संभव है महिलाओं के पीरियड्स का 'इलाज'?, पढ़ें क्या कहते हैं वैज्ञानिक

इंसान क्या है अगर साधारण वैज्ञानिक भाषा में कहें तो जानवर. जिसकी मादा यानी महिलाओं को पीरियड्स आते हैं

Update: 2022-04-11 17:06 GMT
इंसान क्या है अगर साधारण वैज्ञानिक भाषा में कहें तो जानवर (Animal). जिसकी मादा यानी महिलाओं को पीरियड्स आते हैं. जबकि, जानवरों की दुनिया में अधिकांश मादा जीवों के शरीर में पीरियड्स जैसी कोई प्राकृतिक प्रक्रिया नहीं होती. फिर महिलाओं के साथ ही ऐसा क्यों है. पीरियड्स के समय उन्हें दर्द, थकान और मूड स्विंग जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. 
यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग की गाइनेकोलॉजिस्ट और प्रोफेसर हिलेरी क्रिचले कहती हैं कि अगर किसी महिला को एंडोमेट्रियोसिस (Endometriosis) या एडिनोमायोसिस (Adenomyosis) नामक बीमारी नहीं है तो पीरियड्स के समय उसका जीवन कष्टप्रद होता है. 25 साल से कम उम्र की 70 फीसदी लड़कियों को दर्द, थकान और तात्कालिक मन बदलाव की स्थिति से गुजरना पड़ता है. जबकि इसी उम्र समूह की 30 फीसदी लड़कियों को ज्यादा ब्लीडिंग यानी रक्तस्राव की समस्या से जूझना पड़ता है. वैश्विक स्तर पर महिलाओं को आयरन की कमी होने की प्रमुख वजह ये भी है.
यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल की गाइनेकोलॉजिकल सर्जन धारानी हापानंगमा कहती हैं कि सांस्कृतिक मान्यताओं और परंपराओं के चलते इस दर्द का कोई इलाज भी नहीं हो पाता. पिछली इंसानी पीढ़ियां ज्यादातर समय गर्भधारण और कम पोषण में गुजारती थी. इसलिए उन्हें पीरियड्स की समस्याओं से कम जूझना पड़ता था. साइकिल कम होता था. लेकिन अब इंग्लैंड और वेल्स में हर साल अत्यधिक रक्तस्राव की वजह से 30 हजार महिलाओं को गर्भाशय की सर्जरी करानी होती है. इसके अलावा इलाज में दर्द की दवाएं, ब्लड क्लॉटिंग एजेंट्स और हॉर्मोनल कॉन्ट्रासेप्टिव्स दिए जाते हैं. कुछ के पीरियड्स रुक जाते हैं तो कुछ के कम हो जाते हैं. लेकिन इससे साइड इफेक्ट्स भी होते हैं. 
येल यूनिवर्सिटी में माहवारी के इवोल्यूशन पर स्टडी करने वाले गुंटर वैगनर कहते हैं कि यह दुनिया की एक बड़ी समस्या है, जो महिलाओं से सीधे जुड़ी है. लेकिन 30 सालों से लगातार अध्ययन होने के बाद भी आज तक इसका कोई स्थाई इलाज नहीं है. गुंटर कहते हैं कि दुनिया में इंसानी शरीर के हर अंग का नेशनल इंस्टीट्यूट है लेकिन महिलाओं के रिप्रोडक्टिव ट्रैक्ट को लेकर कोई संस्थान नहीं है. माहवारी से जुड़े लक्षण भले ही जानलेवा न हो लेकिन ये जीवन को बदल देते हैं. महिलाओं की सोच को बदल देते हैं. इसलिए इन्हें प्राथमिकता पर रखना चाहिए. 
बायोलॉजी के अनुसार माहवारी एक विचित्र प्रक्रिया है. बायोलॉजी इसे प्राकृतिक नहीं मानता क्योंकि अधिकांश जानवरों में यह प्रक्रिया नहीं होती. जिसकी वजह से साइंटिस्ट इसके बारे में ज्यादा जानते भी नहीं है. लेकिन हमें यह पता है कि माहवारी हर महीने होने वाली ऐसी प्रक्रिया है जो गर्भधारण की तैयारी होती है. जिसका संचालन हॉर्मोन्स करते हैं. इसका विज्ञान ये है कि जब फर्टिलाइज्ड एग्स यानी भ्रूण (Embryo), गर्भाशय (Womb) के अंदर पनपता है तब कोशिकाओं की एक परत बनती है, उसे एंडोमेट्रियम (Endometrium) कहते हैं. भ्रूण इसी के अंदर पनपता है. अगर अंडा फर्टिलाइज्ड नहीं है, तो ये एंडोमेट्रियम टूट जाता है, ये खून के साथ माहवारी के रूप में बाहर आता है. इसे ही पीरियड्स कहते हैं. 
ज्यादातर स्तनधारियों (Mammals) पीरियड्स जैसी प्रक्रिया तब ही शुरु होती है, जब भ्रूण बन जाता है. इंसानों के अलावा कुछ ही जीव ऐसे हैं, जिन्हें पीरियड्स की जरूरत है. जैसे प्राइमेट्स यानी बंदरों की प्रजातियां, चमगादड़ और एलिफेंट श्रू (Elephant Shrew). यह न तो हाथी है न ही श्रू. सामान्य तौर पर माना जाता है कि कुतियों को पीरियड्स नहीं होता, लेकिन वो अपनी वेजाइना से ब्लीड करती है, न कि भ्रूण के रास्ते. असल में मामला ये है कि इंसानों के अलावा सिर्फ बंदर ही ऐसे जीव हैं, जिनसे पीरियड्स सीधे तौर पर जुड़ा है. बाकी दुनिया में मौजूद किसी भी जीव से इसका संबंध नहीं है. लेकिन हैरानी की बात ये है कि माहवारी कई बार इवॉल्व हुई है. लेकिन इसे लेकर अभी तक कोई स्पष्टता नहीं है. 
