दुनिया के सबसे बड़े न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर में ईंधन परीक्षण शुरू, जानें क्या है मकसद?

दुनिया के सबसे बड़े न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर में ईंधन परीक्षण को शुरू कर दिया गया है

Update: 2021-09-26 15:41 GMT

दुनिया के सबसे बड़े न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर में ईंधन परीक्षण को शुरू कर दिया गया है। वैज्ञानिकों की एक टीम फ्रांस में फ्यूजन रिएक्टर को ताकत देने के लिए हाइड्रोजन के एक अत्यंत दुर्लभ रूप की क्षमता का परीक्षण कर रहे हैं। अगर उनका यह परीक्षण सफल साबित होता है तो इससे दुनिया को क्लीन एनर्जी का एक बहुत बड़ा जरिया मिल जाएगा। इससे न केवल जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटेगी, बल्कि पर्यावरण को भी लाभ होगा।

क्या होता है न्यूक्लियर फ्यूजन?
न्यूक्लियर फ्यूजन को हिंदी में परमाणु संलयन कहा जाता है। यह तब होता है जब दो परमाणु एक में जुड़ते हैं। इससे भारी मात्रा में ऊर्जा निकलती है - जो सूर्य और अन्य सितारों को शक्ति प्रदान करने के लिए पर्याप्त है। संलयन केवल तब होता है जब परमाणु अत्यधिक गर्मी और दबाव में होते हैं। इसके बावजूद वैज्ञानिकों को अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि पृथ्वी पर ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए फ्यूजन का उपयोग कैसे किया जाए।
न्यूक्लियर फ्यूजन के कई फायदे
अगर वैज्ञानिकों को न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर को चलाने में सफलता मिल गई तो इससे कई फायदे होंगे। जीवाश्म ईंधन के जलने के विपरीत फ्यूजन प्रॉसेस में किसी भी ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन नहीं होता है। इसका मुख्य शक्ति स्रोत हाइड्रोजन पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। न्यूक्लियर फ्यूजन (नाभिकीय संलयन), न्यूक्लियर फिशन (नाभिकीय विखंडन) से कई अधिक सुरक्षित भी है।
इससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं
न्यूक्लियर फ्यूजन लंबे समय तक वातावरण में मौजूद रहने वाले रेडियोधर्मी अपशिष्ट उत्पन्न नहीं करता है। यह अक्षय ऊर्जा से भी अधिक विश्वसनीय ऊर्जा का स्रोत है। जैसे- पवन या सौर पर्यावरणीय कारकों पर निर्भर करते हैं। ये कभी कम होंगे तो कभी अधिक। जबकि, न्यूक्लियर फ्यूजन को नियंत्रित मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
फ्यूजन के लिए 'टोकामक' को किया विकसित
फ्यूजन एनर्जी का उपयोग करने के लिए वैज्ञानिकों ने एक खास उपकरण को विकसित किया गया है। वह एक खोखली, डोनट के आकार की मशीन है जिसे टोकामक कहा जाता है। एक टोकामक के अंदर, गैसीय हाइड्रोजन ईंधन अत्यधिक गर्मी और दबाव के प्रभाव में प्लाज्मा में बदल जाता है। खोखले क्षेत्र के बाहर के चुंबक इस प्लाज्मा की गति को नियंत्रित करते हैं, और जैसे ही इसके भीतर परमाणु संलयन से गुजरते हैं, आंतरिक दीवारें अपनी ऊर्जा को अवशोषित करती हैं।
यह रिएक्टर एक एक्सपेरिमेंट है जिससे आम लोगों तक ऊर्जा नहीं पहुंचाई जाएगी लेकिन यह ऐसा मॉडल है जिसके सफल होने पर यह पता लगाया जा सकेगा कि कैसे कमर्शल ऊर्जा उपलब्ध करने के लिए ऐसे ही रिएक्टर्स को सटीकता से बनाया जा सकता है। ITER का लैटिन में मतलब भी है 'रास्ता' और इस एक्सपेरिमेंट से बेहतर ऊर्जा के लिए नया रास्ता तैयार किया जा रहा है।Tokamak एक ऐसी डिवाइस है जो मैग्नेटिक फील्ड की मदद से न्यूक्लियर फ्यूजन जनरेट करती है। पारंपरिक तरीकों की जगह फ्यूजन रिएक्शन को ऊर्जा उत्पादन के लिए इस्तेमाल किए जा सकता है या नहीं, इसे लेकर ही ITER यह एक्सपेरिमेंट कर रहा है। खास बात यह है कि यही न्यक्लियर रिएक्शन सितारों में होता है तो एक तरह से ITER धरती पर ही सितारा बना रहा है।
