हेलो... मैं 161 साल पुराना लाउडस्पीकर हूं... दुनिया में आया था कुछ करने और हो कुछ और रहा है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। लाउडस्पीकर (Loudspeaker) बना तो था आवाज को बढ़ाने और लोगों को स्पष्ट सुनाने के लिए पर आज यह विवाद की 'आवाज' बन गया है. इसे बनाने वाले एलेक्जेंडर ग्राहम बेल या लगातार अपग्रेड करने वाले ढेरों वैज्ञानिकों या कंपनियों का मकसद सिर्फ और सिर्फ आवाज को दूर तक पहुंचाना था. पहले कभी राजनीतिक सभाओं में लगने वाला लाउडस्पीकर आज हर पूजास्थल तक पहुंच गया है. शादियों में, पार्टियों में और समारोहों में ये जोर-जोर से आवाज को बढ़ाते हुए दिख जाता है. यहां तक कि रेडियो, फोन, टीवी, लैपटॉप के अंदर अपने अलग-अलग रूप में मौजूद है. आइए जानते हैं कि लाउडस्पीकर का इतिहास, काम और अन्य रोचक जानकारियां...
कब बना था दुनिया का पहला लाउडस्पीकर (First Loudspeaker of World)
161 साल पहले जोहान फिलिप रीस (Johan Philipp Reis) ने टेलिफोन में इलेक्ट्रिकल लाउडस्पीकर लगाया था. ताकि टोन अच्छे से सुनाई पड़े. लेकिन टेलिफोन के आविष्कारक (फोटो में) एलेक्जेंडर ग्राहम बेल (Alexander Graham Bell) ने 1876 में पहले इलेक्ट्रिक लाउडस्पीकर का पेटेंट करा लिया. उसके बाद अर्नस्ट सिमेंस (Earnst Siemens) ने इसमें कई सुधार किए. जो लगातार होता चला आ रहा है. फिर ये स्पीकर लाउडस्पीकर बन गया. धातु के गोल गड्ढेनुमा आकृति, जिसके पतले हिस्से से आवाज निकलती है और चौड़े हिस्से से दूर-दूर तक फैल जाती है.
लाउडस्पीकर का इतिहास (History of Loudspeaker)
लगातार विकसित हो रहे लाउडस्पीकर को रेडियो में पहली बार 1924 के आसपास लगाया गया था. ये काम किया था जनरल इलेक्ट्रिक के चेस्टर डब्ल्यू राइस और एटीएंडटी के एडवर्ड डब्ल्यू केलॉग ने मूविंग कॉयल तकनीक का उपयोग रेडियो में किया था. 1943 में आल्टिक लैनसिंग ने डुपलेक्स ड्राइवर्स और 604 स्पीकर्स बनाए, जिन्हें 'वॉयस ऑफ द थियेटर' कहते हैं. 1954 में एडगर विलचर ने एकॉस्टिक सस्पेंशन की खोज की, जिसके बाद आप स्पीकर्स वाले म्यूजिक प्लेयर्स लेकर घूम सकते थे. 80 के दशक में बड़े कैसेट प्लेयर्स लेकर लोग घूमते थे. 90 के दशक में वही वॉकमैन में बदल गया.
लाउडस्पीकर कैसे काम करता है? (How Loudpeaker Work)
लाउडस्पीकर या स्पीकर ऐसा यंत्र है, जिसका उपयोग किसी भी प्रकार की ध्वनि को सुनने के लिए किया जाता है. ये विद्युत तरंगों यानी इलेक्ट्रिकल वेव्स को आवाज में बदलता है. जब लाउडस्पीकर किसी विद्युत तरंग को अलग-अलग फ्रिक्वेंसी में रिसीव करता है, तो उसे उसी तरह बदलता है. इसलिए आवाज कम-ज्यादा होती और सुनाई देती है. आवाज को एनालॉग या डिजिटल तरीके से सुन सकते हैं. एनालॉग यानी लाउडस्पीकर को सामान्य म्यूजिक सिस्टम से लगाकर सुन लें. डिजिटल यानी कंप्यूटर में शानदार स्पीकर जोड़कर सुन लें. (फोटोः रॉयटर्स)
लाउडस्पीकर की तकनीक (Technique of Loudspeaker)
लाउडस्पीकर के अंदर आमतौर पर एक चुंबक होता है, जिसके चारों तरफ एक पतली जाली होती है. जैसे ही इलेक्ट्रिकल तरंगें चुंबक से टकराती हैं, वो वाइब्रेशन पैदा करता है. इस वाइब्रेशन से जाली हिलती है. जिसे एमप्लीफाई करके आवाज बाहर की ओर भेज दिया जाता है.
