पृथ्वी से मंगल तक जैसी लंबी यात्रा एस्ट्रोनॉट्स के लिए लाएंगी कई मनोवैज्ञानिक चुनौतियां

मनोवैज्ञानिक चुनौतियां

Update: 2021-03-25 05:22 GMT

मंगल ग्रह (Mars) पर मानव अभियान (Human Mission) भेजना हो या फिर वहां बस्ती बसाने की योजना हो. हमारे एस्ट्रोनॉट्स के लिए वहां जाना ही आसान काम नहीं है. यह बात एस्ट्रोबायोलॉजिस्ट से बेहतर कोई नहीं समझता है. एक नए अध्ययन से पता चला है कि अंतरिक्ष में भारहीनता (Weightlessness) हमारे एस्ट्रोनॉट्स की संज्ञात्मक सोच (Cognitive Thinking) और भावनात्मक प्रतिक्रिया (Emotional Responses) पर बहुत बुरा प्रभाव डालती है. यह बात खास तौर पर लंबे अंतरिक्ष अभियानों पर ज्यादा लागू होती है.

क्या अध्ययन किया
मंगल पर मानव अभियान नासा जैसी स्पेस एजेंसी के लिए अब ऐसी योजना बन चुकी है जिस पर काम चल रहा है. इसके लिए एस्ट्रोनॉट्स को अंतरिक्ष में पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा समय गुजारना होगा. फ्रंटियर्स ऑफ फिजियोलॉजी जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में शोधकरर्ताओं ने माइक्रोग्रैविटी की वजह से मानव शरीर में होने वाले फिजियोलॉजिक बदलावों का विश्लेषण किया.
क्षमताओं पर असर
शोधकर्ताओं ने पाया कि बाह्य अंतरिक्ष के सूक्ष्मगुरुत्व या माइक्रोग्रैविटी का वातावरण अंतरिक्ष यात्रियों की संज्ञानात्मक क्षमताओं को धीमा कर सकता है और वहीं उनकी भावनाओं की पहचान करने की क्षमता को और ज्यादा खराब कर सकता है.
क्या किया गया प्रयोग
फ्रंटियर्स ऑफ फिजियोलॉजी के मुताबिक इस अध्ययन के लिए 24 प्रतिभागियों को 60 दिन बिस्तर पर ऐसी अवस्था में गुजारने पड़े जिसमें उनका मस्तिष्क उनके निचले हिस्से के भी नीचे रखने की जरूरत पड़ी. उन्हें बेड रेस्ट में 6 डिग्री झुका कर रखागया जिससे माइक्रोग्रैविटी का माहौल मिल सके. इसमें प्रतिभागियों को 8 सदस्यों के तीन समूह में बांटा गया.
नासा का टेस्ट
प्रतिभागियों को नासा के दस संज्ञानात्मक टेस्ट देना आवश्यक था. शोधकर्ताओं ने पाया कि सभी तीन समूहों में संज्ञानात्मक दायरे धीमे हो गए लेकिन ऐसा केवल कुछ समय के लिए ही था. क्योंकि समय के गुजरने के साथ यह स्थिर हो गया था. लेकिन शोध से पता चला कि भावनात्मक पहचान की क्षमता हर दिन खराब ही होती गई क्योंकि प्रतिभागी चेहरे के भावों को समझने में ज्यादा समय ले रहे थे.
एक से ही और सामान्य गुण थे पहले सभी में
अध्ययन के मुताबिक तीन प्रयोगात्मक समूह संज्ञानात्मक प्रदर्शन, सोने की समयावधि, सर्वे प्रतिक्रिया आदि के मामले में बहुत अलग नहीं थे. शुरुआत सभी प्रतिभागियों में समान्य स्तर की थकान, नींद गुणवत्ता, मानसिक थकान, शारीरिक थकान, कामको बोझ, निम्न स्तर की एकरसता, बोरियत, अकेलापन आदि लक्षण दिखे थे.
ट्रेनिंग की अहमियत
संज्ञानात्मक सोच इंसान के ज्ञान, जानकारी, निर्णय, याद्दाश्त, आदि से संबंधित होती है. अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए यह बहुत अहम होती है. इतनी ही अहम अंतरिक्ष यात्रियों को भावनात्मक पहचान की क्षमता होती है. क्योंकि यात्री बहुत सारा समय एक साथ बंद वातावरण में गुजारते हैं. नतीजों में स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया है कि यात्रा से पहले मनोवैज्ञानिक ट्रेनिंग और अंतरिक्ष में उन्हें और ज्यादा सहयोग कितना आवश्यक है.
बेशक यह काम आसान नहीं है तो यह पूरी तरह से नया भी नहीं हैं. पहले ही अंतरिक्ष यात्रियों को लंबे समय तक अकेले रहने का प्रशिक्षण दिया जाता रहा है. जिसमें माइक्रोग्रैविटी समेत अकेला, एकसा भोजन, आदि चुनौतियों से निपटने के लिए उन्हें बहुत समय के लिए ऐसे माहौल में रख कर प्रशिक्षण दिया जाता है. लेकिन बहुत लंबे अभियानों के लिए कई नई चुनौतियां लेकर आएगा जिनमें कुछ ये भी होंगी.


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