इम्पैक्ट क्रेटर (Impact Craters) हमारे सौरमंडल (Solar System) और उनके पिंडों के बारे में बहुत सारी जानकारी समेटे रहते हैं. इनसे ग्रहों, चंद्रमाओं, क्षुद्रग्रहों और उल्कापिंडों की संरचना, उनके निर्माण के साथ ही उनके इतिहास के बारे में भी जानकारी मिलती है जो कई लिहाज से उपयोगी होती है. अब इनका अध्ययन ग्रह विज्ञान (Planetary Science) के कई पहलुओं को जरूरी जानकारी देने वाला भी साबित हो रहा है.
आमतौर पर जब भी खगोलीय अध्ययन की बात होती हैं तो हमें यही लगता है कि यह अध्ययन टेलीकोप या उसके जैसे उपकरण से अंतरिक्ष के अवलोकन से ही हुआ होगा. लेकिन ग्रहों पर टकराव से बने क्रेटर (Impact Craters) भी ग्रह और सौरमंडल (Solar System) के इतिहास, ग्रहों, चंद्रमाओं, क्षुद्रग्रहों और उल्कापिंडों की संरचना, के बारे में काफी कुछ जानकारी दे सकते हैं. अकेले क्रेटर का अध्ययन ही हमें हमारे सौरमंडल और ग्रहों के इतिहास के बारे काफी कुछ बता सकता है. इसके अलावा इससे क्षुद्रग्रहों और कई चंद्रमाओं के बारे में भी नई जानकारी मिलती है जो दूसरे तरीकों से नहीं मिल पाती है.
इन क्रेटर का अध्ययन करने वाले पर्जू यूनिवर्सिटी में कॉलेज ऑफ साइंस के अर्थ एटमॉस्फियरिक एंड प्लैनेटरी साइंस विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर ब्रैंडन जॉनसन का कहना है कि इम्पैक्ट क्रेटर (Impact Craters) का निर्माण ग्रहों (Planets) को आकार देने वाली विशेष प्रक्रिया है. उनके मुताबिक क्रेटर हर ठोस पिंड में दिखाई देते हैं. ये ग्रहों में बदलाव के सबसे प्रमुख कारक होते हैं. उनकी वजह से ग्रहों की पर्पटी का विकास होता है. सभी ग्रह और क्षुद्रग्रह (Asteroids) टकराव की शृंखला से बने हैं इनका अध्ययन ग्रहों की संरचना के बारे में काफी कुछ बता सकता है.
जॉनसन ने सौरमंडल (Solar System) के सभी बड़े ग्रहीय पिंडों का अध्ययन किया है. उनका शोध में हाल के हुए टकरवों (Impact Craters) से लेकर सौरमंडल की शुरुआत के समय के टकराव शामिल हैं. टकरावों के संकेतों को जमा कर जॉनसन टकराव होने वाले स्थान के वातवरण का फिर से निर्माण करने का प्रयास करते हैं जिससे उन्हें इस बारे मे जानकारी मिल पाती है कि पिंडों के निर्माण कब और कैसे हुआ था.
जॉनसन क शोध इंसानों को सौरमंडल (Solar System) के ग्रहीय पिंडों के अवलोकन में भौतिकी, गणित और कम्प्यूटर हर लिहाज से मदद कर रहा है. अंतरिक्ष (Space) के अभियान और प्रयोगशाला के विश्लेषण लगाता नए आंकड़े और सवाल देते रहते हैं. जॉनसन बताते हैं कि अधिकांश उल्कापिंडों (Meteorites) में कॉन्डरूल्स होते हैं जो छोटे, पहले पिघल चुके कण होते हैं. टकराव (Impact Craters) के कराण बने कॉन्डरूल्स के अध्ययन से हम नवजात सौरमंडल को भी बेहतर समझ सकते हैं.
मिसाल के तौर पर एक टकराव का अध्ययन करने पर हम यह तय कर सके कि सौरमंडल (Solar System) के ठोस पदार्थों के निर्माण होने के 50 लाख साल बाद गुरु ग्रह (Jupiter) का निर्माण शुरू हो चुका था. इस जानकारी से हमारे सौरमंडल की समझ के क्रम विकास में बदलाव आ सकता है. जॉनसन और उनके स्टाफ ने ग्रहीय पिंडों की संरचाओं और भौतिकी के ज्ञात कारकों को जटिल कम्प्यूटर प्रतिमानों या मॉडल्स में शामिल किया, प्रतिमानों को अलग अलग हालातों में चलाया और नतीजों की तुलना अलोकित परिघटनाओं से की.
टकराव और गतिविधियों का विश्लेषण करने से क्षुद्रग्रह और उल्कापिडों की संरचनाओं की जानकारी मिल सकती है जिससे वैज्ञानिकों को यह समझने का मौका मिल सकता है कि पानी और धातु जैसे तत्व सौरमंडल (Solar System) में कैसे वितरित हैं. प्लूटो, शुक्र और बर्फीले चंद्रमाओं जैसी जगहों के इम्पैक्ट क्रेटर और यूरोपा, साइक जैसे क्षुद्रग्रहों की दूसरी प्रक्रियाओं का अध्ययन करने से जॉनसन की टीम इन पिंडों के आंतरिक हिस्सों को ज्यादा समझ सके. क्या उनके पास पिघले हुए क्रोड़ और प्लेट टेक्टोनिक हैं. या क्या उनके पास तरल महासागर हैं या नहीं.
जॉनसन का काम केवल सौरमंडल (Solar System) तक ही सीमित नहीं हैं. वे हमारे ग्रह के के भी इम्पैक्ट क्रेटर (Impact craters) के साथ चंद्रमा (Moon) के क्रेटर का भी अध्ययन करते हैं. जॉनसन मेंटॉर दिवंगत जे मेलोश ने एक ऑनलाइट इम्पैक्ट कैलक्युलेटर उपकरण विकसित किया था जिससे हर व्यक्ति पृथ्वी की चट्टानों पर बने विभिन्न क्रेटर का अध्ययन कर सकता है. जॉनसन और उनकी टीम नई पीढ़ी के छात्रों के लिए इस उपकरण को फिर से बना रही है. यह अध्ययन इकारस में प्रकाशित हुआ है.