प्लाज्मा थैरेपी को लेकर ICMR की चेतावनी: कोरोना मरीज पर इसका इस्तेमाल ठीक नहीं, जानें पूरी जानकारी
प्लाज्मा थैरेपी को एक उम्मीद के तौर पर देखा जा रहा है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। प्लाज्मा थैरेपी को एक उम्मीद के तौर पर देखा जा रहा है. हालांकि विशेषज्ञ अब इसे लेकर चेतावनी भी दे रहे हैं. इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (ICMR) का कहना है कि हर कोरोना मरीज के मामले में इसका इस्तेमाल ठीक नहीं. साथ ही साथ डॉक्टरों की टीम के मुताबिक कोरोना से रिकवर हो चुके हर व्यक्ति से प्लाज्मा नहीं लिया जा सकता.
जारी हुई एडवाइजरी
बुधवार को ICMR ने प्लाज्मा थेरेपी के अंधाधुंध इस्तेमाल के खिलाफ चेतावनी देते हुए एक रिपोर्ट जारी की. इसमें बताया गया कि किस तरह मॉडरेट कोरोना संक्रमण के मामले में 39 सरकारी और निजी अस्पतालों में प्लाज्मा थैरेपी का इस्तेमाल किया गया. इसके तहत एक चौंकाने वाली बात सामने आई. इसमें दिखा कि प्लाज्मा थैरेपी लेने से ऐसा नहीं होता है कि संक्रमण के गंभीर होने की आशंका कम हो जाए या फिर मौत की दर घर जाए. इसे समझने के लिए उन मरीजों को भी देखा गया, जिन्हें संक्रमण के बाद भी प्लाज्मा नहीं दिया गया था.
पहले भी टोक चुका है
बता दें कि ICMR इससे पहले भी ये कह चुका है कि प्लाज्मा थेरेपी को उपचार कहना अभी जल्दबाजी है. इसके कोई ठोस सबूत नहीं हैं. अब ये कहा गया कि बीमारी से उबर चुके हर व्यक्ति से प्लाज्मा नहीं लिया जा सकता और न ही हर कोरोना संक्रमित को ये देना जरूरी है.
कौन दे सकता है प्लाज्मा
रिकवर हुआ वही व्यक्ति प्लाज्मा दे सकता है, जिसके रक्त में काफी मात्रा में एंटीबॉडी हो. प्लाज्मा थेरेपी या पैसिव एंटीबॉडी थेरेपी के लिए उस व्यक्ति के खून से प्लाज्मा लिया जाता है, जिसे कोरोना वायरस से उबरे हुए 14 दिन से ज्यादा हो चुके हों. संक्रमण से उबर चुके अलग-अलग लोगों के शरीर में अलग-अलग समय तक एंटीबॉडीज बनती रहती हैं. ये उसको हुए संक्रमण की गंभीरता और रोग प्रतिरोधी क्षमता पर निर्भर करता है.
कौन ले सकता है प्लाज्मा
इसके अलावा उसी कोरोना मरीज तो प्लाज्मा दिया जा सकता है, जो बीमारी की शुरुआती अवस्था में हो, वरना एंटीबॉडी देने का कोई खास मतलब नहीं रहता है. जैसे मरीज के कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुए 3 से 7 दिन हुए हों तो उसे प्लाज्मा थैरेपी दी जा सकती है लेकिन वहीं अगर 10 दिन से ज्यादा हो चुके हैं तो ये थैरेपी नहीं दी जानी चाहिए. साथ ही कोरोना संक्रमित और उसके परिवार को इस थैरेपी के बारे में पूरी जानकारी होना चाहिए और थैरेपी दिए जाने से पहले उनसे सहमति ली जानी चाहिए.
क्या कहता है FDA
सीएनएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) भी प्लाज्मा थैरेपी के बारे में एडवाइजरी दे चुका है. उसके अनुसार संक्रमण से बाहर आ चुके उन लोगों से प्लाज्मा नहीं लिया जा सकता, जो वैक्सीन ट्रायल का हिस्सा बने हैं. चूंकि वैक्सीन्स अभी ट्रायल स्टेज में हैं तो इस बारे में कुछ भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता. लिहाजा इसे टालना ही बेहतर है.
क्या है प्लाज्मा थैरेपी
इसके तहत उन लोगों के खून से बीमार लोगों का इलाज किया जाता है, जो इंफेक्शन से ठीक हो चुके होते हैं. यानि वो कोरोना योद्धा जो वायरस को हराकर ठीक हो चुके हैं. इसमें डॉक्टर खून के तत्वों से प्लाज्मा को अलग करते हैं, जिसमें एंटीबॉडीज शामिल होती हैं. इसको बीमारी से लड़ने वाले लोगों को दिया जाता है. फिलहाल इस थैरेपी का इस्तेमाल भारत समेत लगभग 20 देशों में किया जा रहा है, जिसमें अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश भी शामिल हैं. हालांकि विशेषज्ञ लगातार इसके बिना सोचे-समझे उपयोग के लिए सचेत कर रहे हैं.
डार्क नेट का गोरखधंधा
इस बीच डार्क नेट पर कोरोना के इलाज की तरह प्रचारित करते हुए रिकवर्ड लोगों का खून बेचने का धंधा भी चल पड़ा है. बता दें कि डार्क नेट इंटरनेट दुनिया का ऐसा सीक्रेट संसार है, जहां कुछ ही ब्राउजर के जरिए पहुंचा जा सकता है और ये सर्च इंजन में भी नहीं आता है. साइबर दुनिया के अपराधी अवैध तरीके के खून खरीदकर इसे बड़ी कीमत पर लोगों को इंटरनेट पर बेच रहे हैं.