अक्षय ऊर्जा लक्ष्य में 60 गीगावॉट की पवन शामिल, जानें क्या है कारण

दुनिया को नेट जीरो मार्ग पर रखने और जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए अगले दशक में तीन गुना तेजी से विंड एनर्जी स्थापित करने की आवश्यकता है।

Update: 2021-03-26 06:58 GMT

दुनिया को नेट जीरो मार्ग पर रखने और जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए अगले दशक में तीन गुना तेजी से विंड एनर्जी स्थापित करने की आवश्यकता है। अगर बात भारत की करें तो भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है और इस हिसाब से ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिए एक दुनिया का महत्वपूर्ण वेक्टर है। हालांकि, 1.35 बिलियन से अधिक लोगों के साथ, इसका प्रति व्यक्ति कार्बन फुटप्रिंट केवल 2 टन CO2e के आसपास है जबकि ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों में प्रति व्यक्ति कार्बन फुटप्रिंट 17 टन CO2 है।

ऐसे में पहले से ही महत्वाकांक्षी रिन्यूएबिल ऊर्जा लक्ष्य के बावजूद, भारत ने आज तक नेट जीरो लक्ष्य निर्धारित करने से परहेज किया है। हालांकि, राजनीतिक बदलावों ने भारत को 2015 से क्लीन एनर्जी ट्रांजीशन के रास्ते की तरफ मोड़ा और भारत ने 2030 तक अपनी अर्थव्यवस्था के कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता में 2005 के स्तर की तुलना में 33-35% की कमी का वादा किया ।
2022 तक भारत के 175 गीगावॉट के अक्षय ऊर्जा लक्ष्य में 60 गीगावॉट की पवन शामिल है। फरवरी 2021 तक भारत में, 39 गीगावॉट की पवन क्षमता स्थापित की जा चुकी है जो कुल ऊर्जा मिश्रण का 10.25% है। भारत सरकार ने 2030 तक 450 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा का लक्ष्य निर्धारित किया है जिसमें 140 GW पवन ऊर्जा शामिल है। ऐसे में क्लाइमेट ऐक्शन ट्रैकर ने भारत को ग्लोबल वार्मिंग को पेरिस समझौते के मुताबिक 2°C तक रोकने के संगत माना है। बस व्यापक कार्बन न्यूट्रल रणनीति के अभाव में भारत के क्लीन एनर्जी लक्ष्यों को तत्काल और लक्षित पूरा करने के लिए इस दिशा में नीति-नियम और सुधारों के कार्यान्वयन की जरूरत है।
वहीं बात दक्षिण एशिया की करें तो उम्मीद है कि एशिया पैसिफिक क्षेत्र अगले पांच सालों में विंड एनर्जी उत्पादन क्षमता विकास को यूं ही गति देता रहेगा। 2021-2025 दुनिया की अनुमानित विंड एनर्जी क्षमता की आधी से ज्यादा अपने नाम कर लेगा, लेकिन GWEC की ताजा रिपोर्ट चेतावनी देती है कि वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अगले दशक में तीन गुना तेजी से नई पवन ऊर्जा क्षमता स्थापित करनी होगी। एशिया पैसिफिक के क्षेत्र में विंड एनर्जी की मौजूदा उत्पादन क्षमता इतनी है कि अगर उतना बिजली उत्पादन कोयले से हो तो 510 मिलियन टन का कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन होगा।
वैश्विक पवन ऊर्जा परिषद (GWEC) द्वारा प्रकाशित एक नई रिपोर्ट चेतावनी देती है कि अब तक हासिल की गई वृद्धि 2050 तक दुनिया को नेट जीरो हासिल करने के लिए पर्याप्त नहीं। GWEC की 16-वीं वार्षिक फ्लैगशिप रिपोर्ट, ग्लोबल विंड रिपोर्ट 2021, के अनुसार दुनिया को नेट जीरो मार्ग पर रहने के लिए और जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए अगले दशक में तीन गुना तेजी से पवन ऊर्जा स्थापित करने की आवश्यकता है। GWEC अपनी रिपोर्ट के माध्यम से नीति-निर्माताओं से आह्वान कर रहा है कि वे एक 'जलवायु आपातकालीन' दृष्टिकोण अपनाएं, जिससे तुरंत बढ़ावे की अनुमति हो।
इस क्रम में भारत की नजर से, GWEC में नीति निदेशक, मार्तंड शार्दुल कहते हैं, 'भारत 38 गीगावाट से ज़्यादा की क्षमता के साथ दुनिया का चौथा सबसे बड़ा पवन ऊर्जा बाजार है। साल 2050 तक नेट जीरो लक्ष्य हासिल करने में तटवर्ती और अपतटीय पवन दोनों को एक बड़ी भूमिका निभानी होगी। भारत सरकार ने पहले ही रेन्युब्ल के क्षेत्र में महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित कर रखे हैं और साथ ही ग्रीन हाइड्रोजन की नीलामी के इरादे भी सार्वजनिक कर दिए हैं लेकिन स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को प्राथमिकता देने के लिए सही और नयी नीतियों को लागू करना महत्वपूर्ण होगा।'


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