मानसिक समस्याओं का खानपान पर असर: बच्चों से लेकर बड़ों में ये 6 तरह के ईटिंग डिसऑर्डर्स हैं सबसे कॉमन
तरह-तरह की समस्याओं के कारण लोगों का खानपान से रिश्ता बदल जाता है
तरह-तरह की समस्याओं के कारण लोगों का खानपान से रिश्ता बदल जाता है। वे खराब आदतें विकसित करने लगते हैं। जहां कुछ लोग खाने से दूर भागते हैं, वहीं कुछ लोग खाने के बिना जी नहीं पाते। ऐसी परेशानियों को ईटिंग डिसऑर्डर कहा जाता है। यह एक मानसिक विकार है।
हेल्थलाइन वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार, 6 तरह के ईटिंग डिसऑर्डर्स लोगों में सामान्य रूप से पाए जाते हैं। वैसे तो ईटिंग डिसऑर्डर किसी भी उम्र और जेंडर के इंसान को हो सकता है, लेकिन इसकी चपेट में सबसे ज्यादा किशोर और युवा महिलाएं आती हैं।
क्यों होते हैं ईटिंग डिसऑर्डर्स?
इसकी कई वजहें हो सकती हैं। हेल्थलाइन के मुताबिक, जुड़वा और गोद लिए लोगों पर हुई स्टडीज में पाया गया है कि ईटिंग डिसऑर्डर की वजह आनुवंशिक हो सकती है। इसके अलावा जिन लोगों की पर्सनालिटी हर काम को परफैक्ट या जल्दबाजी में करने वाले होती है, वे भी इसके शिकार होते हैं। संप्रदाय, संस्कृति और दिमाग की संरचना भी ईटिंग डिसऑर्डर के कारण हो सकते हैं।
सबसे कॉमन ईटिंग डिसऑर्डर्स..
1. एनोरेक्सिया नर्वोसा
यह डिसऑर्डर अक्सर किशोरावस्था में विकसित होता है और पुरुषों से ज्यादा महिलाओं को प्रभावित करता है। इससे पीड़ित लोग खुद को हमेशा मोटा महसूस करते हैं, भले ही वो पतले-दुबले क्यों न हों। एनोरेक्सिया नर्वोसा के मरीज ऐसे खाने से दूर रहते हैं, जिनसे उनका वजन बढ़ सकता है। उन्हें मोटे होने का डर सताता है।
ऐसे लोग लगातार अपना वजन मापते हैं। वे अपने शरीर के साइज और आकार को लेकर परेशान रहते हैं, जिससे उनका आत्मविश्वास डगमगाता है।
2. बुलिमिया नर्वोसा
एनोरेक्सिया की तरह ही बुलिमिया भी किशोरावस्था में विकसित होता है और महिलाओं को ज्यादा प्रभावित करता है। बुलिमिया से पीड़ित लोगों को बहुत ज्यादा खाने की आदत होती है। वे तब तक खाते जाते हैं जब तक कि बीमार महसूस न करने लगें। ऐसे लोग खाने पर कंट्रोल नहीं कर पाते।
बुलिमिया नर्वोसा के मरीज उल्टी करके, उपवास रखकर, दवाइयां लेकर और ज्यादा एक्सरसाइज करके क्षतिपूर्ति करते हैं। वजन की निगरानी करने के कारण इनका आत्मविश्वास भी कम होता है।
3. बिंज ईटिंग डिसऑर्डर
यह डिसऑर्डर किशोरावस्था या युवावस्था में विकसित होता है। इसके लक्षण बुलिमिया नर्वोसा जैसे ही होते हैं। इससे पीड़ित लोग कम समय में बहुत ज्यादा खा लेते हैं। वे अपने खानपान पर कंट्रोल नहीं कर पाते। इसके बाद खुद को इस गलती का दोषी मानकर शर्म महसूस करते हैं।
बिंज ईटिंग डिसऑर्डर में लोग क्षतिपूर्ति नहीं करते हैं, इसलिए ये ओवरवेट या मोटे होते हैं। इन्हें दिल की बीमारी, डायबिटीज, स्ट्रोक आने का खतरा ज्यादा होता है।
4. पिका
पिका ईटिंग डिसऑर्डर में लोग ऐसी चीजें खाते हैं जिन्हें फूड नहीं माना जाता। इसमें बर्फ, धूल, मिट्टी, चॉक, पेपर, साबुन, बाल, कपड़ा, ऊन, डिटर्जेंट आदि शामिल हैं। पिका सबसे ज्यादा बच्चों, प्रेग्नेंट महिलाओं और मानसिक बीमारियों से पीड़ित लोगों को अपना शिकार बनाता है।
इन लोगों को पोषण की कमी रहती है और कुछ भी जहरीला खा लेने का डर बना रहता है।
5. रुमिनेशन डिसऑर्डर
रुमिनेशन डिसऑर्डर नवजात और छोटे बच्चों में विकसित होता है। ये एडल्ट्स को भी हो सकता है। इसमें व्यक्ति खाए गए भोजन को दोबारा उगलता है और उसे फिर से चबाता है। इसके बाद या तो चबाए गए भोजन को निगल लेता है या थूक देता है। यह एक ऐसी गंभीर समस्या है जिसमें थैरेपी की जरूरत पड़ती है।
नवजात बच्चों में ये डिसऑर्डर 3 से 12 महीने की उम्र में विकसित होता है। इसके बाद अपने आप ही ठीक हो जाता है।
6. अवॉइडेंट/ रिस्ट्रिक्टिव फूड इनटेक डिसऑर्डर
यह डिसऑर्डर नवजात और छोटे बच्चों में विकसित होता है जो एडल्ट होने तक बना रह सकता है। ये महिलाओं और पुरुषों दोनों में कॉमन है। इसमें बच्चे खाने में बहुत ज्यादा आनाकानी करते हैं। एडल्ट होने पर भी बहुत कम खाना खाते हैं। ऐसे बच्चों और लोगों का वजन बहुत कम रहता है। इन्हें पोषण की कमी होती है।
इस डिसऑर्डर के चलते बच्चों की लंबाई भी कम रह जाती है। उन्हें खाने की गंध, स्वाद, रंग, तापमान और बनावट से परेशानी होती है।