NASA: अंतरिक्ष से धरती पर आ रहा रहस्‍यमय प्रकाश, जानें पृथ्वी को इससे खतरा है या नहीं

नासा ने बड़ी जानकारी दी

Update: 2021-03-12 09:54 GMT

सूर्योदय से ठीक पहले धरती के ऊपर दिखने वाले चमकीले रहस्‍यमय प्रकाश के बारे में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने बड़ी जानकारी दी है। नासा ने कहा कि जोडाइअकल लाइट मंगल ग्रह से आ रही धूल के कण का परिणाम हो सकता है। नासा ने अपने जूनो प्रोब के अध्‍ययन के आधार पर यह जानकारी दी है। जोडाइअकल लाइट क्षितिज से निकलता हुआ हल्‍का प्रकाश स्‍तंभ होता है।

सूरज के चारों ओर कक्षा में मौजूद धूल के कणों पर पड़ने वाले प्रकाश के पृथ्‍वी की ओर परावर्तित होने से जोडाइअकल लाइट स्‍तंभ बनता है जो देखने में बहुत सुंदर लगता है। नासा के जूनो प्रोब को वर्ष 2011 में लॉन्‍च किया गया था और बृहस्‍पति ग्रह की यात्रा के दौरान मंगल ग्रह के पास इसे धूल के कण मिले थे जो उससे बहुत तेजी से टकरा गए थे।
जूनो के साथ हुई इस टक्‍कर ने धूल के विकास और उसके परिक्रमा पथ के बारे में नासा को अद्भुत जानकारी मिली। इसी से जोडाइअकल लाइट के आने के रहस्‍य का भी अब खुलासा हुआ है। जूनो के वैज्ञानिकों का दावा है कि मंगल ग्रह इस मलबे के लिए ज‍िम्‍मेदार है क्‍योंकि ये धूल के कण अंतरिक्ष में एक विशेष बिन्‍दू पर सूरज के चारों ओर एक कक्षा में चक्‍कर लगा रहे हैं जो कुछ उसी तरह से है जैसे मंगल की कक्षा में होता है।

दरअसल मंगल तक इंसानों को पहुंचाने में नासा के सामने सबसे बड़ी समस्या रॉकेट की आ रही है। क्योंकि, वर्तमान में जितने भी रॉकेट मौजूद हैं वे मंगल तक पहुंचने में कम से कम 7 महीने का समय लेते हैं। अगर इंसानों को इतनी दूरी तक भेजा जाता है तो मंगल तक पहुंचते पहुंचते ऑक्सीजन की कमी हो सकती है। दूसरी चिंता की बात यह है कि मंगल का वातावरण इंसानों के रहने के अनुकूल नहीं है। वहां का तापमान अंटार्कटिका से भी ज्यादा ठंडा है। ऐसे बेरहम मौसम में कम ऑक्सीजन के साथ पहुंचना खतरनाक हो सकता है।
नासा के स्पेस टेक्नोलॉजी मिशन डायरेक्ट्रेट की चीफ इंजिनियर जेफ शेही ने कहा कि वर्तमान में संचालित अधिकांश रॉकेट में केमिकल इंजन लगे हुए हैं। ये आपको मंगल ग्रह तक ले जा सकते हैं, लेकिन इस लंबी यात्रा की धरती से टेकऑफ करने और वापस लौटने में कम से कम तीन साल का समय लग सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि बाहरी अंतरिक्ष में चालक दल को कम से कम समय बिताने के लिए नासा जल्द से जल्द मंगल तक पहुंचना चाहता है। इससे अंतरिक्ष विकिरण के संपर्क में कमी आएगी। जिस कारण रेडिएशन, कैंसर और नर्वस सिस्टम पर भी असर पड़ता है।
इस कारण ही नासा के वैज्ञानिक यात्रा के समय को कम करने के तरीके खोज रहे हैं। सिएटल स्थित कंपनी अल्ट्रा सेफ न्यूक्लियर टेक्नोलॉजीज (USNC-Tech) ने नासा को एक परमाणु थर्मल प्रोपल्शन (NTP) इंजन बनाने का प्रस्ताव दिया है। यह रॉकेट धरती से इंसानों को मंगल ग्रह तक केवल तीन महीने में पहुंचा सकता है। वर्तमान में मंगल पर भेजे जाने वाले मानवरहित अंतरिक्ष यान कम से कम सात महीने का समय लेते हैं। वहीं, इंसानों वाले मिशन को वर्तमान के रॉकेट से मंगल तक पहुंचने में कम से कम नौ महीने लगने की उम्मीद है।
परमाणु रॉकेट इंजन को बनाने का विचार नया नहीं है। इसकी परिकल्पना सबसे पहले 1940 में की गई थी। लेकिन, तब तकनीकी के अभाव के कारण यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई। अब फिर अंतरिक्ष में लंबे समय तक यात्रा करने के लिए परमाणु शक्ति से चलने वारे रॉकेट को एक समाधान के रूप में देखा जा रहा है। USNC-Tech में इंजीनियरिंग के निदेशक माइकल ईड्स ने सीएनएन से कहा कि परमाणु ऊर्जा से चलने वाले रॉकेट आज के समय में इस्तेमाल किए जाने वाले रासायनिक इंजनों की तुलना में अधिक शक्तिशाली और दोगुने कुशल होंगे।
परमाणु रॉकेट इंजन की निर्माण की तकनीकी काफी जटिल है। इंजन के निर्माण के लिए मुख्य चुनौतियों में से एक यूरेनियम ईंधन है। यह यूरेनियम परमाणु थर्मल इंजन के अंदर चरम तापमान को पैदा करेगा। वहीं, USNC-Tech दावा किा है कि इस समस्या को हल करके एक ईंधन विकसित किया जा सकता है जो 2,700 डिग्री केल्विन (4,400 डिग्री फ़ारेनहाइट) तक के तापमान में काम कर सकता है। इस ईंधन में सिलिकॉन कार्बाइड होता जो टैंक के कवच में भी सुरक्षा के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इससे इंजन से रेडिएशन बाहर नहीं निकलेगा, जिससे सभी अंतरिक्षयात्री सुरक्षित रहेंगे।
सोलर सिस्‍टम में मंगल ग्रह सबसे धूल भरे ग्रहों में से एक है। हालांकि नासा के वैज्ञानिक अभी यह नहीं बता सकें हैं कि मंगल ग्रह के गुरुत्‍वाकर्षण से कितनी ज्‍यादा धूल बच निकली है। उन्‍होंने कहा कि यह तब होता है जब मंगल ग्रह पर धूलभरी आंधी चलती है और पूरे ग्रह को अपनी चपेट में ले लेती है। नासा ने कहा कि इसी धूल के कणों की वजह से सूर्योदय के ठीक पहले या सूर्यास्‍त के ठीक बाद क्षितिज से एक प्रकाश स्‍तंभ नजर आता है। इससे पहले यह माना जाता था कि यह धूल सोलर सिस्‍टम भीतरी इलाके में चक्‍कर काटने वाले ऐस्‍टरॉइड या धूमकेतु की वजह से आता है।


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