आज रात दिखेगा अद्भुत नजारा! सूर्य से 14 करोड़ किलो की दूरी तय कर आ रहा तूफान

सूरज से करीब 14 करोड़ 70 लाख किमी की दूरी तय करके सौर तूफान आज धरती से टकरा सकता है।

Update: 2021-01-25 15:41 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। वॉशिंगटन: सूरज से करीब 14 करोड़ 70 लाख किमी की दूरी तय करके सौर तूफान आज धरती से टकरा सकता है। अंतर‍िक्ष वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है कि सौर तूफान के पार्टिकल धरती की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं और आज धरती से टकरा सकते हैं। इससे उत्‍तरी ध्रुव पर 25 जनवरी को रात में अरुणोदय का नजारा देखने को मिल सकता है। इस दौरान पूरा आकाश हरी और नीली रोशनी से रंग सकता है।


दरअसल, नए साल की सूरज पर शुरुआती 'धमाकेदार' हुई थी। 2 जनवरी को इस सितारे से ऊर्जा के जोरदार विस्फोट हुए हैं और अब इसका असर धरती पर दिखने जा रहा है। अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA की सोलर डायनमिक्स ऑब्जर्वेटरी ने विस्फोट के दौरान निकले पार्टिकल्स को स्पेस में जाते हुए फिल्म किया है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि सूरज की कोर के अंदर मैग्नेटिक फिलामेंट बनने के कारण सूरज के दक्षिणी गोलार्ध में ये विस्फोट हुए हैं।


पार्टिकल धरती से टकराते हैं तो खूबसूरत नजारे देखने को मिलेंगे
इससे सोलर सिस्टम में दो कोरोनल मास इजेक्शन (CME) हुए हैं जिनमें से एक धीमी गति पर है और दूसरा थोड़ा तेज। इनके एक-दूसरे से मिलने पर इनकी तीव्रता बढ़ सकती है। ऐस्ट्रॉनमी साइट स्पेस वेदर के मुताबिक ये पार्टिकल धरती पर पहुंच सकते हैं। ऐसे में यह जानना दिलचस्प है कि इसका धरती पर असर क्या होगा। अगर ये पार्टिकल धरती से टकराते हैं तो खूबसूरत नजारे देखने को मिलेंगे- उत्तरी या दक्षिणी लाइट्स यानी ऑरोरा (Aurora) के रूप में।

दिल थामने को मजबूर कर देने वाले ऑरोरा तभी पैदा होता हैं जब सोलर पार्टिकल धरती के वायुमंडल से टकराते हैं। हालांकि, रिसर्चर्स का कहना है कि इसके दूसरे असर भी हो सकते हैं। यूं तो धरती का चुबंकीय क्षेत्र इंसानों को सूरज से आने वाले खतरनाक रेडिएशन से बचाता है लेकिन सौर्य तूफानों का असर सैटलाइट पर आधारित टेक्नॉलजी पर हो सकता है। सोलर विंड की वजह से धरती का बाहरी वायुमंडल गरमा सकता है जिससे सैटलाइट्स पर असर हो सकता है। इससे जीपीएस नैविगेशन, मोबाइल फोन सिग्नल और सैटलाइट टीवी में रुकावट पैदा हो सकती है। पावर लाइन्स में करंट तेज हो सकता है जिससे ट्रांसफॉर्मर भी उड़ सकते हैं। हालांकि, आमतौर पर ऐसा कम ही होता है। आखिरी बार इतना शक्तिशाली तूफान 1859 में आया था जब यूरोप में टेलिग्राफ सिस्टम बंद हो गया था।



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