साइंटिफिक खुलासे ने मचाई सनसनी, कहा- भूकंप आने से होता है पेड़ों का विकास

Update: 2021-10-25 09:29 GMT

भूकंप इमारतों को टुकड़ों में बांट सकते हैं. शहरों को जमीन में धंसा सकते हैं. घाटियां पैदा कर सकते हैं. लेकिन ये पेड़ों के विकास को भी बढ़ा सकते हैं. ये नए जंगल पैदा करने में मदद करते हैं. एक नई रिसर्च में यह हैरतअंगेज बात सामने आई है. जिसमें यह बताया गया है कि तेज भूकंप से पेड़ों का विकास होता है, क्योंकि ये पेड़ों की जड़ों के आसपास की मिट्टी को हिला देते हैं, जिससे वहां पर ज्यादा मात्रा में पानी पहुंचता है. इससे पेड़ों का विकास तेजी से होता है. 

यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना की एक्सपर्ट इरिना पैनीयूश्किना ने बताया कि भूकंप की वजह से जड़ों के आसपास की मिट्टी हिलने और तेजी से पानी पहुंचने की वजह से पेड़ों की कोशिकाओं में एक अंतर आता है. अगर भूकंप से पहले और बाद में पेड़ों की कोशिकाओं का अंतर देखा जाए तो आपको लकड़ी के अंदर ज्यादा घेरे दिखाई देंगे. आप इन घेरों का अध्ययन करके प्राचीन काल के भूकंपों के बारे में भी जानकारी जमा कर सकते हैं. ये घेरे पानी के तेज प्रवाह की वजह से लकड़ी की कोशिकाओं में बनते हैं.
पॉट्सडैम यूनिवर्सिटी के हाइड्रोलॉजिस्ट क्रिश्चियन मोर भूकंप और पेड़ों के विकास के संबंध को तो समझ नहीं पा रहे हैं, लेकिन साल 2010 में चिली में आए 8.8 तीव्रता के भूकंप ने उन्हें हिलाकर रख दिया. इस भूकंप से सिर्फ चिली देश ही नहीं हिला, बल्कि क्रिश्चियन जिस इलाके में स्टडी कर रहे थे, वह पूरा इलाका ही इधर-उधर हो गया. क्रिश्चियन मॉले की एक नदी के किनारे का अध्ययन कर रहे थे. उन्होंने देखा कि भूकंप की वजह से मिट्टी की परत खिसक चुकी है. 
क्रिश्चियन ने बताया कि मैंने जब देखा कि मिट्टी की पूरी परत नदी के किनारे और उसके नीचे पलट चुकी है, तो मैं हैरान रह गया. डर भी गया था. क्योंकि सुनामी की लहर उस जगह तक पहुंची थी, जहां वो खुद को बचाने के लिए छिपे थे. 8.8 तीव्रता वाले भूकंप की वजह चिली के तटों पर सुनामी आई थी. सैकड़ों लोग मारे गए थे. इस भूकंप की वजह से करीब 20 लाख लोग प्रभावित हुए थे. 
क्रिश्चियन मोर जब भूकंप के बाद वापस उस इलाके में स्टडी के लिए पहुंचे तो उन्होंने देखा कि मिट्टी की परतें हिलीं हुई हैं. जमीन के अंदर पानी का बहाव तेज हो गया है. मिट्टी ज्यादा उर्वरक हो गई है. यानी अब यहां पेड़-पौधे ज्यादा तेजी से पनप सकते हैं. क्योंकि मिट्टी पेड़ों के विकास में मदद करेगी और जमीन के नीचे पानी का बहाव तेज हो गया है. इससे क्रिश्चियन और उनकी टीम को लगा कि भूकंप की वजह से मिट्टी में आए बदलाव से पेड़-पौधों का विकास तेजी से होता है. भले ही थोड़े समय के लिए हो. 
यह जानने के लिए कि भूकंप की वजह से ऐसी प्रक्रियाएं और कहां हो रही हैं, क्रिश्चियन और उनके साथियों ने 2 दर्जन पेड़ों के तनों में छेद किया. जिन पेड़ों में छेद किए गए उनका नाम मॉन्टेरे पाइन्स. ये घाटी की तलहटी और ढलान पर उगे हुए थे. इसके अलावा क्रिश्चियन ने चिली के तटों पर मौजूद दो प्लांटेशन की भी ऐसी ही स्टडी की. पेड़ों में किए गए छेद पेंसिल की चौड़ाई से के बराबर थे. लेकिन एक पेंसिल से लंबाई में दोगुने थे. 
