वट सावित्री की पूजा के दिन महिलाओं को इस रंग का वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए , जाने वट सावित्री का महत्व

वट सावित्री की पूजा से पति पत्नी के रिश्ते में प्रेम बढ़ता है।

Update: 2022-05-28 05:18 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क । आध्यात्मिक:- वट सावित्री पूजा का हिन्दू धर्म मे अत्यधिक महत्व है यह पर्व पूरे भारत मे सुहागिन महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। धर्म ग्रन्थों में कहा गया है कि जो महिलाएं वट सावित्री का व्रत करती है उनके पति की उम्र लंबी होती है। वही इस साल वट सावित्री का वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि यानि 30 मई को पड़ रहा है इस दिन सभी महिलाएं घर मे बरगद बनाती है और बरगद की पूजा करती है व अपने पति की लंबी उम्र की ईश्वर से कामना करती है।

मान्यता है कि जो महिला वट सावित्री की पूजा विधि विधान से करती है उसके पति की उम्र बढ़ती है और उसके घर मे सुख सम्रद्धि का वास होता है। वट सावित्री की पूजा से पति पत्नी के रिश्ते में प्रेम बढ़ता है। कहा जाता है इस व्रत को सच्चे मन से करने वाली स्त्रियों को ईश्वर से अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है।
धर्मिक ग्रन्थ में कथा वर्णित है कि सावित्री ने अपने पति के लिए वट सावित्री का व्रत रखा था उसी दिन उसके पति की मौत हो गई और जब यमराज उसके पति की आत्मा को लेने आए तो वह यमराज से लड़ गई और उन्होंने उनसे अपने पति के प्राण वापस लिए। सावित्री के इस पति प्रेम के बाद से यह व्रत पूरे विश्व मे प्रचलित हुआ और प्रत्येक विवाहित महिला अपने पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करने लगी और इस व्रत को विधि पूर्वक करती है।
धर्म शास्त्र के अनुसार जो भी महिलाएं इस व्रत को करती है उनके पति को अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है लेकिन यदि कोई स्त्री इस व्रत में कोई गलती करता है तो महिलाओं को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। महिलाओं को इस व्रत के दिन सचेत रहना चाहिए और साफ सफाई का ध्यान रखते हुए गलती करने से बचना चाहिए क्योंकि अगर आप इस व्रत के दौरान गलती करती है तो इसका परिणाम आपको ही झेलना पड़ेगा और आपके वैवाहिक जीवन मे संकट आ सकता है।
मान्यता है इस इस दिन महिलाओं को लाल पीली हरे गुलाबी रंग के वस्त्र पहनने चाहिए। वही महिलाओं को हमेशा काले, सफेद और नीले रंग के वस्त्र धारण करने से बचना चाहिए। महिलाओं को लाल पीली चूड़ियां धारणा कर सोलह श्रृंगार कर पूजा के लिए जाना चाहिए। वही जो सुहागिन पहली बार यह व्रत करने जा रही है उन्हें अपने मायके से यह व्रत करके आना चाहिए। क्योंकि मान्यता है इस व्रत को अगर ससुराल में किया जाए तो वह शुभ नहीं है वही अगर कोई महिला मजबूरी में यह व्रत अपनी ससुराल में करती है तो उसे पूजा की समस्त सामग्री मायके से मंगवानी चाहिए और उसी से पूजा करनी चाहिए।
इसके साथ ही यदि किसी महिला को वट सावित्री की पूजा के दिन मासिक धर्म आरम्भ हो गया है तो उसे पूजा नहीं करनी चाहिए और अपनी समस्त पूजा सामग्री अपनी ननद या भाभी से मंदिर पर चढवानी चाहिए और दूर बैठकर भगवान की कथा सुननी चाहिए। वही अगर इस दिन घी का दिया आप जलाती है तो उसे आप दाईं तरफ रखे वही अगर आप इस दिन तेल का दिया जलाती हैं तो उसे बाई और रखे यह शुभ होता है।


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