यहां हुआ है कई रहस्यम तरीके से मौत, अब ताजा शोध ने सुलझाया गुथ्थी

दुनिया में कई जगहें ऐसी हैं जहां जाना शायद उतना खतरनाक ना हो

Update: 2021-01-29 15:43 GMT

जनता से रिश्ता वेब डेस्क। दुनियामें कई जगहें ऐसी हैं जहां जाना शायद उतना खतरनाक ना हो, लेकिन कुछ रहस्यों (Mystery) के कारण वे ज्यादा चर्चा में रही हैं. ऐसी ही एक जगह है रूस (Russia) के यूराल पर्वत (Ural Mountains) श्रृंखला के दयातलोव पहाड़ (Dyatlov Mountain) या दर्रा. साल 1959 में इस इलाके में नौ युवा पर्वतारोहियों (Mountaineers) की रहस्यम तरीके से मौत (Death) हो गई थी. तभी से इस इलाके बारे में तरह तरह की बातें की जा रही हैं. जिसमें हिमस्खलन (Avalanche), एलियन्स से लेकर एक खराब आणविक परीक्षण जैसी दलीलें शामिल हैं. लेकिन अब ताजा शोध ने इसके रहस्य को सुलझा लिया है और रहस्यमयी मौतों का कारण पता लगा लिया है.

क्या हुआ था
हाल में कम्यूनिकेशन्स अर्थ एंड एनवायर्नमेंट जर्नल में प्रकाशित शोधकार्य में यह रहस्य सुलझाने का दावा किया गया है. जिसमें इस इलाके में अनुभवी पर्वतारोहियों की बर्फ में जमे हुए शव कुछ गंभीर चोटों के साथ मिले थे. इन पर्वतारोहियों में से एक भी जीवित नहीं बचा था. जिनकी मौत के कारण को दयातलोव दर्रा रहस्य कहा गया था.
नहीं मिले थे बहुत से सवालों के जवाब
आधिकारिक जांच होने के बाद भी इस मामले में बहुत सारे सवालों के जवाब अनुत्तरित रह गए थे. जबकि पिछले साल ही आधिकारिक तौर पर कहा था कि ये छात्र हिमस्खलन में मारे गए थे. नए शोध में बताया जा रहा है कि इन मौतों के पीछे कई मिले जुले कारक थे. शोध के अनुसार जब ये छात्र टेंट लगा रहे थे तभी हिमस्खलन शुरू हो गया और तेज बर्फीली हवा ने उन्हें -25 डिग्री तापमान में खींच लिया.
केवल यही पता है कि
स्विटजरलैंड के ईपीएफएल की स्नो एवलॉन्च सिम्यूलेशन लैबोरेटरी के प्रमुख और इस लेख के सहलेखक योहान गॉम का कहना है कि दयातलोव दर्रे के रहस्य के बहुत से हिस्सों की कभी व्याख्या नहीं हो सकेगी क्योंकि उसे बताने के लिए एक भी व्यक्ति जीवित नहीं है. साल 1959 को एक फरवरी की रात को इगोर दयातलोव की अगुआई में पर्वतारोहियों ने कोल्यत स्यल्को के ढाल पर एक कैम्प लगाया. आधी रात के समय कुछ ऐसा अप्रत्याशित हुआ कि अभियान के सभी सदस्य टेंट छोड़ कर जंगल की तरफ भागे जो नीचे की ओर एक किलोमीटर से ज्यादा की दूरी पर था. उस दौरान उन्होंने पूरी तरह से सही कपड़े भी नहीं पहने थे.
कैसे थे घाव
शवों को देख कर पाया गया कि किसी के शरीर का रंग गायब हो गया था तो किसी की आंखे ही गायब थी. दूसरों में से कुछ को बहुत ज्यादा अंदरूनी चोटें थी लेकिन बाहर किसी तरह का निशान नहीं था. एक शव ने उच्च स्तर का विकिरण का सामना किया था तो एक महिला की जीभ ही गायब थी. इस घटना पर आपराधिक मामला दर्ज किया गया, लेकिन उसे जल्द ही बंद कर दिया गया.
ये दी गईं दलीलें
जल्द ही यह घटना रूस की सबसे बड़े रहस्यों में से एक बन गई. इसपर बहुत सारी किताबें, और फिल्में भी बनाई गईं. इसमामले में कई तरह की आशंकाएं जताई गई हैं. इसमें येति जैसे जानवर का हमला, गुप्त हथियारों के परीक्षण की वजह से विस्फोट, किसी रॉकेट के अवशेष का गिरना और यहां तक कि अनजान मनोवैज्ञानिक ताकत की वजह से सभी पर्वतारोही का एक दूसरे को मार डालना भी शामिल है.
60 साल बाद फिर खुला केस
गॉम को इस मामले की जानकारी 2019 में एक पत्रकार से मिली जिसने इस मामले को फिर से खुलने की बात बताई. गॉम फॉरेंसिक जियोटेक्निकल जांचों का अनुभव रखने वाले ईटीएस ज्यूरिख के प्रोफेसर एलेक्जेंडर पूजरिन जुड़ गए. पिछले साल वकीलों ने निष्कर्ष निकाला कि इस समूह की मौत हिमस्खलन से हुई थी और बहुत से हाइपरथर्मिया से मर गए थे.
कई सवालों के नहीं मिले जवाब
लेकिन फिर भी बहुत सारे सवाल अब भी कायम थे जिनमें सबसे अहम यही था कि इतने कम ढाल पर पर हिमस्खलन कैसे हो सकता है. अगर यह टेंट लगाने की वजह से शुरू हुआ था तो वह इतने समय बाद क्यों शुरू हुआ और मरने वालों के शव पर ऐसे जख्म क्यों आए जो हिमस्खलन की वजह से नहीं आते हैं.
क्या किया शोधकर्ताओं ने
शोधकर्ताओं ने एक सिम्यूलेशन के विश्लेषणात्मक मॉडल के जरिए पाया कि पर्वतारोहियों ने ऐसी जगह टेंट लगाया होगा जहां बर्फ की कमजोर परत थी जिसपर रात को हवा ने और बर्फ जमा दी होगी जिससे हिमस्खलन शुरू हो गया होगा. उन्होंने यह पाया कि घटना के समय पर्वतारोही लेटे होंगे. और उनकी पड़ताल पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से मेल खा रही थीं.
गॉम का कहना है कि उन्हें लगा कि वे इस मामले में एक डिटेक्टिव की तरह काम कर रहे हैं. लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि शोधकर्ता रहस्य पूरी तरह सुलझाने का दावा नहीं कर रहे हैं. गॉम को लगता है कि यह प्रकृति की निर्दयी ताकत के सामने साहस और दोस्ती की एक महान कहानी है.


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