पुराणों में आयुर्वेद:- Ayurveda in Puranas
पुराणों के माध्यम से ही आयुर्वेद चिकित्सा के अध्ययन का प्रचार-प्रसार करने का प्रयास किया गया। अनेक पुराणों में निःशुल्क चिकित्सालयों की स्थापना से होने वाले लाभों की प्रशंसा की गई है। इससे उस समय चिकित्सा देखभाल के महत्व और उनके प्रति उपलब्ध सुविधाओं का पता चलता है। हम यह जान सकते हैं कि उन दिनों रोगी को दवा के साथ-साथ भोजन भी मुफ्त में दिया जाता था।
उन दिनों आयुर्वेद की प्रगति स्थिर थी। आयुर्वेद को वेदों और शास्त्रों के अध्ययन के साथ एक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाता था। It was taught as a compulsory subject.
प्रायशः सभी पुराणों में आयुर्वेद विषयक सिद्धान्त कथानको के माध्यम से प्रस्तुत किये गये हैं तथापि अग्नि पुराण विश्वकोश होने के कारण सभी विद्याओं का आकार होने से तथा सभी विद्याओं के उत्स के रूप में प्रख्यात होने से इसमें आयुर्वेद के अनेक प्रकार व सिद्धांत निदर्शित हुए हैं।
हम प्रायशः मानवायुर्वेद को ही जानते हैं, अग्नि पुराण में वृक्षायुर्वेद, हस्त्यायुर्वेद, गवायुर्वेद इत्यादि अनेक प्रकार के आयुर्वेद वर्णित है जो कि कथाओं के माध्यम से वर्णित हैं तथा अद्यावधि प्रासंगिक है। described through and is relevant to date.
अग्नि पुराण में 279 वे अध्याय से 293 अध्याय तक विभिन्न औषधो का वर्णन व आयुर्वेद का वर्णन मिलता है। 279 वे अध्याय में सिद्ध औषधो का निरूपण किया गया है । अग्नि कहते हैं –
आयुर्वेदं प्रवक्ष्यामि सुश्रुताय यमब्रवीत ।
देवो धन्वन्तरिः सारं मृत सञ्जीवनीकरम् ॥
अग्नि, वशिष्ट जी से कहते हैं कि अब मैं उस आयुर्वेद का वर्णन कर रहा हूँ जिसको भगवान धन्वन्तरि ने सुश्रुत को उपदेश दिया था। यह आयुर्वेद का सार है और मृत्यु पुरुष को को भी जीवित बना देता है।
आयुर्वेद -- आयुर्वेद शब्द दो शब्दों 'आयु' और 'वेद' से मिलकर बना है। आयु का अर्थ होता है 'जीवन' और वेद मतलब 'विज्ञान' होता है। अर्थात् आयुर्वेद का अर्थ जीवन-विज्ञान या आयुर्विज्ञान होता है।
अग्नि -- भौमाग्नि, दिव्याग्नि, जठराग्नि
अपथ्य -- त्यागने योग्य, सेवन न करने योग्य
अनुभूत -- आज़माया हुआ tried and true
असाध्य -- लाइलाज
अजीर्ण -- बदहजमी
अभिष्यन्दि -- भारीपन और शिथिलता पैदा करने वाला, जैसे दही
अनुलोमन -- नीचे की ओर गति करना
अतिसार -- बार बार पतले दस्त होना frequent loose stools
अर्श -- बवासीर
अर्दित -- मुंह का लकवा
अष्टांग आयुर्वेद -- कायचिकित्सा, शल्यतन्त्र, शालक्यतन्त्र, कौमारभृत्य, अगदतन्त्र, भूतविद्या, रसायनतन्त्र और वाजीकरण।
आत्मा -- पंचमहाभूत और मन से भिन्न, चेतनावान्, निर्विकार और नित्य है तथा साक्षी स्वरूप है।
आम -- खाये हुए आहार को 'जब तक वह पूरी तरह पच ना जाए', आम कहते हैं। अन्न-नलिका से होता हुआ अन्न जहाँ पहुँचता है उस अंग को 'आमाशय' यानि 'आम का स्थान' कहते हैं।
आयु -- आचार्यों ने शरीर, इंद्रिय, मन तथा आत्मा के संयोग को आयु कहा है : सुखायु, दुखायु, हितायु, अहितायु
आहार -- खान-पान food and drink
इन्द्रिय -- कान, त्वचा, आँखें, जीभ, और नाक
उपशय -- अज्ञात व्याधि में व्याधि के ज्ञान के लिए, तथा ज्ञात रोग में चिकित्सा के लिए, उपशय का प्रयोग किया जाता है। ये छः हैं- १) हेतुविपरीत, २) व्याधिविपरीत ३) हेतु-व्याधिविपरीत ४) हेतुविपरीतार्थकारी ५) व्याधिविपरीतार्थकारी तथा ६) हेतु-व्याधिविपरीतार्थकारी
दीपक -- जो द्रव्य जठराग्नि तो बढ़ाये पर पाचन-शक्ति ना बढ़ाये, जैसे सौंफ
धातु -- रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र : ये सात धातुएँ हैं।
निदान -- कारण, रोग उत्पत्ति के कारणों का पता लगाना
निदानपञ्चक -- निदान, पूर्वरूप, रूप, उपशय, सम्प्राप्ति
नस्य -- नाक से सूंघने की नासका
पंचांग -- पांचों अंग, फल फूल, बीज, पत्ते और जड़
पंचकर्म -- वमन, विरेचन, अनुवासन बस्ति, निरूह बस्ति तथा नस्य
पंचकोल -- चव्य,छित्रकछल, पीपल, पीपलमूल और सौंठ
पंचमूल बृहत् -- बेल, गंभारी, अरणि, पाटला , श्योनक
पंचमूल लघु -- शलिपर्णी, प्रश्निपर्णी, छोटी कटेली, बड़ी कटेली और गोखरू। (दोनों पंचमूल मिलकर दशमूल कहलाते हैं )
परीक्षित -- परीक्षित, आजमाया हुआ tested, tried
पथ्य -- सेवन योग्य
परिपाक -- पूरा पाक जाना, पच जाना to be completely digested, to be digested