हरिद्वार को क्यों कहा जाता है हरि की पौड़ी, जानिए इनके मान्यताएं
11 मार्च से कुंभ मेले शुरू हो रहा है।
जनता से रिश्ता बेवङेस्क | 11 मार्च से कुंभ मेले शुरू हो रहा है। कहा जाता है जब भी हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन होता है तब लोग दूर दूर से हरि की पौड़ी में आस्था की डुबकी लगाने आते हैं। परंतु वहां आने वाले लगभग लोग इस बात से अंजान होते हैं कि आखिर हरिद्वार को हरि की पौड़ी क्यों कहा जाता है। तो चलिए हम आपको बताते हैं इससे जुड़ी पौराणिक कथा, जिसमें हरि की पौड़ी नाम से संबंधित वर्णन किया गया है। धार्मिक शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार हरिद्वार का 'हरि को पौड़ी' नाम उज्जैन के राजा भर्तृहरि के नाम पर रखा गया था। जी हां, हरिद्वार में श्रदालुओं द्वारा किया जाने स्नान हरि की पौड़ी में किया जाता है। जिसका नाम पहले 'भर्तृहरि की पैड़ी' था, फिर 'हरि की पैड़ी' तथा आखिर में 'हरि की पौड़ी' रखा गया।
कैसे प़ड़ा 'हरि की पौड़ी' का नाम-
कथाओं के अनुसार उज्जैन के राजा भर्तृहरि ने अपना तमाम राज-पाठ का त्याग करने के बाद इसी 'हरि की पौड़ी' के ऊपर स्थित एक पहाड़ी पर कई वर्षों तक तप किया था। कहा जाता है आज भी इस पहाड़ी के नीचे भर्तृहरि के नामक एक गुफा आज भी मौजूद है। ऐसी मान्यताएं परंपराएं हैं कि तपस्या के दौरान जिस रास्ते से राजा भर्तृहरि उतर कर गंगा स्नान के लिए गए थे उन्हीं रास्तों पर उनके भाई राजा विक्रमादित्य ने सीढियां बनवाई थीं। जिनका बाद में राजा भर्तृहरि ने इनका नाम 'पैड़ी' रखा। चूंकि राजा भर्तृहरि के नाम के अंत में 'हरि' मौजूद है, इसी वजह से इन सीढ़ियों को 'हरि की पैड़ी' व 'हरि की पौड़ी' कहा जाने लगा। बता दें 'हरि की पौड़ी' का एक अर्थ 'हरि यानि नारायण के चरण' भी माना जाता है।
इसके नाम से जुड़ी अन्य कथा-
इससे जुड़ी अन्य मान्यता के अनुसार 'हरि की पौड़ी' पर समुद्रा मंथन के दौरान निकले अमृत कलश की बूंदें गिरी थीं। यही कारण है कि 'हरि की पौड़ी' को हरिद्वार का सबसे पवित्र घाट माना जाता है। तो कहा ये भी जाता है कि इसी 'हरि की पौड़ी' पर वैदिक काल में श्रीहरि विष्णु और भगवान शिव जी प्रकट हुए थे, तो वहीं इसी स्थान पर ब्रह्मा जी ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया था।