नवरात्रि में करें 10 महाविद्याओं की पूजा
देवी पुराण के अनुसार एक वर्ष में चार माह नवरात्र के लिए निश्चित हैं।
देवी पुराण के अनुसार एक वर्ष में चार माह नवरात्र के लिए निश्चित हैं। वर्ष के प्रथम महीने अर्थात चैत्र में प्रथम नवरात्रि होती है जिसे चैत्र नवरात्रि या बड़ी नवरात्रि कहते हैं। चौथे माह आषाढ़ में दूसरी नवरात्रि होती है जिसे गुप्त नवरात्रि कहते हैं। इसके बाद अश्विन मास में तीसरी और प्रमुख नवरात्रि होती है जिसे शारदीय नवरात्रि कहते हैं। इसी प्रकार वर्ष के ग्यारहवें महीने अर्थात माघ में चौथी नवरात्रि आती है जिसे गुप्त नवरात्रि कहते हैं। चैत्र और शारदीय नवरात्रि में माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है जबकि गुप्त नवरात्रि में माता काली के 10 रुपों की पूजा होती है। सभी देवियां माता दुर्गा के ही रूप हैं। नवरात्रियों में माता दुर्गा की विशेष पूजा होती है।
1. अष्टभुजाधारी देवी दुर्गा और कात्यायनी सिंह पर सवार हैं तो माता पार्वती, चन्द्रघंटा और कुष्मांडा शेर पर विराजमान हैं। शैलपुत्री और महागौरी वृषभ पर, कालरात्रि गधे पर और सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान हैं। इसी तरह सभी देवियों की अलग-अलग सवारी हैं।
3. नौ देवियों में शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री का पूजन विधि विधान से किया जाता है। कहते हैं कि कात्यायनी ने ही महिषासुर का वध किया था इसलिए उन्हें महिषासुरमर्दिनी भी कहते हैं।
4. दुर्गा सप्तशती के अनुसार इनके अन्य रूप भी हैं:- ब्राह्मणी, महेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नरसिंही, ऐन्द्री, शिवदूती, भीमादेवी, भ्रामरी, शाकम्भरी, आदिशक्ति और रक्तदन्तिका।
5. देवियों में त्रिदेवी, नवदुर्गा, दशमहाविद्या और चौसठ योगिनियों का समूह है। प्रमुख रूप से आठ योगिनियां हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं:- 1.सुर-सुंदरी योगिनी, 2.मनोहरा योगिनी, 3. कनकवती योगिनी, 4.कामेश्वरी योगिनी, 5. रति सुंदरी योगिनी, 6. पद्मिनी योगिनी, 7. नतिनी योगिनी और 8. मधुमती योगिनी।
6. आदि शक्ति अम्बिका सर्वोच्च है और उसी के कई रूप हैं। सती, पार्वती, उमा और काली माता भगवान शंकर की पत्नियां हैं। अम्बिका ने ही दुर्गमासुर का वध किया था इसीलिए उन्हें दुर्गा माता कहा जाता है। नवदुर्गा में दशमहाविद्याओं की भी पूजा होती है। इनके नाम है-1. काली, 2. तारा, 3. छिन्नमस्ता, 4. षोडशी, 5. भुवनेश्वरी, 6. त्रिपुरभैरवी, 7. धूमावती, 8. बगलामुखी, 9. मातंगी और 10 कमला।
7. उपरोक्त सभी की पूजा-साधना पद्धतियां अलग-अलग होती है और सभी को अलग-अलग भोग लगता है। जैसे नौ भोग और औषधि- शैलपुत्री कुट्टू और हरड़, ब्रह्मचारिणी दूध-दही और ब्राह्मी, चन्द्रघंटा चौलाई और चन्दुसूर, कूष्मांडा पेठा, स्कंदमाता श्यामक चावल और अलसी, कात्यायनी हरी तरकारी और मोइया, कालरात्रि कालीमिर्च, तुलसी और नागदौन, महागौरी साबूदाना तुलसी, सिद्धिदात्री आंवला और शतावरी।