आर्कटिक में प्लास्टिक प्रदूषण दुनिया के बाकी हिस्सों जितना हुआ गंभीर, टेंशन में आए वैज्ञानिक
एक नए अध्ययन से पता चलता है कि लहरों, हवाओं और नदियों के जरिए आर्कटिक महासागर के उत्तर में पहुंचे कपड़े, पर्सनल केयर प्रॉडक्ट्स, पैकेजिंग और अन्य रोजमर्रा की सामग्री का मलबा इसकी आबोहवा को नष्ट कर रहा है। प्लास्टिक न केवल पारिस्थितिक तंत्र के लिए बोझ है बल्कि जलवायु परिवर्तन को भी खराब कर सकता है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | दुनिया के सबसे वीरान और बर्फीले इलाकों में से एक आर्कटिक में प्लास्टिक प्रदूषण (Plastic pollution in Arctic) ने वैज्ञानिकों की चिंता को बढ़ा दिया है। उनका कहना है कि आर्कटिक में प्लास्टिक प्रदूषण (Plastic pollution Study) अब पृथ्वी के बाकी हिस्से जितना खराब हो चुका है। आर्कटिक की कठोर जलवायु और मानव जीवन के लिए प्रतिकूल तापमान ने लंबे समय से इस इलाके के विकास और संसाधनों के दोहन में एक प्राकृतिक बाधा के रूप में काम किया है। इसके बावजूद जलवायु संकट तेजी से इसे बदल रहा है। आर्कटिक महासागर के किनारे छह देश स्थित हैं, इनमें रूस, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, डेनमार्क, नॉर्वे और आइसलैंड शामिल हैं। ऐसे में अब तक वीरान पड़ा यह इलाका अब तेजी से आबाद हो रहा है।
आर्कटिक तक कैसे पहुंच रहा प्लास्टिक का कचरा
एक नए अध्ययन से पता चलता है कि लहरों, हवाओं और नदियों के जरिए आर्कटिक महासागर के उत्तर में पहुंचे कपड़े, पर्सनल केयर प्रॉडक्ट्स, पैकेजिंग और अन्य रोजमर्रा की सामग्री का मलबा इसकी आबोहवा को नष्ट कर रहा है। बड़ी मात्रा में माइक्रोप्लास्टिक अब पानी में, समुद्र के तल पर, दूरदराज के समुद्र तटों पर, नदियों में और यहां तक कि बर्फ में भी पाया जा सकता है।
नई स्टडी ने जलवायु परिवर्तन के खतरे को लेकर चेताया
जर्मनी में अल्फ्रेड वेगेनर इंस्टीट्यूट के एक इंटरनेशनल रिव्यू स्टडी के मुताबिक, प्लास्टिक न केवल पारिस्थितिक तंत्र के लिए बोझ है बल्कि जलवायु परिवर्तन को भी खराब कर सकता है। इस स्टडी के प्रमुख लेखक डॉ मेलानी बर्गमैन ने कहा कि आर्कटिक को अभी भी एक बड़े पैमाने पर अछूता इलाका माना जाता है। हमारी समीक्षा में यह धारणा अब वास्तविकता को प्रतिबिंबित नहीं करती है। इस समीक्षा को हमने नॉर्वे, कनाडा और नीदरलैंड के सहयोगियों के साथ संयुक्त रूप से आयोजित किया था
लगातार बढ़ रहा आर्कटिक में प्रदूषण
उन्होंने बताया कि पृथ्वी के सुदूर उत्तरी इलाके में स्थित यह इलाका पहले से ही जलवायु परिवर्तन से प्रभावित है। जिसके बाद यह अब प्लास्टिक प्रदूषण के कारण विकराल रूप ले चुका है। हमारे अपने शोध से पता चला है कि आर्कटिक में प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। उन्होंने बताया कि आज 19 से 23 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा हर साल दुनिया के पानी में समा जाता है। ऐसे में इनकी संख्या प्रति मिनट दो ट्रक के आसपास होती है।
गलती से प्लास्टिक खा रहे समुद्री जीव
जिसके बाद यह महासागरों में जमा हो जाता है और धीरे-धीरे छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाता है। यहां तक कि सी फूड के जरिए यह इंसानों के खून में भी प्रवेश कर रहा है। अध्ययनों के अनुसार, समुद्री प्लैंकटन से लेकर स्पर्म ह्वेल तक लगभग सभी समुद्री जीव गलती से प्लास्टिक के इन टुकड़ों को खा जाते हैं। प्लास्टिक कचरा दुनिया की सबसे गहरी खाइयों से लेकर माउंट एवरेस्ट तक फैला हुआ है।