न्यूक्लियर फ्यजून रिएक्शन से 15 करोड़ डिग्री सेल्सियस का तापमान पैदा होता है। इसकी वजह से ऐसा प्लाज्मा पैदा होता है जिसमें हाइड्रोजन के आइसोटोप्स (ड्यूटीरियम और ट्राइटियम) आपस में फ्यूज होकर हीलियम और न्यूट्रॉन बनाते हैं। शुरुआत में रिएक्शन से गर्मी पैदा हो, इसके लिए ऊर्जा की खपत होती है लेकिन एक बार रिएक्शन शुरू हो जाता है तो फिर रिएक्शन की वजह से ऊर्जा पैदा भी होने लगती है। ITER पहला ऐसा रिएक्टर है जिसका उद्देश्य है कि न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्शन के शुरू होने में जितनी ऊर्जा इस्तेमाल हो, उससे ज्यादा ऊर्जा रिएक्शन की वजह से बाद में उत्पाद के तौर पर निकले।
पारंपरिक ईंधनों और अक्षय ऊर्जा के स्रोतों के अलावा अभी दुनिया में कई न्यूक्लियर फिशन रिएक्टर्स काम कर रहे हैं लेकिन इनके साथ एक बड़ा खतरा होता है लीक और रेऐक्टिव वेस्ट का। फ्यूजन रिएक्टर में वेस्ट बेहद कम होता है और ये रिएक्शन अपने-आप में इतना मुश्किल होता है कि इसका लीक होना मुश्किल है। वहीं, कोयले जैसे ईंधन के सिर्फ सीमित संसाधन पृथ्वी पर बचे हैं बल्कि उनकी वजह से कार्बन उत्सर्जन जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग का एक बड़ा कारण है। दूसरी ओर अक्षय ऊर्जा अभी भी वैश्विक स्तर पर ईंधन के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल नहीं की जा सकी है।
ITER पहली ऐसी डिवाइस होगी जो लंबे वक्त तक फ्यूजन रिएक्शन जारी रख सकेगी। ITER में इंटिग्रेटेड टेक्नॉलजी और मटीरियल को टेस्ट किया जाएगा जिसका इस्तेमाल फ्यूजन पर आधारित बिजली के कमर्शल उत्पादन के लिए किया जाएगा। बड़े स्तर पर अगर कार्बन-फ्री स्रोत के तौर पर यह एक्सपेरिमेंट सफल हुआ तो भविष्य में क्लीन एनर्जी के क्षेत्र में दुनिया को अभूतपूर्व फायदा हो सकता है। पहली बार 1985 में इसका एक्सपेरिमेंट का पहला आइडिया लॉन्च किया गया था। ITER की डिजाइन बनाने में इसके सदस्य देशों चीन, यूरोपियन यूनियन, भारत, जापान, कोरिया, रूस और द यूनाइटेड्स के हजारों इंजिनियरों और वैज्ञानिकों ने अहम भूमिका निभाई है।
भारत इस एक्सपेरिमेंट से 2005 में जुड़ा था। लार्सन ऐंड टूब्रो हेवी इंजिनियरिंग ने 4 हजार टन की स्टेनलेस स्टीन से बनी क्रायोस्टैट की लिड तैयार की है। इसके अलावा भारत अपर-लोअर सिलिंडर, शील्डिंग, कूलिंग सिस्टम, क्रायोजेनिक सिस्टम, हीटिंग सिस्टम्स बना रहा है। क्रायोस्टैट 30 मीटर ऊंचा और 30 मीटर डायमीटर का सिलिंडर है जो विशाल फ्रिज की तरह काम करेगा और फ्यूजन रिएक्टर को ठंडा करने का काम करेगा। यह दुनिया में अपनी तरह का सबसे विशाल वेसल है। L&T के अलावा भारत की 200 कंपनियां और 107 वैज्ञानिक इस प्रॉजेक्ट से जुड़े हुए हैं।
आईटीईआर का 75 फीसदी काम पूरा
आईटीईआर वैज्ञानिकों का लक्ष्य 2025 तक दुनिया के सबसे बड़े फ्यूजन रिएक्टर को सक्रिय करना है। इस परियोजना में भारत समेत दुनिया के 35 देशों के वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। आईटीईआर के 75 फीसदी निर्माण कार्य को पूरा किया जा चुका है। इसके जरिए नाभिकीय संलयन से धरती पर ऊर्जा का निर्माण करना है। इससे हमें सितारों की उत्पत्ति के बारे में भी खास जानकारी मिलेगी।


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