क्या दशकों पहले दिखा रहस्यमी पिंड वास्तव में था नौवां ग्रह? जानिए सब कुछ

पृथ्वी के सौरमंडल (Solar system) का नौवां ग्रह (Planet 9) एक रहस्यमयी ग्रह है

Update: 2021-11-16 16:21 GMT

पृथ्वी के सौरमंडल (Solar system) का नौवां ग्रह (Planet 9) एक रहस्यमयी ग्रह है. अभी तक इसकी खोज नहीं हुई है, इस लिहाज से अभी इस तरह का कोई पिंड नहीं है. लेकिन कई अवधारणाओं में यह सिद्ध करने का प्रयास किया गया है कि सौरमंडल का नौवां ग्रह मौजूद है और यहां तक कि इसके अस्तित्व का अब तक पता क्यों नहीं चल सका इसकी व्याख्या भी दी गई है. पिछले पांच सालों से यह अनोखा सवाल अपने जवाब तलाश रहा है कि क्या कोई विशाल ग्रह है सौरमंडल में बहुत दूरी पर है और उसकी कक्षा करीब 20 हजार साल तक की है. नए अध्ययनमें बताया गया है कि इस रहस्मयी पिंड के अस्तित्व के संकेत क्या हो सकते हैं.

पुराने आंकड़े हो सकते हैं उपयोगी
यूके के इंपीरियल कॉलेज ऑफ लंदन के खगोलविद माइकल रॉवेन रॉबिनसन ने 1983 में इंफ्रारेड एस्ट्रोनॉमिकल सैटेलाइट के जमा किए आंकड़ों का विश्लेषण किया और पाया कि एक बिंदु स्रोत से मिले संकेत नौवें ग्रह के संकेत हो सकते हैं. उनके मुताबिक यह वास्तविक पहचान तो शायद ना हो, लेकिन इस संभावना का यह मतलब यह जरूर है कि इसे ऐसे मॉडल के तौर पर उपयोग में लाया जा सकता है जो बताएगा कि अब वह ग्रह कहां हैं और उसे कहीं पर उसकी उपस्थिति की पुष्टि स्वीकार करने या खारिज करने के लिए उपयोग भी किया जा सकता है.
गुणवत्ता की समस्या
रॉबिनसन ने लिखा है कि IRAS से मिले आंकड़ों की गुणवत्ता खराब हो सकती है. सर्वे की सीमाओं और सुदूर अंतरिक्ष मिले बहुत कठिन हालातों वाले इंफ्रारेड पड़ताल शायद बहुत उत्साहजनक ना हो, नौवें ग्रह की अवधारणा में बड़ी रुचि के चलते यह जांचना बहुत जरूरी है कि क्या इस तरह के पैमानों वाला पिंड सामान्य तौर पर दिखने वाल ग्रहों से कितने अलग है.
2016 में भी मिले थे नौवें ग्रह के अलग तरह के संकेत
इस छिपे हुए ग्रह के बारे में दशकों से चर्चा हैं. साल 2016 में इसका जिक्र तब सुर्खियों में आया जब इसके पाए जाने के नए प्रमाण प्रस्तुत किए गए. तब कैलटेक के खगोलविद माइक ब्राउन और कोन्स्टान्टिन बैटिजिन ने पाया कि सौरमंडल के काइपर घेरे के कुछ छोटे पिंडों की कक्षा असामान्य थी. जिससे ऐसा लग रहा था कि वे किसी विशाल ग्रह के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में हैं.
विवादास्पद थे नतीजे
लेकिन उस पड़ताल के नतीजों में काफी जटिलताएं थीं. उस ग्रह का भार पृथ्वी से 10 गुना था. उसकी दूरी प्लूटो-सूर्य की दूरी की 10 से 20 गुना ज्यादा थी. यह इतना छोटा, दूर और ठंडा था कि इससे सूर्य की रोशनी प्रतिबिम्बित नहीं हो रही था. इसकी स्थिति भी इतने बड़े आकाश में पता नहीं चल सकती थी. इससे यह मुद्दा विवादास्पद ही रहा. लेकिन IRAS के 1983 के दस महीने के यात्रा में 96 प्रतिशत आकाश का इंफ्रारेड सर्वे हो गया. इसकी वेवलेंथ कम थी, लेकिन इससे नौवें ग्रह जैसे पिंड पकड़े जा सकते थे.
खोज निकाला एक उम्मीदवार
यही सोच कर रॉवेन-रॉबिनसन ने फैसला किया किया इसके आंकड़ों का फिर से विश्लेषण किया जाए. उन्होंने ढाई लाख स्रोतों में से केवल तीन ही स्रोतों को नौंवे ग्रह का उम्मीदवार माना जो जून जुलाई सितंबर 1983 के सैटेलाइट के आंकड़ों से एक का पता चला. लेकिन यह इलाका ऐसी खगोलीय जगह पर है जो इंफ्रारेड तरंगों से चमकने वाले सुदूर बादलों से बहुत प्रभावित रहता है इसलिए यह भी संभव है कि ये संकेत केवल बादलों से निकली नॉइज हों.
अगर यह नौवां ग्रह ही हुआ तो
रॉवेन-रॉबिनसन ने यह भी पाया कि दूसरे अति संवेदनशील सर्वे, पैनोरामिक सर्वे टेलीस्कोप एंड रैपिड रिस्पॉन्स सिस्टम (Pan-STARRS) जो 2008 से सक्रिय है, इस उम्मीदवार को पहचानने में नाकाम रहा था. लेकिन उनका कहना है कि अगर इसउम्मीदवार पिंड को असली मान लिया जाए तो नौवें ग्रह के बारे में काफी कुछ पता चल सकता है. ऐसे में वह पृथ्वी से पांच गुना भारी होगा और उसकी दूरी 225 खगोलीय ईकाई या प्लूटो सूर्य की दूरी के 5.625 गुना ही होगी.
भारतीय वैज्ञानिकों का बनाया नया एल्गोरिदम, बाह्यग्रहों की देगा सटीक जानकारी
इस ग्रह की गति भी इसकी कक्षा का भी अंदाजा लगाया जा सकता है. जिससे यह पता लगेगा कि हमें इसे पैन स्टार्रस जैसे आंकड़ों में कहां देखना चाहिए. इस तरह के पिंड के लिए गति अध्ययनों की जरूरत है. IRAS के आंकड़ों की गुणवत्ता बहुत उच्च की नहीं है. फिर भी रेडियो और अन्य अवलोकन इसकी सच्चाई के बारे में बता सकते हैं. यह शोधपत्र मंथली नोटिसेस ऑफ द रॉयल एस्ट्रोनामिकल सोसाइटी में प्रकाशन के लिए स्वीकार हो गया है.


Tags:    

Similar News

-->