साल 2016 में इस मामले को लेकर वैज्ञानिकों के बीच बड़ी चर्चा और बहस हुई, जब माहवारी क्लब में एक और जानवर शामिल हुआ. ये जानवर है स्पाइनी चुहिया (Female Spiny Mice). इसे वैज्ञानिक भाषा में एकोमिस कैहिरिनस (Acomys cahirinus) कहते हैं. इसमें एक बड़ी तगड़ी प्राकृतिक क्षमता होती है. यह अपने घावों को बहुत तेजी से ठीक कर लेती है. जैसे कोई चमगादड़ या छिपकली करती है. इन चुहियों के भी पीरियड्स आते हैं.
मोनाश यूनिवर्सिटी के रिप्रोडक्टिव बायोलॉजिस्ट पीटर टेंपल-स्मिथ ने कहा कि किसी को उम्मीद भी नहीं थी कि एक चुहिया के पीरियड्स होते होंगे. चुहिया के पीरियड्स के बारे में पीटर की स्टूडेंट नादिया बेलोफियोर ने खोज की थी. नादिया ने स्टडी के दौरान देखा कि चुहिया के यौन अंगों से तरल पदार्थ निकल रहा है, जो कई बार लाल रंग का हो जाता था. जब जांच की तो पता चला कि इस चुहिया की माहवारी, महिलाओं की माहवारी से मिलती-जुलती है. उनके माहवारी का समय इंसानों की तरह के समान परसेंटेंज में होता है. इसके बाद वो मेनोपॉज (Menopause) जैसी स्थिति में भी जाती है. कई बार उनके अंदर प्री-मेंस्ट्रुअल सिंड्रोम (PMS) देखने को मिलता है. इंसानों में PMS बेहद सामान्य होता है. इसकी वजह से थकान, मूड स्विंग, खाने का मन करना या नहीं करना. चुहियों के साथ भी ऐसा ही होता है. 
पीटर कहते हैं कि इसका मतलब ये है कि अगर महिलाओं को पीरियड्स की समस्याओं से मुक्त करना है उससे पहले स्पाइनी चुहिया पर प्रयोग करने होंगे. क्योंकि यह चुहिया इंसानी माहवारी का सर्वोत्तम प्रायोगिक उदाहरण हो सकता है. कुछ लोगों ने इससे पहले गर्भाशय निकालने का तरीका निकाला. कुछ लोगों ने प्रोजेस्टेरॉन (Progesterone) और इस्ट्रोजेन (Oestrogen) इंजेक्ट कर देते थे. लेकिन यह स्थाई और प्राकृतिक तरीका नहीं है. हमें स्पाइनी चुहिया पर प्रयोग करके महिलाओं को कष्ट से दूर करने का तरीका निकालना होगा. 
जर्मन दवा कंपनी बेयर के साथ मिलकर पीटर टेंपल-स्मिथ ने ज्यादा रक्तस्राव करने वाली स्पाइनी चुहिया की ब्रीड तैयार करने की कोशिश की थी. ताकि उसपर प्रयोग किए जा सकें. यह समझा जा सके कि माहवारी के दौरान क्या-क्या दिक्कतें आती हैं. इलाज क्या हो सकता है. लक्षण क्या हैं. क्योंकि इंसानों की तरह ही स्पाइनी चुहिया को भी कठिन और ज्यादा दर्दनाक माहवारी होती है. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. दोनों मिलकर भी ऐसा नहीं कर पाए. इसका मतलब ये है कि महिलाओं की माहवारी और चुहिया की माहवारी एक जैसी हो सकती है लेकिन इनका ट्रीटमेंट अलग-अलग करना होगा.
फ्रेडरिक मिशर इंस्टीट्यूट में कैंब्रिज ग्रुप की सदस्य मार्गरीटा यायोई तुर्को ने कहा कि हर महिला के ऑर्गेनॉयड्स (Organoids) अलग-अलग तरह से रिएक्ट करते हैं. वो अपने शरीर से निकलने वाले हॉर्मोन्स के मुताबिक कार्य करते हैं. जरूरी ये है कि हमें पीरियड्स की विभिन्नता को समझना होगा. उसमें सामान्य क्या है, वो समझना होगा. अब तो मेडिकल साइंस इतना आगे बढ़ गया है कि वो स्क्रैच बायोप्सीस किये जा सकते हैं. हम बुरे पीरियड्स से गुजरने वाली महिलाओं के ऑर्गेनॉयड्स की जांच करके सामान्य और अलग क्या है, ये खोज सकते हैं. इस बात पर धारानी हापानंगमा ने भी सहमति जताई है. उन्होंने कहा कि यह नई शुरुआत है. क्योंकि एंडोमेट्रियम मल्टीसेलुलर अंग है. 
द गार्जियन में प्रकाशित खबर के अनुसार यूनिवर्सिटी ऑफ वॉरविक के क्लीनिशियन जैन ब्रोसेंस इस समय महिलाओं की पीरियड्स से होने वाले दर्द, थकान और मूड स्विंग की दिक्कत को खत्म करने के लिए एक नया प्रयोग कर रहे हैं. इस प्रयोग का नाम है एसेंब्लॉयड (Assembloid). यानी ऑर्गेनॉयड्स को एंडोमेट्रियल कोशिका की परत से मिला देना. ब्रोसेंस के साथ गुंटर वैगनर भी लगे हुए हैं.
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