इस मिशन की खास बात ये है कि नासा के एस्ट्रोनॉट केवल चंद घंटे चांद की सतह पर बिता कर वापस नहीं आएंगे, बल्कि वे लंबे समय तक वहां पर लूनर बेस बना कर रहने वाले हैं। इस दौरान एस्ट्रोनॉट चांद की सतह का बारीकी से अध्ययन करेंगे। नासा का प्लान है कि वो चांद की सतह पर माइनिंग भी करेगा। आपको बता दें कि चांद पर प्लेटिनम, सिलिकॉन, आयरन, टाइटेनियम, अमोनिया आदि जैसे कई बेशकीमती खनिज पदार्थ मौजूद हैं।
हालांकि उनकी माइनिंग करना इतना आसान काम नहीं होगा। चांद पर पृथ्वी के मुकाबले ग्रेविटी 6 गुना कमजोर है। ऐसे में एस्ट्रोनॉट को खनिज पदार्थों की माइनिंग करने के लिए विशेष प्रकार के उपकरणों को अपने साथ ले जाना होगा। इसे देखते हुए दूसरे देशों की स्पेस एजेंसियां भी चांद पर जाने के लिए अपने मिशन्स की योजना बना रही हैं। ऐसे में ये दशक स्पेस रेस के मद्देनजर काफी महत्वपूर्ण होने वाला है। कई विशेषज्ञों द्वारा संभावना जताई जा रही है कि दशक के अंत तक कई सुपर पावर देशों के बीच एक स्पेस वॉर भी शुरू हो सकती है।
आर्टेमिस मिशन स्पेस एक्सप्लोरेशन के क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत करने वाला है। इस मिशन को भेजने से पहले नासा दो और मिशन को चांद पर रवाना करेगा, जिनका काम मून लैंडिंग में उपयोग होने वाली जरूरी तकनीकों का टेस्ट करना होगा। इन दोनों की सफलतापूर्वक टेस्टिंग के बाद नासा की योजना आर्टेमिस मिशन के जरिए सफलतापूर्वक एस्ट्रोनॉट को सतह पर उतारना है। इसके पश्चात चांद की सतह पर लूनर बेस या लूनर विलेज को तैयार किया जाएगा।
लूनर बेस को बनाने में बड़ी मात्रा में कार्गो की जरूरत चांद पर पड़ेगी। इस कारण आर्टेमिस मिशन भविष्य में काफी खर्चीला होगा। इसके खर्चे को कम करने के लिए नासा ने लूनर गेटवे का कॉन्सेप्ट सब के सामने रखा है। लूनर गेटवे एक तरह का स्पेस स्टेशन होगा, जो चंद्रमा को ऑर्बिट करेगा। चांद पर भेजे जाने वाले सभी लॉजिस्टिक को लूनर गेटवे के जरिए ही चांद पर उतारा जाएगा। ऐसे में ईंधन पर आने वाला खर्चा काफी कम हो जाएगा।
लूनर गेटवे के निर्माण के लिए नासा ने कई निजी कंपनियों के साथ डील कर ली है और उसके प्रारंभिक कार्य की शुरूआत भी हो चुकी है। नासा की योजना है कि भविष्य में वह इन सभी प्राइवेट कंपनियों के साथ मिलकर लूनर गेटवे का निर्माण करेगा। इन सब के बाद साल 2024 में नासा अपना आर्टेमिस मिशन चांद पर भेजेगा। इसके तहत ओरायन कैप्सूल को धरती से लांच किया जाएगा, जो कि अंतरिक्ष में जाते ही SLS से अलग होगा। SLS से अलग होने के बाद ओरायन कैप्सूल चांद तक का सफर खुद अकेले ही तय करेगा।