कैसे पता चलती है लाउडस्पीकर की क्वालिटी (Quality of Louspeaker)
लाउडस्पीकर से निकल निकलने वाली आवाज कितनी क्लियर है, यह निर्भर करता है कि उसे इलेक्ट्रिकल सिग्नल कैसे मिल रहे हैं. क्योंकि स्पीकर से जो आवाज निकलती है, उसे फ्रिक्वेंसी या एंप्लीट्यूड कहते हैं. फ्रिक्वेंसी बताती है कि निकलने वाली आवाज ऊंची थी या फिर नीची. इनसे पैदा होने वाले आवाज के दबाव से यह पता चलता है कि लाउडस्पीकर की गुणवत्ता कैसी है. जितनी स्पष्ट आवाज उतना ही शानदार लाउडस्पीकर.
क्यों किया जाता है लाउडस्पीकर की उपयोग (Why Loudspeaker is used)
इस सवाल का बेहद आसान जवाब है. पहला ये कि दूर तक आवाज को पहुंचाया जा सके. दूसरा ये कि आवाज को स्पष्ट तरीके से सुना जा सके. कई बार आवाज की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए भी लाउडस्पीकर का उपयोग किया जाता है. ये दो प्रकार के होते हैं. इटर्नल स्पीकर जैसे मोबाइल या लैपटॉप में मौजूद. बाहरी स्पीकर जैसे वूफर्स, साउंड बार आदि.
स्पीकर के प्रकार में जनता की पहली पसंद लाउडस्पीकर
तकनीकी और आवाज की गुणवत्ता के आधार पर स्पीकर कई प्रकार के होते हैं. ये हैं- सब-वूफर्स यानी होम थियेटर, कार आदि में उपयोग होने वाले यंत्र, लाउडस्पीकर शादी, पार्टी, स्टेज शो, राजनीतिक सभाएं, स्टूडियो स्पीकर बेहद स्पष्ट आवाज निकालते हैं, इनका उपयोग संगीत सुनने और खेलों के उपकरण के लिए किया जाता है. फ्लोर स्टैंडिंग स्पीकर यानी किसी भी फर्श पर खड़े किए जाने वाले स्पीकर, बुकशेल्फ स्पीकर, नाम से अंदाजा लगता है इसका. सेंट्रल चैनल स्पीकर यानी टीवी की आवाज बेहतर करने के लिए किया जाता है. सैटेलाइट स्पीकर यानी छोटे होते हैं. ये सब-वूफर जैसे ही होते हैं. इन-वॉल स्पीकर को सीलिंग स्पीकर भी कहते हैं. ये महंगे आते हैं और इंस्टॉलेशन भी आसान नहीं होता. इनके अलावा ऑन-वॉल स्पीकर, ब्लूटूथ स्पीकर और आउटडोर स्पीकर.
लाउडस्पीकर के फायदे और नुकसान (Benefits and Disadvantage of Loudspeaker)
फायदा सिर्फ इतना है कि दूर तक स्पष्ट आवाज सुनने के लिए इसका उपयोग किया जाता है. नुकसान ये है कि ये आकार में बड़े और वजनी होते हैं. रखने के लिए अधिक जगह लगती है. कई बार इनके लिए अलग से बिजली सप्लाई दौड़ानी पड़ती है