. लेकिन वे दूसरे बैंड की तरह शक्तिशाली नहीं हैं और उन्हें पाने के लिए जमीन पर छोटे उपकरणों की जरूरत होती है. इनमें मौसम और वायुमडंल के कारण होने वाले व्यवधान की संभावना कम होती है इसलिए संचार तंत्रों के लिए यह आदर्श बैंड होता है. 

निचली कक्षा के सैटेलाइट (Lower Earth Orbit Satellite) धरती की सापेक्ष स्थिर नहीं रहते हैं बल्कि ये बहुत ही तेजी से पृथ्वी (Earth) का चक्कर लगाते हैं. आमतौर पर ये सैटेलाइट पृथ्वी का एक चक्कर हर दो घंटे में लगा लेते हैं. इसी वजह से केवल एक ही सैटेलाइट (Satellite) से काम नहीं चलता है, निचली कक्षा के सैटेलाइट का पूरा समूह होता है जिससे उनसे लगातार संकेत मिलते रहें. एक रिसीवर के ऊपर से एक सैटेलाइट दूर जाता है तो ऊपर दूसरा सैटेलाइट उसका स्थान ले लेता है. 

किसी भी अन्य तकनीक की तरह पृथ्वी की निचली कक्षा के सैटेलाइट (Lower Earth Orbit Satellite) संचार के साथ भी कई समस्याएं हैं. इन सैटेलाइट का समूह (Satellite Constellation) काफी जटिलता लिए होता है. बीसियों या सैकड़ों सैटेलाइट का संचालन आसान नहीं होता है. इनकी निगरानी के लिए एक उपकरणों का एक जटिल तंत्र काम करता है. इतना ही नहीं इनका संयोजन भी आसान नहीं होता है. इसके अलावा इनके बंद होने के बाद ये और इनके टुकड़े अवशेष के रूप में अपनी कक्षा में ही रह कर अन्य सैटेलाइट के लिए खतरा बन जाते हैं. अभी पृथ्वी की निचली कक्षा में लाखों टुकड़े घूम रहे हैं. 


Tags:    

Similar News

-->