कब मनाई जाएगी पौष पुत्रदा एकादशी, जानिए शुभ मुहूर्त एवं महत्व
पौष मास में आने वाली पुत्रदा एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु का खास आशीर्वाद प्राप्त होता है.
जनता से रिश्ता वेबडेसक | पौष मास में आने वाली पुत्रदा एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु का खास आशीर्वाद प्राप्त होता है. संतान प्राप्ति के लिए इस दिन व्रत करना सबसे उत्तम माना जाता है. बता दें कि इस बार यह एकादशी 24 जनवरी 2021 को मनाई जाएगी.
पौष पुत्रदा एकादशी शुभ मुहूर्त (Paush Putrada Ekadashi Muhurat)
पौष पुत्रदा एकादशी रविवार, जनवरी 24,2021 को
25वाँ जनवरी को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 07:13 से 09:21
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय – 00:24, जनवरी 26
एकादशी तिथि प्रारम्भ – जनवरी 23, 2021 को 20:56 बजे
एकादशी तिथि समाप्त – जनवरी 24, 2021 को 22:57 बजे
पौष पुत्रदा एकादशी महत्व (Paush Putrada Ekadashi Importance)
भगवान विष्णु को ये व्रत अत्यंत प्रिय है. एकादशी व्रत रखने और विधिवत पूजन से मनचाही मुराद पूरी होती है. एकादशी सभी पापों को नाश करने वाली भी बताई गई है.
पौष पुत्रदा एकादशी कथा (Paush Putrada Ekadashi Katha)
द्वापर युग के आरंभ में महिष्मति नाम की एक नगरी थी, जिसमें महीजित नाम का राजा राज्य करता था, लेकिन पुत्रहीन होने के कारण राजा को राज्य सुखदायक नहीं लगता था. उसका मानना था कि जिसके संतान न हो, उसके लिए यह लोक और परलोक दोनों ही दु:खदायक होते हैं. पुत्र सुख की प्राप्ति के लिए राजा ने अनेक उपाय किए परंतु राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई. वृद्धावस्था आती देखकर राजा ने प्रजा के प्रतिनिधियों को बुलाया और कहा- हे प्रजाजनों! मेरे खजाने में अन्याय से उपार्जन किया हुआ धन नहीं है. न मैंने कभी देवताओं तथा ब्राह्मणों का धन छीना है. किसी दूसरे की धरोहर भी मैंने नहीं ली, प्रजा को पुत्र के समान पालता रहा. मैं अपराधियों को पुत्र तथा बाँधवों की तरह दंड देता रहा. कभी किसी से घृणा नहीं की. सबको समान माना है. सज्जनों की सदा पूजा करता हूँ. इस प्रकार धर्मयुक्त राज्य करते हुए भी मेरे पुत्र नहीं है. सो मैं अत्यंत दु:ख पा रहा हूँ, इसका क्या कारण है?
राजा महीजित की इस बात को विचारने के लिए मंत्री तथा प्रजा के प्रतिनिधि वन को गए. वहाँ बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों के दर्शन किए. राजा की उत्तम कामना की पूर्ति के लिए किसी श्रेष्ठ तपस्वी मुनि को देखते-फिरते रहे. एक आश्रम में उन्होंने एक अत्यंत वयोवृद्ध धर्म के ज्ञाता, बड़े तपस्वी, परमात्मा में मन लगाए हुए निराहार, जितेंद्रीय, जितात्मा, जितक्रोध, सनातन धर्म के गूढ़ तत्वों को जानने वाले, समस्त शास्त्रों के ज्ञाता महात्मा लोमश मुनि को देखा, जिनका कल्प के व्यतीत होने पर एक रोम गिरता था. सबने जाकर ऋषि को प्रणाम किया. उन लोगों को देखकर मुनि ने पूछा कि आप लोग किस कारण से आए हैं? नि:संदेह मैं आप लोगों का हित करूँगा. मेरा जन्म केवल दूसरों के उपकार के लिए हुआ है, इसमें संदेह मत करो.
लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर सब लोग बोले- हे महर्षे! आप हमारी बात जानने में ब्रह्मा से भी अधिक समर्थ हैं. अत: आप हमारे इस संदेह को दूर कीजिए. महिष्मति पुरी का धर्मात्मा राजा महीजित प्रजा का पुत्र के समान पालन करता है. फिर भी वह पुत्रहीन होने के कारण दु:खी है. उन लोगों ने आगे कहा कि हम लोग उसकी प्रजा हैं. अत: उसके दु:ख से हम भी दु:खी हैं. आपके दर्शन से हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारा यह संकट अवश्य दूर हो जाएगा क्योंकि महान पुरुषों के दर्शन मात्र से अनेक कष्ट दूर हो जाते हैं. अब आप कृपा करके राजा के पुत्र होने का उपाय बतलाएँ.
यह वार्ता सुनकर ऋषि ने थोड़ी देर के लिए नेत्र बंद किए और राजा के पूर्व जन्म का वृत्तांत जानकर कहने लगे कि यह राजा पूर्व जन्म में एक निर्धन वैश्य था. निर्धन होने के कारण इसने कई बुरे कर्म किए. यह एक गाँव से दूसरे गाँव व्यापार करने जाया करता था. एक समय ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन मध्याह्न के समय वह जबकि वह दो दिन से भूखा-प्यासा था, एक जलाशय पर जल पीने गया. उसी स्थान पर एक तत्काल की ब्याही हुई प्यासी गौ जल पी रही थी.
राजा ने उस प्यासी गाय को जल पीते हुए हटा दिया और स्वयं जल पीने लगा, इसीलिए राजा को यह दु:ख सहना पड़ा. एकादशी के दिन भूखा रहने से वह राजा हुआ और प्यासी गौ को जल पीते हुए हटाने के कारण पुत्र वियोग का दु:ख सहना पड़ रहा है. ऐसा सुनकर सब लोग कहने लगे कि हे ऋषि! शास्त्रों में पापों का प्रायश्चित भी लिखा है. अत: जिस प्रकार राजा का यह पाप नष्ट हो जाए, आप ऐसा उपाय बताइए. लोमश मुनि कहने लगे कि श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी को जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहते हैं, तुम सब लोग व्रत करो और रात्रि को जागरण करो तो इससे राजा का यह पूर्व जन्म का पाप अवश्य नष्ट हो जाएगा, साथ ही राजा को पुत्र की अवश्य प्राप्ति होगी. लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर मंत्रियों सहित सारी प्रजा नगर को वापस लौट आई और जब श्रावण शुक्ल एकादशी आई तो ऋषि की आज्ञानुसार सबने पुत्रदा एकादशी का व्रत और जागरण किया. इसके पश्चात द्वादशी के दिन इसके पुण्य का फल राजा को दिया गया. उस पुण्य के प्रभाव से रानी ने गर्भ धारण किया और प्रसवकाल समाप्त होने पर उसके एक बड़ा तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ.