क्या होता है उपछाया चंद्रग्रहण? भारत में क्यों नहीं लगा सूतक
चंद्रग्रहण कई तरह का होता है। इसके लिए उपछाया चंद्रग्रहण, आंशिक चंद्रग्रहण, पूर्ण चंद्रग्रहण, खंडछायायुक्त चंद्रग्रहण, ब्लड मून और सुपरमून जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। किसी भी ग्रहण की शुरुआत में चंद्रमा धरती की उपछाया में प्रवेश करता है। जब चंद्रमा पृथ्वी की वास्तविक छाया में प्रवेश करता है, तभी उसे चंद्रग्रहण का नाम दिया जाता है। लेकिन, अगर चंद्रमा धरती की वास्तविक छाया में प्रवेश किए बिना बाहर निकल जाता है तो उसे उपछाया चंद्रग्रहण का नाम दिया जाता है। ज्योतिष में उपछाया चंद्रग्रहण को चंद्रग्रहण का दर्जा नहीं दिया गया है। यही कारण है कि भारत में इस आंशिक चंद्रग्रहण पर सूतक नहीं लगा और कारण मंदिरों के कपाट बंद नहीं किए गए। सभी धार्मिक अनुष्ठान पहले की ही तरह ही चलते रहे।
कब लगता है आंशिक चंद्रग्रहण ?
आंशिक चंद्रग्रहण उस स्थिति को कहते हैं जब चंद्रमा और सूर्य के बीच पृथ्वी पूरी तरह नहीं आती है। इस वजह से पृथ्वी पूरे चंद्रमा को ढक नहीं पाती है। पृथ्वी की कुछ छाया चंद्रमा के कुछ हिस्से को ढक पाती है। इसलिए इसे आंशिक चंद्रग्रहण कहा जाता है। आंशिक चंद्रग्रहण कुछ ही घंटों का होता है। 16 जुलाई, 2019 को आंशिक चंद्रग्रहण था।अंतरिक्ष में इस दुर्लभ नजारे का दीदार करने के लिए अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक की वेधशालाओं ने अपने टेलिस्कोप को चांद की ओर मोड़ दिया था। उन्होंने सुपरमून का दीदार कराने के लिए इसका लाइव वेबकास्ट भी किया। खंडछायायुक्त चंद्रग्रहण हमेशा आंशिक चंद्रग्रहण से शुरू होता है। पृथ्वी की बाहरी छाया चंद्रमा के चेहरे पर पड़ती है। इसे देखना बहुत मुश्किल होता है। इस साल के सारे चंद्रग्रहण Penumbral eclipse या खंडछायायुक्त चंद्रग्रहण ही होंगे।
क्या है ब्लड मून, क्यों लाल दिखता है चांद
दरअसल, जब चंद्रमा पृथ्वी की छाया में पूरी तरह ढक जाता है तो अंधेरा छा जाता है लेकिन पूरी तरह स्याह नहीं होता। इसके बजाए यह लाल रंग का दिखता है इसलिए पूर्ण चंद्र ग्रहण को लाल या रक्त चंद्रमा भी कहा जाता है। सूर्य के प्रकाश में दृश्य प्रकाश के सभी रंग होते हैं। पृथ्वी के वातावरण से गुजरने के दौरान प्रकाश में नीला प्रकाश छन जाता है जबकि लाल हिस्सा इससे गुजर जाता है। इसलिए आकाश नीला दिखता है और सूर्योदय और सूर्यास्त के समय लालिमा छा जाती है। चंद्र ग्रहण के मामले में लाल प्रकाश पृथ्वी के वातावरण से होकर गुजरता है और यह चंद्रमा की ओर मुड़ जाता है जबकि नीला प्रकाश इससे बाहर रह जाता है। इससे चंद्रमा पूरी तरह लाल नजर आता है। यह नारंगी या लाल से लेकर भूरे रंग का भी हो सकता है।
सुपरमून क्या होता है? क्या है सुपर का अर्थ?
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने कहा कि 2021 में अन्य पूर्ण चंद्रमाओं की तुलना में फ्लावर मून पृथ्वी के सबसे निकट पहुंचेगा। जिसके कारण यह वर्ष के सबसे निकटतम और सबसे बड़े पूर्ण चंद्रमा के रूप में दिखाई देगा।पृथ्वी का चक्कर काटते समय ऐसी स्थिति बनती है जब चंद्रमा पृथ्वी के सबसे नजदीक होता है यानी सबसे कम दूरी होती है। इस दौरान कक्षा में करीबी बिंदु से इसकी दूरी करीब 28,000 मील रहती है। इसी घटना को सुपरमून कहा जाता है। चंद्रमा के निकट आ जाने से यह आकार में बड़ा और चमकीला दिखता है। वैसे, सुपरमून और सामान्य चंद्रमा के बीच कोई अंतर निकालना कठिन है जब तक कि दोनों स्थिति की तस्वीरों को किनारे से ना देखें।
क्या होता है चंद्रग्रहण?
चन्द्रग्रहण एक खगोलीय घटना है यह घटना तब घटित होती है जब सूरज और चांद के बीच में पृथ्वी आ जाती है ऐसे में चांद तक पहुंचने वाली सूरज की रोशनी रूक जाती है और पृथ्वी की छाया चांद पर पड़ती है इसे ही चन्द्रग्रहण कहते हैं। भारतीय मान्यताओं में चन्द्रग्रहण का काफी महत्व है साथ ही खगोल विज्ञान में भी इसे खास माना जाता है। भारतीय पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक चन्द्रग्रहण को नहीं देखना चाहिए ऐसा करना अशुभ होता है जबकि चन्द्रग्रहण के तुरंत बाद भी किसी काम को नहीं करना चाहिए। हालांकि वैज्ञानिक ऐसा नहीं मानते हैं और अपने बड़े-बड़े टेलीस्कोप से इस दुर्लभ खगोलीय घटना का मजा उठाते हैं। नासा के मुताबिक 21वीं सदी में पृथ्वी 228 चन्द्रग्रहणों की गवाह बनेगी। पूर्ण चन्द्रग्रहण के समय चांद एकदम लाल रंग का हो जाता है तब इसे ब्लड मून कहा जाता है। ऐसा तब होता है जब धरती पूरी तरह चांद और सूरज के बीच में आ जाती है लेकिन सूरज की कुछ रोशनी चांद पर पड़ रही होती है। नासा के मुताबिक चांद कितना लाल दिखेगा ये धरती के वातावरण में मौजूद धूल और बादलों पर निर्भर करता है।