कर्क :- कर्क लग्न एवं राशि वालों के लिए शनि सप्तम एवं अष्टम के कारक ग्रह होकर अष्टम भाव कुम्भ राशि में स्वगृही गोचर करेंगे। अष्टमेश होकर स्वगृही होना सकारात्मक फल प्रदायक होता है। परन्तु सप्तम के कारक होकर अष्टम में जाने से अशुभफल प्रदायक हो जाते है। जहाँ शनि देव पुराने रोगों का खत्म करेंगे वही रोजगार, दैनिक आय में अवरोध के साथ साथ पैर एवं पेट की समस्या भी उत्पन्न करेंगे। जीवन साथी के स्वास्थ्य को लेकर चिंता सहित प्रेम संबंधों में तनाव भी उत्पन्न करेंगे। शनि की नीच दृष्टि मेष राशि राज्य भाव, कर्म भाव, पर होगी फलतः कर्म में, परिश्रम में अवरोध उत्पन्न होगा। पिता के स्वास्थ्य को लेकर भी चिन्ता होगी। सप्तम दृष्टि सिंह राशि धन भाव पर होंने से पारिवारिक तनाव, पारिवारिक खर्च में वृद्धि, वाणी में तीव्रता, गले की समस्या, वाणी व्यवसाय से जुड़े लोगों को सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। शनि देव की दशम दृष्टि पंचम स्थान संतान भाव, विद्या भाव पर होगी फलतः संतान के स्वास्थ्य को लेकर, संतान की शिक्षा एवं प्रगति को लेकर मन अप्रसन्न रहेगा। इस प्रकार शनि देव की स्थिति अच्छी नही हो रही है।
उपाय:- शनि की शांति व उपाय मूल कुण्डली के अनुसार करना अत्यावश्यक होगा।
सिंह :- सिंह लग्न एवं राशि वालों के लिए शनि देव षष्ट एवं सप्तम भाव अर्थात रोग, ऋण, शत्रु एवं दाम्पत्य के कारक होकर सप्तम भाव में गोचर करने जा रहे हैं जहां से इनके दृष्टि भाग्य भाव लग्न भाव अर्थात शरीर भाव पर पड़ेगी साथ ही साथ चतुर्थ भाव पर भी इनकी दशम दृष्टि अपना प्रभाव स्थापित करेगी, ऐसी स्थिति में शनि का व्यापक प्रभाव सिंह लग्न अथवा सिंह राशि वालों पर पड़ेगा शनि देव के भाग्य भाव पर दृष्टि पड़ने के कारण भाग्य में अवरोध, पिता को कष्ट, पिता के स्वास्थ्य को लेकर के चिंता के साथ-साथ कार्यों में अवरोध की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। लग्न भाव पर दृष्टि के कारण स्वास्थ्य गत समस्या समय-समय पर उत्पन्न होता रहेगा । मन: स्थिति भी अवरोध उत्पन्न कर सकती है अर्थात मानसिक चिंता की स्थिति भी आ सकती है इस गोचरीय परिवर्तन से माता के स्वास्थ्य को लेकर चिंता, गृह और वाहन सुखों में अवरोध या गृह एवं वाहन पर खर्च की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। सप्तम के कारक हो करके सप्तम भाव में गोचर करने के कारण दैनिक आय में प्रगति की स्थिति बनेगी, साझेदारी से लाभ की स्थिति उत्पन्न होगी, दांपत्य जीवन प्रेम संबंध में प्रगति एवं सुधार की स्थिति देखने को मिलेगी। रोग, कर्ज एवं शत्रुओं के कारण भी थोड़ा सा मानसिक चिंता भी उत्पन्न होगा ।
उपाय :- शनिदेव की पूजा अर्चना के साथ साथ श्री हनुमान जी महाराज की पूजा अर्चना किया जाना शुभ फल प्रदायके होगा।
कन्या :- कन्या लग्न या कन्या राशि वालों के लिए शनि देव पंचम भाव अर्थात विद्या अध्ययन, संतान व बौद्धिकता के कारक होते हैं साथ ही साथ रोग, कर्ज और शत्रु के कारक ग्रह भी होते हैं। पंचमेश होने के कारण शुभ फल प्रदायक होते हैं, तो छठे के कारक होने के कारण अवरोध भी उत्पन्न करते हैं ऐसी स्थिति में सम परिणाम प्रदान करते हैं यहां पर इनका गोचरीय परिवर्तन कुंभ राशि छठे भाव में होने जा रहा है जहां पर विद्यमान रह कर रोग,कर्ज एवं शत्रुओं से मुक्ति प्रदान करने के लिए मार्ग में सुगमता प्रदान करेंगे तो अपने दृष्टियों के कारण तनाव भी उत्पन्न करेंगे। तृतीय दृष्टि से अष्टम भाव को देखेंगे जिसके कारण पैरों में कष्ट पेट की समस्या समय-समय पर उत्पन्न होती रहेगी। सप्तम दृष्टि द्वादश भाव सिंह राशि पर होगा। रोगेश हो करके द्वादश पर दृष्टि डालेंगे ऐसी स्थिति में खर्च में वृद्धि शत्रु द्वारा षडयंत्र के कारण खर्च की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। बड़ी यात्रा चाहे वह धार्मिक यात्रा हो अथवा व्यापारिक यात्रा संभव है । आंखों में कष्ट भी हो सकता है अतः ध्यान रखना अत्यावश्यक है । दशम दृष्टि वृश्चिक राशि पर होगी अर्थात तृतीय भाव पर होगी ऐसे में पराक्रम में वृद्धि, भाई बंधुओं के सहयोग में वृद्धि के साथ-साथ भाई बंधुओं के स्वास्थ्य को लेकर चिंता की स्थिति भी उत्पन्न होती रहेगी। इस प्रकार शनि देव के इस गोचरीय परिवर्तन का कन्या लग्न अथवा कन्या राशि वालों पर नकारात्मक प्रभाव ज्यादा दिख रहा है। यदि मूल कुंडली में शनि की स्थिति ठीक नहीं है तो समय पूर्व उपाय कर लेना नितांत आवश्यक होगा।
उपाय :- शनिवार के दिन काला तिल गुड़ मिलाकर के गोधूल के समय चीजों को खिलाएं और गरीबों की मदद अवश्य करें।