आत्महत्या के जोखिम वाले मरीजों का पता लगा सकता है एआई: अध्ययन

Update: 2025-01-05 08:50 GMT
नई दिल्ली: एक नई रिसर्च में यह जानकारी सामने आई है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आत्महत्या के जोखिम वाले मरीजों की पहचान में डॉक्टरों की मदद कर सकता है। इससे नियमित चिकित्सा प्रक्रियाओं में आत्महत्या रोकथाम के प्रयास बेहतर हो सकते हैं।
जर्नल जेएएमए नेटवर्क ओपन में प्रकाशित शोध के अनुसार, शोधकर्ताओं ने दो तरीकों की तुलना की। पहला तरीका था डॉक्टरों के कामकाज को बीच में रोककर पॉप-अप अलर्ट दिखाना, और दूसरा था मरीज की इलेक्ट्रॉनिक रिपोर्ट में जोखिम की जानकारी देना।
शोध में पाया गया कि पॉप-अप अलर्ट ज्यादा प्रभावी थे। इनकी वजह से डॉक्टरों ने 42% मामलों में आत्महत्या का जोखिम जांचा, जबकि रिपोर्ट में सिर्फ जानकारी दिखाने वाले तरीके से यह आंकड़ा केवल 4% रहा।
वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के प्रोफेसर कॉलिन वॉल्श ने कहा कि अधिकतर लोग, जो आत्महत्या करते हैं, अपनी मौत से पहले साल भर में किसी न किसी डॉक्टर से मिल चुके होते हैं, लेकिन अक्सर मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या के लिए नहीं। टीम ने अपने एआई सिस्टम, जिसे 'वेंडरबिल्ट सुसाइड अटेम्प्ट एंड आइडिएशन लाइक्लीहुड' (वीएसएआईएल) मॉडल कहते हैं, को तीन न्यूरोलॉजी क्लिनिक में मरीजों का आत्महत्या जोखिम स्क्रीनिंग के लिए परीक्षण किया।
वॉल्श ने बताया, "हर जगह सभी मरीजों की स्क्रीनिंग करना संभव नहीं है। वीएसएआईएल मॉडल को खासतौर पर उच्च जोखिम वाले मरीजों की पहचान करने और डॉक्टरों को जरूरी जांच करने के लिए विकसित किया गया है।"
यह मॉडल मरीज के इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड का उपयोग करके अगले 30 दिनों में आत्महत्या के प्रयास का जोखिम बताता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसे सिस्टम को अन्य चिकित्सा क्षेत्रों में भी आजमाया जा सकता है। हालांकि, स्वास्थ्य सेवाओं को प्रभावी अलर्ट और उनके संभावित नकारात्मक प्रभावों के बीच संतुलन बनाना होगा।
अध्ययन के अनुसार, ऑटोमेटेड रिस्क डिटेक्शन और अच्छे डिजाइन वाले अलर्ट से आत्महत्या के जोखिम वाले मरीजों की बेहतर पहचान हो सकती है। शोध में यह भी सामने आया कि 77% आत्महत्या करने वाले लोग अपनी मौत से पहले साल भर में किसी प्राथमिक चिकित्सा प्रदाता से संपर्क कर चुके होते हैं।
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