कोरोना संक्रमण कितना गंभीर रूप से बीमार कर सकता है, नाक से लग जाएगा अंदाजा
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस अध्ययन के आधार पर संक्रामक बीमारी के खिलाफ नई उपचार रणनीतियों को विकसित करने में मदद मिल सकती है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। दुनियाभर में फिलहाल कोरोना संक्रमण के मामलों में कमी देखने को मिल रही है, हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे समय में की गई लापरवाही गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती है, इसलिए लोगों के विशेष सावधान रहने की आवश्यकता है। कुछ देशों से सामने आ रहे आंकड़े बताते हैं कि वहां कोरोना के डेल्टा और कुछ नए वैरिएंट्स लोगों को गंभीर रूप से संक्रमित कर रहे हैं। कोरोना संक्रमण और इससे होने वाले खतरों की जांच कर रही वैज्ञानिकों की एक टीम ने हाल ही में बड़ा खुलासा किया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि किसी व्यक्ति की नाक से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह कोरोना संक्रमण की स्थिति में कितने गंभीर रूप से बीमार पड़ सकता है?
जॉर्जिया स्थित ऑगस्ता यूनिवर्सिटी के जॉर्जिया मेडिकल कॉलेज में मेडिसिन विभाग के शोधकर्ताओं ने बताया है कि नाक और ऊपरी गले में मौजूद माइक्रोबायोटा के बायोमार्कर का आकलन करके इस बात का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोई भी व्यक्ति कोरोना संक्रमण की स्थिति में कितने गंभीर रूप से बीमार हो सकता है? वैज्ञानिकों का कहना है कि इस अध्ययन के आधार पर संक्रामक बीमारी के खिलाफ नई उपचार रणनीतियों को विकसित करने में मदद मिल सकती है। आइए इस अध्ययन के बारे में आगे की स्लाइडों में विस्तार से जानते हैं।
नेजल माइक्रोबायोटा और कोरोना संक्रमण का संबंध
जर्नल डायग्नोस्टिक्स में प्रकाशित इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने नेजल माइक्रोबायोटा, सार्स-सीओवी-2 संक्रमण और इसकी गंभीरता के मजबूत संबंधों का जिक्र किया है। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि नाक के ऊपरी हिस्से नासॉफिरिन्जियल के माइक्रोबायोटा को आमतौर पर वायरस, बैक्टीरिया और अन्य रोगजनकों के खिलाफ सुरक्षात्मक कवच के रूप में जाना जाता है। इसकी स्थिति का अगर सही से आकलन कर लिया जाए तो व्यक्ति में कोरोना संक्रमण की गंभीरता का अंदाजा लगाकर कोरोना संक्रमण को गंभीर रूप लेने से रोका जा सकता है।
कोरोना संक्रमितों पर किया गया अध्ययन
शोधर्ताओं ने इस अध्ययन के लिए 49 से 78 वर्ष की आयु वाले 27 कोविड निगेटिव, 30 एसिम्टोमैटिक और 27 सिम्टोमैटिक रोगियों के नेजल माइक्रोबायोटा की जांच की। टीम को अध्ययन के दौरान सिम्टोमैटिक और एसिम्टोमैटिक रोगियों के नेजल माइक्रोबायोटा में अंतर देखने को मिला। अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि सिम्टोमैटिक रोगियों के सैंपल में बैक्टीरिया की संख्या कम थी वहीं एसिम्टोमैटिक रोगियों के सैंपल में माइक्रोबायोटा का पर्याप्त स्तर देखने को मिला।
अध्ययन में क्या पता चला?
जॉर्जिया मेडिकल कॉलेज के मुख्य शोधकर्ता सदानंद फुलजेले कहते हैं, सिम्टोमैटिक रोगियों में नाक बहने और छींकने के लक्षण होते हैं, जिसके माध्यम से माइक्रोबायोटा बाहर आ जाते हैं, यही कारण है कि सिम्टोमैटिक रोगियों में माइक्रोबायोटा का स्तर कम पाया गया है। चूंकि नेजल माइक्रोबायोटा को सुरक्षात्मक कवच के रूप में माना जाता है, ऐसे में इनकी कम संख्या रोगी को गंभीर रूप से बीमार कर सकती है। वहीं एसिम्टोमैटिक लोगों में मौजूद पर्याप्त माइक्रोबायोटा, वायरस से उन्हें सुरक्षित रखने में मदद करती है।
रोग की गंभीरता का अंदाजा लगाना होगा आसान
वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना संक्रमितों के इलाज के दौरान इस पहलू को ध्यान में रखने से डॉक्टरों को मदद मिल सकती है। नेजल माइक्रोबायोटा की जांच के आधार पर रोगियों में संक्रमण की गंभीरता का अंदाजा लगाना आसान हो सकता है। जिस तरह से कोरोना के नए और अधिक संक्रामक वैरिएंट्स के मामले सामने आ रहे हैं, जिनकी प्रकृति के बारे में फिलहाल बहुत ज्यादा ज्ञात नहीं है। ऐसे वायरस से संक्रमण के दौरान रोगियों की स्थिति का समय रहते अंदाजा लगाने और उनकी जान बचाने में यह तरीका कारगर हो सकता है।