मंगल ग्रह पर ईंधन बनाएगा CO2 का रिएक्टर, सुलझेंगी कई समस्याएं
मंगल ग्रह (Mars) पर मानव अभियान के लिए बहुत सारे शोध चल रहे हैं.
मंगल ग्रह (Mars) पर मानव अभियान के लिए बहुत सारे शोध चल रहे हैं. इनका उद्देश्य मंगल पर आने जाने या वहां रह पाने संबंधी किसी ना किसी समस्या का हल खोजना है. ऐसी ही एक समस्या है मंगल ग्रह पर ईंधन का उत्पादन, जिससे मंगल पर आने जाने के लिए पृथ्वी से ईंधन ले जाने की जरूरत खत्म की जा सके. यूनिवर्सिटी ऑफ सिनसिनाटी के इंजीनियर्स ऐसे नए तरीके विकसित करने में लगे हैं जिससे ग्रीन हाउस गैसों को ईंधन (Fuel form Greenhouse Gases) में बदला जा सके. इससे मंगल की समस्या तो खत्म होगी जलवायु परिवर्तन (Climate change) से निपटने में भी मदद मिल सकती है.
मंगल पर जाने के लिए बहुत अधिक ईंधन की जरूरत होगी. इतने ही ईंधन की जरूरत वहां से वापस आने के लिए भी लगेगा, जो वर्तमान तकनीकों के हिसाब से पृथ्वी से ही ले जाना होगा. ऐसे में वैज्ञानिक उन उपायों की तलाश में है जिससे मंगल पर उपलब्ध स्रोतों से ही ईंधन बनाने की क्षमता विकसित हो सके. इससे बहुत बड़ी समस्या हल हो जाएगी.
मीथेन में बदलेगी कार्बनडाइऑक्साइड
यूसी कॉलेज ऑफ इंजिनियरिंग एंड एप्लाइड साइंसेस के असिस्टेंट प्रोफेसर जिंगजी वू और उनके छात्रों ने एक रिएक्टर में कार्बन कैटालिस्ट का उपयोग किया है जिससे कार्बन डाइऑक्साइड मीथेन में बदल जाएगी. सैबेटियर रिएक्शन के नाम से मशहूर इस प्रक्रिया की खोज फ्रेच केमिस्ट पॉल सैबेटियर ने की थी.
ISS में होता है इस तकनीक का उपयोग
इस प्रक्रिया का उपोयग इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में अंतरिक्ष यात्रियों की सांस से निकली कार्बन डाइऑक्साइड को हवा से हटा कर रॉकेट के लिए ईंधन बनाने के लिए किया जाता है. इसी ईंधन की वजह से आईएसएस खुद को अपने कक्षा में कायम रख पाता है. लेकिन वू और उनकी टीम इससे भी ज्यादा बड़ा सोच रही है.
आधा ईंधन बचेगा
वू का कहना है कि मंगल के वायुमंडल में अधिकांश हिस्सा कार्बन डाइऑक्साइड का है. इस ईंधन को बनाकर मंगल यात्री वहां पहुंच कर वापसी की यात्रा के लिए लगने वाला आधा ईंधन बचा सकते हैं. उन्होंने कहा यह मंगल पर एक गैस स्टेशन की तरह होगा.यह आसानी से कार्बन डाइऑक्साइड इस रिएक्टर में पंप किया जासके और रॉकेट के लिए मीथेन बन जाएगी.
CO2 बड़ी समस्या
यह अध्ययन नेचर कम्यूनिकेशन्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है. केमिकल इंजिनियरिंग में अपने करियर की शुरुआत करने वाले वू ने दस साल पहले विद्युत वाहनों में ईंधन सेल के अध्ययन से शुरुआत की थी, लेकिन उन्होंने अपनी इंजीनियरिंग लैब में CO2 पर अध्ययन करना शुरू कर दिया था. उन्होंने ग्रीनहाउस गैसों की समस्या को देखते हुए पाया कि कार्बन डाइऑक्साइड एक बड़ी समस्या है.
जलवायु परिवर्तन के लिए भी कारगर
वू ने बताया कि हमें कार्बन डाइऑक्साइड को रीसाइकल करना होगा. वू और उनके छात्रों के साथ इस शोध के प्रमुख लेखक तियानयू झांग मीथेन का उत्पादन बढ़ाने के लिए कई उत्प्रेकों पर प्रयोग किया. वू का कहना है कि उनकी तकनीक जलवायु परिवर्तन को भी कम कर सकेगी.
क्या मंगल पर मानव अभियान भेजने में लगेगा 20-30 साल का वक्त?
इस तकनीक का बड़ा व्यवसायिक लाभ भी है जिसमें ईंधन एक बाय प्रोडक्ट होगा. यह प्रक्रिया दस सालों में सौ गुना ज्यादा तेज हो गई है. अगले दस सालो में बहुत सी स्टार्ट अप कंपनियां इस तकनीक का व्यवसायिकरण कर लेगीं. वू के छात्र मीथेन के अलावा ईथाइलीन का उत्पदान करने का प्रयास कर रहे हैं.