खोज का अहम पड़ाव उस वक्‍त आया, जब रूस ने दुनिया का पहला उपग्रह सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में भेजा

वैज्ञानिक मानते हैं कि अंतरिक्ष के रहस्‍यों के बारे में हम आज भी बेहद कम ही जान पाए हैं।

Update: 2020-10-04 11:31 GMT
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| वैज्ञानिक मानते हैं कि अंतरिक्ष के रहस्‍यों के बारे में हम आज भी बेहद कम ही जान पाए हैं। इसके कई रहस्‍यों को तलाशा जाना और उनके जवाबों को तलाशना आज भी वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी पहेली और चुनौती बना हुआ है। अंतरिक्ष को लेकर कई सारी बातों को हजारों वर्ष पहले लिखित दस्‍तावेजों के रूप में बताया गया था। भारत भी उन देशों में शामिल है जहां पर हजारों वर्ष पहले खगोलिय घटनाओं के बारे में बताया गया था। अंतरिक्ष में खोज का अहम पड़ाव उस वक्‍त आया था जब रूस ने दुनिया का पहला उपग्रह सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में भेजा था।

4 अक्‍टूबर 1957 को रूस ने पहली बार ये कारनामा कर पूरी दुनिया को हैरत में डाल दिया था। अमेरिका अंतरिक्ष में जिस कदम को बढ़ाकर दुनिया में नया कीर्तिमान बनाना चाहता था लेकिन इस दौड़ रूस ने बाजी मारी। रूस हमेशा से ही अंतरिक्ष कार्यक्रम में बाजी मारता रहा है। आज भी अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा अपने स्‍पेस प्रोग्राम के लिए रूस के सुयोज कैप्‍सूल का इस्‍तेमाल करता रहा है। रूस ने अपनी दुनिया के इस पहले उपग्रह को स्‍पूतनिक का नाम दिया था। इसी नाम पर रूस ने अपनी कोविड-19 के इलाज में इस्‍तेमाल होने वाली वैक्‍सीन को बाजार में उतारा है।

रूस के इस उपग्रह का वजन 83.5 किग्रा था। इसको सफलतापूर्वक धरती से 900 किलोमीटर ऊपर स्‍थापित किया गया था। ये पूरी दुनिया के लिए अहम पड़ाव था। पृथ्वी की परिक्रमा के दौरान स्पुतनिक की गति 29,000 किलोमीटर प्रतिघंटा थी। उपग्रह 96 मिनट में धरती का एक चक्कर पूरा कर रहा था। इस उपग्रह में चार एंटीना लगे थे। हालांकि जब वैज्ञानिकों ने इसकी टेस्टिंग की थी और इसको लॉन्‍च किया था तब उन्‍हें इस बात की कम ही उम्‍मीद थी कि ये सेटेलाइट सिग्‍नल भेजेगा। लेकिन यहां पर उन्‍हें उनकी सोच से कहीं ज्‍यादा बेहतर रिजल्‍ट मिले थे। स्‍पूतनिक ने अपनी कक्षा में स्‍थापित होने के धरती पर रेडियो सिग्नल भेजे। इससे पहले वैज्ञानिकों को लगता था कि जब ये सेटेलाइट धरती की कक्षा से बाहर निकलेगा तो वहां के तापमान से ये नष्‍ट हो जाएगा। लेकिन इस उपग्रह ने कमाल का काम किया और 22 दिनों तक सिग्‍नल भेजता रहा। 26 अक्टूबर 1957 को इस उपग्रह की बैटरी खत्म होने की वजह से स्‍पूतनिक का सफर खत्‍म हो गया। जो सिग्‍नल इस उपग्रह से मिले थे उनपर पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों ने शोध किया था।

स्‍पूतनिक के बाद रूस ने नवंबर 1957 में स्‍पूतनिक-2 भेजा था। इस उपग्रह में रूस ने एक कुत्ते, 'लाइका', को अंतरिक्ष में भेजा था। इसका मकसद ये पता लगाना था कि यदि इंसान को वहां भेजा गया तो इसके क्‍या परिणाम होंगे। रूस ने 1961 में फिर अंतरिक्ष में बड़ा कदम रखा और यूरी गागरिन अंतरिक्ष में जाने वाले दुनिया के पहले व्‍यक्ति बने थे। भारत ने अपनी पहली सैटेलाइट अप्रैल 1971 में छोड़ी. इसका नाम आर्यभट्ट था। रूस ने अंतरिक्ष में जो कमाल किया था उसकी बदौलत ही आने वाले वर्षों में कई उपग्रह सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में छोड़े गए। आज हमारी जिंदगी काफी कुछ इन्‍हीं उपग्रहों पर टिकी है। ट्रेन से लेकर हवाई जहाज, समुद्र में चलने वाले शिप और सबमरीन, दुनिया की सभी सेनाओं के अलावा हमारे मोबाइल फोन, रेडियो टीवी सभी कुछ इन पर ही टिके हैं। आज दुनिया का संचालन करने वाले हजारों उपग्रह अंतरिक्ष में चक्‍कर लगा रहे हैं। इनके बिना भविष्‍य की कल्‍पना करना मुश्किल है।


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