जब क्रिश्चियन और उनकी टीम सैंपल लेकर जर्मनी में मौजूद अपने लैब में वापस पहुंचे तो उन्होंने देखा कि भूकंप की वजह से पेड़ों की कोशिकाओं के बीच ज्यादा घेरे बन गए हैं. इनमें पानी की मात्रा बढ़ गई है. पेड़ों की कोशिकाओं का आकार और क्षमता ज्यादा हो गई है. इतना ही नहीं, भूकंप के बाद पेड़ों के फोटोसिंथेसिस प्रक्रिया को भी जांचा गया. 
क्रिश्चियन और उनकी टीम ने फोटोसिंथेसिस की जांच करने के लिए पेड़ों की कोशिकाओं में भारी से हल्के कार्बन आइसोटोप्स की स्टडी भी की. उन्होंने देखा कि पेड़ फोटोसिंथेसिस के दौरान कार्बन-13 के बजाय कार्बन-12 ज्यादा ले रहे हैं. इसका मतलब ये है कि पेड़ों की फोटोसिंथेसिस की प्रक्रिया में भी तेजी से बढ़ोतरी हुई है. यानी ये ज्यादा फ्रेश तरीके से फोटोसिंथेसिस कर रहे हैं.
चिली की नदी और उसकी घाटियों के आसपास भूकंप के बाद पेड़ों में तेजी से ग्रोथ आई लेकिन थोड़े समय के लिए. भूकंप के बाद पेड़ों की यह विकास प्रक्रिया कुछ हफ्तों से लेकर कुछ महीनों तक ही सीमित रहती है. इसके पीछे बारिश भी एक बड़ी वजह हो सकती है. अगर भूकंप के बाद बारिश हो जाए, तो पेड़ों का विकास ज्यादा तेजी से होता है. यह स्टडी हाल ही में जर्नल ऑफ जियोफिजिकल रिसर्च बायोजेनेसिस में प्रकाशित हुई है. 
यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना की एक्सपर्ट इरिना पैनीयूश्किना ने बताया कि अगर क्रिश्चियन की तकनीक का उपयोग भूकंप के बाद पेड़ों पर पड़ने वाले असर पर किया जाए, तो हमें भविष्य के जंगलों का पता चल सकता है. साथ ही हम पिछले भूकंपों की जानकारी भी पेड़ों की कोशिकाओं और उनमें बने घेरों से पता कर सकते हैं. क्योंकि पेड़ों के अंदर बने घेरे हर साल एक औसत विकास की दर को दिखाते हैं. यानी आने वाले बदलावों से भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट और सुनामी आदि के बारे में जानकारी जमा की जा सकती है.
इरिना ने बताया कि अगर कोशिका के आकार और कार्बन आइसोटोप्स का विश्लेषण किया जाए तो कई तरह के खुलासे किए जा सकते हैं. क्रिश्चियन और उनकी टीम तो भूकंप आने के एक महीने बाद ही दोबारा स्टडी करने गई थी. चिली के वाल्दीविया में स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ ऑस्ट्रल डे चिली के हाइड्रोलॉजिस्ट और फॉरेस्टर आंद्रे इरोमी ने कहा कि सही तरीका ये है कि क्रिश्चियन को कुछ समय बाद आसपास के इलाकों में और अध्ययन करना चाहिए था. उन्हें और स्थानों से सैंपल जमा करना चाहिए था. 
क्रिश्चियन ने कहा कि वो अगली स्टडी कैलिफोर्निया के नापा वैली में करना चाहते हैं. ताकि वहां के पेड़ों से भी सैंपल जमा करके भूकंपों से पड़ने वाले असर का अध्ययन किया जा सके. क्योंकि यह स्टडी बेहद चौंकाने वाली है कि भूकंप जैसी बड़ी प्राकृतिक आपदा से किसी तरह का फायदा भी हो सकता है.


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