नई दिल्ली: डॉल्फ़िन (Dolphin) के बारे में कहा जाता है कि वे बहुत समझदार और चंचल जानवर होते हैं. समझदारी तो इतनी है कि ये इंसानों की ही तरह अपनी त्वचा का ख्याल भी रखना जानती हैं. इसके लिए ये कोरल या समुद्री स्पॉन्ज (Corals or sea sponges) या फिर खुरदरी सतहों को अपनी त्वचा से रगड़ती हैं.
स्विट्जरलैंड की ज्यूरिख यूनिवर्सिटी (University of Zurich) की वाइल्डलाइफ़ जीवविज्ञानी एंजेला ज़िल्टनर (Wildlife Biologist Angela Ziltener) और उनकी टीम 2009 से उत्तरी लाल सागर (Northern Red Sea) में 360 इंडो-पैसिफिक बॉटलनोज़ डॉल्फ़िन (Bottlenosed dolphins) पर स्टडी कर रही थी. उन्होंने पाया कि अपने शरीर को कोरल या समुद्री स्पॉन्ज से ब्रश करने के लिए डॉल्फ़िन समुद्र तल पर जाती हैं.
आईसाइंस (iScience) में प्रकाशित हुए एक शोध में कहा गया है कि अकशेरुकी (Invertebrates) एंटीबैक्टीरियल कंपाउंड (Antibacterial Compounds) बनाते हैं. बॉटलनोज़ डॉल्फ़िन कोरल की मदद से अपनी त्वचा की बीमारियों को खुद ही ठीक कर सकती हैं.
शोध की लीड ऑथर एंजेला का कहना है ऐसा नहीं है कि वे सिर्फ कोरल तक जाती हैं. वे ऊपर जाती हैं, फिर नीचे आती हैं और अपने पेट और पीठ को कोरल से रगड़ती हैं. डॉल्फ़िन की त्वचा मोटी, चिकनी और लचीली होती है, लेकिन उन्हें भी त्वचा की बीमारियां हो सकती हैं. यीस्ट और बैक्टीरियल इनफैक्शन, निशान या वायरल पॉक्स इनफैक्शन की वजह से टैटू जैसे घाव हो सकते हैं. तापमान बढ़ने पर ये बीमारियां और बढ़ जाती हैं.
शोधकर्ताओं का कहना है कि डॉल्फ़िन एक रुटीन के तहत ये सब करती हैं. सुबह जागने के तुरंत बाद और सोने से ठीक पहले वे कोरल से अपने शरीर को रगड़ती हैं. वे बिना किसी जल्दबाजी के, बड़े धैर्य के साथ एक के बाद एक जाकर कोरल से अपनी त्वचा रगड़ती हैं. ऐसे रगड़ने से कोरल से पॉलिप म्यूकस निकलता है.
टीम ने यह भी देखा कि डॉल्फ़िन यह चुनने में बड़ी सावधानी बरतती हैं कि उन्हें शरीर के किन हिस्सों को किस कोरल से रगड़ना है. शोधकर्ताओं ने डॉल्फ़िन द्वारा चुने गए कोरल, स्पंज और कोरल म्यूकस के 48 नमूनों का लैब टेस्ट किया. नतीजों में कम से कम 17 बायोएक्टिव मेटाबोलाइट्स का पता लगा, जिनमें एंटीबैक्टीलियल, एंटीऑक्सिडेंट और एस्ट्रोजन जैसे हार्मोनल गुण थे. ये सभी त्वचा के इलाज में मददगार हो सकते हैं.
रिसर्च से पता चलता है कि कुछ कोरल और स्पंज में एंटीमाइक्रोबियल जैसे कई औषधीय गुण होते हैं. जर्मनी में जस्टस लिबिग यूनिवर्सिटी गिसेन (Justus Liebig University Giessen) के कैमिस्ट गर्ट्रूड मोरलॉक (Gertrud Morlock) का कहना है कि अगर कोई इनफैक्शन है, तो यह मेटाबोलाइट्स काफी मददगार होते हैं. अगर डॉल्फ़िन की त्वचा में संक्रमण होता है, तो इन कंपाउंड में इलाज करने के गुण हो सकते हैं.
डॉल्फ़िन में स्वास्थ्य और आयु का अध्ययन कर रहीं समुद्री जीवविज्ञानी स्टेफ़नी वेन-वाटसन (Stephanie Venn-Watson) का कहना है कि चूंकि डॉल्फ़िन स्वाभाव से चंचल और टैक्टाइल जानवर हैं जिन्हें रगड़ना पसंद है, इसलिए यह तय करना मुश्किल है कि डॉल्फ़िन औषधीय गुणों के लिए कोरल का इस्तेमाल करती हैं.