पानी पर हुए अध्ययन से खुलासा- आकाशगंगा में भरमार है पृथ्वी जैसे ग्रह

रनेपृथ्वी (Earth) और उस पर जीवन की उत्पत्ति को समझने के लिए खगोलविदों की बाह्यग्रहों में बहुत दिलचस्पी होती है.

Update: 2021-02-28 07:29 GMT

रनेपृथ्वी (Earth) और उस पर जीवन की उत्पत्ति (Origin of life) को समझने के लिए खगोलविदों की बाह्यग्रहों (Exoplanets) में बहुत दिलचस्पी होती है. वे हमारे सौरमंडल (Solar System) से बाहर पृथ्वी जैसे ग्रहों (Planets) की तलाश करते रहते हैं. लेकिन ताजा अध्ययन से पता चला है कि पृथ्वी सहित ग्रहों पर उनके निर्माण की शुरुआत से ही पानी की मौजूदगी (Presence of Water) थी. इससे यह बात साफ हो गई है कि अब हमारी मिल्की वे (Milky Way) गैलेक्सी में पृथ्वी जैसे ग्रहों के पाए जाने की संभावना पहले से बहुत अधिक हो गई है.

पानी का होना है बहुत अहम
इन ग्रहों में जीवन के होने के लिए तरल पानी का होना बहुत जरूरी है. अभी तक माना जाता था कि बाह्यग्रहों में पृथ्वी की तरह पानी का होना लगभग नामुमकिन है क्योंकि यह समझा जाता है कि पृथ्वी पर अधिक मात्रा में पानी किसी क्षुद्रहग्रह के टकराने से आया है.यूनिवर्सिटी ऑफ कोपनहेगन के GLOBE इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने खुलासा किया है कि ग्रह के निर्माण के समय ही उसमें पानी मौजूद रह सकता है.

पृथ्वी मंगल और शुक्र भी बने थे ऐसे
साइंस एडवांस जर्नल में प्रकाशित अध्ययन की गणनाओं से यह भी पता चला है कि ऐसा पृथ्वी के साथ साथ शुक्र और मंगल ग्रह के लिए भी सही था. इस शोध की आगुआई करने वाले सेंटर फऑर स्टार एंड प्लैनेट फॉर्मेशन के प्रोफेसर एंडर्स जोहान्सन ने बताया, "हमारे आंकड़े यही सुझाते हैं कि पानी पृथ्वी की निर्माण के आधार तत्वों में शुरू से शामिल था."
ऐसा ही गैलेक्सी के दूसरे हिस्सों में होगा
जोहान्सन का कहना है कि चूंकि ब्रह्माण्ड में पानी के अणु बहुत ही ज्यादा पाए जाते हैं. यह पूरी संभावना है कि यह मिल्की वे गैलेक्सी के सभी ग्रहों पर लागू होना चाहिए. इस मामले में पानी मौजूदगी में निर्णायक पहलू यह है कि ग्रह अपने तारे से कितनी दूरी पर है. अपने अध्ययन के लिए जोहान्सन और उनकी टीम ने कम्प्यूटर मॉडल का उपयोग किया.

ऐसे बनी पृथ्वी
शोधकर्ताओं ने ग्रहों के निर्माण के समय के साथ ही यह भी गणना करने का प्रयास किया कि ग्रहों के निर्माण तत्व कौन से हैं. अध्ययन में पाया गया है कि बर्फ और कार्बन के मिलीमीटर के आकार के धूल के कण मिल्की वे गैलेक्सी के सभी युवा तारों के चक्कर लगा रहे थे. 4.5 अरब साल पहले सूर्य के पास ऐसे कण जुड़ कर जमा होते गए और बाद में उन्होंने पृथ्वी का आकार ले लिया.
बहुत ही कम रह गया पानी
जोहान्सन बताया कि जब पृथ्वी का भार आज के भार का एक ही प्रतिशत था उस समय उसमें बर्फ और कार्बन से भरे टुकड़े ही थे इसके पचास लाख साल बाद यह बड़ी हुई. इस दौरान तापमान भी तेजी से बढ़ा जिससे पानी उड़ने लगा और आज 70 प्रतिशत सतह पानी से ढकी होने के बाद भी पृथ्वी का 0.1 प्रतिशत ही पानी है.

एक नया सिद्धांत
जोहान्सन का सिद्धांत पेबल एक्रीशन (Pebble Accretion) कहलाता है जिसके मुताबिक ग्रह पत्थरों के छोटे-छोटे कंकणों से बनता है जो एक साथ जमा होते जाते हैं और ग्रह का आकार बढ़ता जाता है. जोहान्सन का कहना है कि पानीके अणु हमारी गैलेक्सी में हर जगह हैं. इसलिए इस बात की प्रबल संभावना है कि दूसरे ग्रह भी उसी तरह से बने होंगे जैसे पृथ्वी, मंगल और शुक्र बने थे.
शोधकर्ताओं का कहना है कि दूसरे ग्रहों पर तापमान पृथ्वी जैसे हुआ तो वहां जीवन हो सकता है, इतना ही नहीं शुरुआत में सभी ग्रहों में पानी की मात्रा भी एक सी होगी. यानि वहां महासागर के साथ महाद्वीपों की मात्रा भी समान हो सकती है. शोधकर्ताओं को अब अगली पीढ़ी के टेलीस्कोप का इंतजार है जिससे सुदूर ग्रहों के अच्छे आंकड़े मिल सकें.


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