वैज्ञानिकों ने आकाशगंगा में तीन अत्यंत विशाल ब्लैक होल का पता लगाया
भारतीय वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड के कई आकाशगंगाओं में तीन अत्यंत विशाल ब्लैक होल (Supermassive Black Holes) का पता लगाया है
भारतीय वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड के कई आकाशगंगाओं में तीन अत्यंत विशाल ब्लैक होल (Supermassive Black Holes) का पता लगाया है. ये तीनों ब्लैक होल्स एक साथ मिलकर तिगुने सक्रिय आकाशगंगा संबंधी नाभिक (गेलेक्टिक न्यूक्लियस) का निर्माण कर रहे हैं. विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय से जुड़े डीएसटी ने शुक्रवार को यह जानकारी दी. विभाग ने कहा कि यह नई खोजी गई आकाशगंगा के केंद्र में स्थित एक जटिल क्षेत्र है, जिसकी चमक सामान्य से बहुत अधिक है.
आस-पास के ब्रह्मांड में यह दुर्लभ घटना संकेत देती है कि छोटे विलय करने वाले समूह बहुसंख्यक विशालकाय ब्लैक होल का पता लगाने के लिए आदर्श प्रयोगशालाएं हैं और इस तरह की दुर्लभ घटनाओं का पता लगाने की संभावना को बढ़ाते हैं. वैज्ञानिकों का यह अध्ययन 'एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स' पत्रिका में एक रिसर्च पेपर के रूप में प्रकाशित हुआ है.
मुश्किल होता है पता लगाना
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) ने कहा, "विशालकाय ब्लैक होल्स (Black Holes) का पता लगाना मुश्किल होता है क्योंकि वे कोई प्रकाश उत्सर्जित नहीं करते हैं. लेकिन वे अपने परिवेश के साथ संपर्क में रहकर अपनी उपस्थिति प्रकट कर सकते हैं."
जब आसपास की धूल और गैस एक विशालकाय ब्लैक होल पर गिरती है, तो कुछ द्रव्यमान ब्लैक होल द्वारा निगल लिया जाता है, लेकिन इसमें से कुछ ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है और विद्युत चुम्बकीय विकिरण के रूप में उत्सर्जित होता है जिससे ब्लैक होल बहुत चमकदार दिखाई देता है.
ऐसे होती है यह परिघटना
भारतीय खगोलभौतिकी संस्थान (IIA) की टीम इसका घटना क्रम की व्याख्या करते हुए बताती है कि अगर दो आकाशगंगाएं आपस में टकराती हैं तो उनके ब्लैक होल भी अपनी गतिज ऊर्जा को आसपास की गैस में स्थानांतरित करके पास आ जाएंगे. ब्लैकहोल्स के बीच की दूरी समय के साथ तब तक घटती जाती है जब तक कि उनके बीच का अंतर एक पारसेक (3.26 प्रकाश-वर्ष) के आसपास न हो जाए.
इसके बाद दोनों ब्लैक होल तब अपनी और अधिक गतिज ऊर्जा का व्यय नहीं कर पाते हैं ताकि वे और भी करीब आ सकें और एक-दूसरे में विलीन हो सकें. इसे अंतिम पारसेक समस्या के रूप में जाना जाता है. तीसरे ब्लैक होल की उपस्थिति इस समस्या को हल कर सकती है. आपस में विलीन हो रहे दोनों ब्लैकहोल ऐसे में अपनी ऊर्जा को तीसरे ब्लैकहोल में स्थानांतरित कर सकते हैं और तब एक दूसरे के साथ विलय कर सकते हैं.
NSG 7733 एन रखा आकाशगंगा का नाम
भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के अनुसंधानकर्ताओं की टीम में शामिल ज्योति यादव, मौसमी दास और सुधांशु बर्वे ने कॉलेज डी फ्रांस के फ्रंक्वा कॉम्ब्स, चेयर गैलेक्सीज एट कॉस्मोलोजी, पेरिस के साथ, आकाशगंगा की एक ज्ञात जोड़ी, एनजीसी 7733 (NSG 7733) और एनजीसी 7734 (NSG 7734) का अध्ययन करते हुए पाया कि एनजीसी 7734 के केंद्र से असामान्य उत्सर्जन हो रहा है और एजीसी 7733 के उत्तरी हिस्से में बड़े और चमकीले पिंड दिख रहे हैं.
डीएसटी ने बताया, "वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह पिंड एनजीसी 7733 हिस्सा नहीं था, बल्कि यह उसके हिस्से के पीछे एक छोटी अलग आकाशगंगा थी. उन्होंने इस आकाशगंगा का नाम एनजीसी 7733 एन रखा है." हालांकि यह अध्ययन केवल एक ही प्रणाली पर केंद्रित है. परिणाम बताते हैं कि इस प्रकार विलीन होने वाले छोटे समूह कई महाविशाल ब्लैक होल्स का पता लगाने के लिए अपने आप में आदर्श प्रयोगशालाएं हैं.