नई दिल्ली : चारधाम में बद्रीनाथ मंदिर शामिल है। यह मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिला में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। बद्रीनाथ मंदिर जगत के पालनहार भगवान विष्णु के रूप बद्रीनारायण को समर्पित है। सनातन धर्म में पूजा और मांगलिक कार्य के दौरान शंख बजाया जाता है और देवी-देवताओं का आह्वान किया जाता है, लेकिन बद्रीनाथ मंदिर में शंख (Conch Shell ritual) नहीं बजाया जाता। ऐसे में आइए जानते हैं बद्रीनाथ मंदिर में शंख न बजाने का धार्मिक रहस्य और वैज्ञानिक कारण के बारे में।
शंख न बजाने का ये है रहस्य
बद्रीनाथ मंदिर में शंख न बजाने की कई मान्यताएं हैं। शास्त्रों के अनुसार, एक बार बद्रीनाथ में बने तुलसी भवन में धन की देवी मां लक्ष्मी तपस्या कर रही थीं। उसी दौरान श्री हरि ने शंखचूर्ण राक्षस का वध किया था। सनातन धर्म में जीत पर शंख बजाने का रिवाज है। परंतु भगवान विष्णु मां लक्ष्मी की तपस्या में बाधा नहीं डालना चाहते थे। इसलिए प्रभु ने शंख नहीं बजाया। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इसलिए बद्रीनाथ मंदिर में शंख नहीं बजाया जाता।
वैज्ञानिक कारण
बद्रीनाथ मंदिर में शंख न बजाने का वैज्ञानिक कारण भी है। सर्दियों के समय यहां पर बर्फ पड़ती है। ऐसे में समय में शंख बजाने से इसकी ध्वनि से बर्फ में दरार पड़ सकती है और बर्फीला तूफान भी आ सकता है। इसलिए बद्रीनाथ मंदिर में शंख नहीं बजाय जाता।
बद्रीनाथ मंदिर के कपाट कब खुलेंगे?
इस बार बद्रीनाथ धाम के कपाट 12 मई को सुबह 6 बजे खुलेंगे। हर साल बद्रीनाथ मंदिर में अधिक संख्या में भक्त आते हैं। बद्रीनाथ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं में उत्साह देखने को मिलता है। इस धाम को धरती का बैकुंठ धाम भी कहा जाता है। मंदिर के कपाट खुलने से पहले जोशीमठ में स्थित नरसिंह मंदिर में गरुड़ छाड़ उत्सव मनाया जाता है।