क्यों करते हैं मौनी अमावस्या पर पीपल और भगवान विष्णु की पूजा? जानिए इसकी पौराणिक कथा

इस वर्ष मौनी अमावस्या या माघी अमावस्या आज 11 फरवरी दिन गुरुवार को है।

Update: 2021-02-11 01:30 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेसक | इस वर्ष मौनी अमावस्या या माघी अमावस्या आज 11 फरवरी दिन गुरुवार को है। आज देश भर की पवित्र नदियों में स्नान किया जा रहा है। अन्न और गर्म कपड़ों का दान किया जा रहा है। पितरों के लिए तर्पण और पिंडदान हो रहे हैं। मौनी अमावस्या के दिन मौन व्रत रखते हुए संयमपूर्वक व्रत का पालन किया जाएगा और इससे मुनि पद की प्राप्ति होती है। ऐसी पौराणिक मान्यता है। मौनी अमावस्या को पीपल के वृक्ष और भगवान विष्णु की पूजा करने का विशेष महत्व होता है। जागरण अध्यात्म में जानते हैं इसकी कथा के बारे में।

मौनी अमावस्या व्रत कथा
बहुत समस पूर्व की बात है। कांचीपुरी में देवस्वामी नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसके साथ बेटे थे और एक बेटी गुणवती थी। पत्नी का नाम धनवती था। उसने अपने सभी बेटों का विवाह कर दिया। उसके बाद बड़े बेटे को बेटी के लिए सुयोग्य वर देखने के लिए नगर से बाहर भेजा। उसने बेटी की कुंडली एक ज्योतिषी को दिखाई। उसने कहा कि कन्या का विवाह होते ही वह विधवा हो जाएगी। यह बात सुनकर देवस्वामी दुखी हो गया।
तब ज्योतिषी ने उसे एक उपाय बताया। कहा कि सिंहलद्वीप में सोमा नामक की धोबिन है। वह घर आकर पूजा करे तो कुंडली का दोष दूर हो जाएगा। यह सुनकर देवस्वामी ने बेटी के साथ सबसे छोटे बेटे को सिंहलद्वीप भेज दिया। दोनों समुद्र के किनारे पहुंचकर उसे पार करने का उपाय खोजने लगे। जब कोई उपाय नहीं मिला तो वे भूखे-प्यासे एक वट वृक्ष के नीचे आराम करने लगे।
उस पेड़ पर एक गिद्ध परिवार वास करता था। गिद्ध के बच्चों ने देखा दिनभर इन दोनों के क्रियाकलाप को देखा था। जब उन गिद्धों की मां उनको खाना दी, तो वे भोजन नहीं किए और उस भाई बहन के बारे में बताने लगे। उनकी बातें सुनकर गिद्धों की मां को दया आ गई। वह पेड़ के नीचे बैठे भाई बहन को भोजन दी और कहा कि वह उनकी समस्या का समाधान कर देगी। यह सुनकर दोनों ने भोजन ग्रहण किया।
अगले दिन सुबह गिद्धों की मां ने दोनों को सोमा के घर पहुंचा दिया। वे उसे लेकर घर आए। सोमा ने पूजा की। फिर गुणवती का विवाह हुआ, लेकिन विवाह होते ही उसके पति का निधन हो गया। तब सोमा ने अपने पुण्य गुणवती को दान किए और इससे उसका पति भी जीवित हो गया। इसके बाद सोमा सिंहलद्वीप आ गई, लेकिन उसके पुण्यों के कमी से उसके बेटे, पति और दामाद का निधन हो गया।
इस पर सोमा ने नदी किनारे पीपल के पेड़ के नीचे भगवान विष्णु की आराधना की। पूजा के दौरान उसने पीपल की 108 बार प्रदक्षिणा की। इस पूजा से उसे महापुण्य प्राप्त हुआ और उसके प्रभाव से उसके बेटे, पति और दामाद जीवित हो गए। उसका घर धन-धान्य से भर गया।
इस वजह से ही मौनी अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष तथा भगवान विष्णु जी की पूजा की जाने लगी।


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