सूक्ष्मजीवी लेते हैं मीथेन की सांस और बना देते हैं बैटरी के लिए ईंधन
जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और ग्लोबल वार्मिंग के लिहाज से मीथेन (Methane) गैस कार्बन डाइऑक्साइड से भी ज्यादा खतरनाक ग्रीनहाउस गैस है
जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और ग्लोबल वार्मिंग के लिहाज से मीथेन (Methane) गैस कार्बन डाइऑक्साइड से भी ज्यादा खतरनाक ग्रीनहाउस गैस है. गर्मी को पकड़ने के मामले में यह कार्बन डाइऑक्साइड से 25 गुना ज्यादा कारगर है. वहीं CO2 की तुलना में इसके उत्सर्जन को नियंत्रित करना बहुत मुश्किल है क्योंकि इसके स्रोत बहुत बिखरे हुए होते हैं जिन्हें काबू करना बहुत मुश्किल काम होता है. इसके साथ ही मीथेन को जलाने पर प्राकृतिक गैस की आधी ऊर्जा ही विद्युत में बदली जा सकती है. नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने सूक्ष्मजीवों (Microbes) के जरिए मीथेन से ऊर्जा हासिल करने का तरीका खोजा है
ऊर्जा क्षेत्र के लिए बहुत उपयोगी
नीदरलैंड के वैज्ञानिकों ने मीथेन से ज्यादा इलेक्ट्रॉन निकालने के प्रयास में ऊर्जा निकालने का एक नया अपारंपरिक तरीका खोजा है. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह ऊर्जा क्षेत्र के लिए बहुत उपयोगी हो सकता है. उन्होंने बैक्टीरिया जैसे एक सूक्ष्म जीव का अध्ययन किया जो बहुत कठिन परिसथितियों में ऑक्सीजन के बिना जीवित रह सकता है और मीथेन का विखंडन कर सकता है.
क्या था उद्देश्य
रोडबोउड यूनिवर्सिटी की सूक्ष्मजीवविज्ञानी कॉर्नेलिया वेल्ट ने बताया, "फिलहाल बायोगैस के संयंत्रों में सूक्ष्मजीव मीथेन का उत्पादन करते हैं जिसे जलाने पर टर्बाइन शक्ति पैदा करते हैं. इस प्रक्रिया में केवल आधी से कम ही बायोगैस ऊर्जा में बदल पाती है. इसलिए हम यह पता लगाना चाहते थे कि क्या सूक्ष्म जीवों के जरिए हम बेहतर कर सकते हैं या नहीं"
क्या करता है आर्किया
शोधकर्ताओं ने आर्किया नाम के सूक्ष्म जीव का अध्ययन किया जिसे एनएरोबिक मीथीनोट्रफिक (ANME) आर्किया भी कहते है. यह जीव विद्युतरासानिक प्रतिक्रियाओं में कोशिका के बाहर किसी धातु या मेटलॉइड की भागीदारी से इलेक्ट्रॉन हटाने का करता है. इसमें कई बार वह बाहरी जीव को भी इलेक्ट्रॉन दे देते हैं.
छोटा सा वोल्टेज पैदा कर सकते हैं
आर्किया की सबसे पहले साल 2006 व्याख्या की गई थी. ANME वंश का मीथेनोपेरेडेन्स नाइट्रेट की मदद से मीथेन का आक्सीकरण करते पाया गया था. वे नीदरलैंड में खीते के पास खाद सोखने वाले गीली पुलियाओं के आसपास पनपने लगे. इस प्रक्रिया के दौरान इलेक्ट्ऱॉन खींचने की कवायद में ये सूक्ष्मजीवी ईंधन सेल छोटे वोल्टेज पैदा कर देते हैं.
आसान नहीं है
अभी यह पता नहीं चला है कि इस बदलाव के पीछे वास्तव में की प्रक्रिया का बात है. आर्किया मीथेन खाने वाले ऊर्जा सेल हो सकते हैं. लेकिन इसके लिए उन्हें स्पष्ट और सतत तरीके से विदुयत पैदा करनी होगी. इसके अलावा एक समस्या यह भी है कि मीथेनोपेरेडेन्स को पनपाना आसान काम नहीं हैं.
बना डाली विद्युतरासायनिक सेल
इसलिए वेल्ट और उनके साथियों ने ऐसे सूक्ष्मजीवों का नमूने लिए जहां आर्किया बहुत अधिक थे और उन्हें ऑक्सीजन विहीन वातावरण में पैदा बढ़ाया जहां मीथेन ही केवल इलेक्ट्रॉनदाता था. इस कॉलोनी के पास शोधकर्ताओं ने जीरो वोल्टेज वाला धातु का एनोड रख दिया और कारगर तौर पर एक विद्युतरासायनिक सेल बना दी जिससे विद्युत पैदा हो गई
शोधकर्ताओं ने बताया कि उन्होंने दो टर्मिनल वाली बैटरी बना दी जिसमें एक जैविक और दूसरा रासायनिक टर्मिनल था. उन्होंने बैक्टीरिया एक इलेक्ट्रोड पर विकसित किए जहां वे मीथेन के बदालव से इलोक्ट्रॉन लेते थे. इस प्रक्रिया में उन्होंने 274 मिली एम्प्स प्रति वर्ग सेंटीमीटर की उच्चतम विद्युत पैदा कर दी. इसमें ऊर्जा परिवर्तन की कारगरता 31 प्रतिशत तक की थी. यह वर्तमान बायोगैस संयंत्रों से बेहतर तकनीक की उम्मीद जगाता है.