पौष माह की पूर्णिमा कब है, जानें पूजन विधि और शुभ मुहूर्त
पौष पूर्णिमा पर सूर्य और चंद्रमा का यह अद्भूत संगम बेहद शुभ माना जाता है. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान के मोक्ष की प्राप्ति होती है.
Paush Purnima 2022: पौष पूर्णिमा पर सूर्य और चंद्रमा का यह अद्भूत संगम बेहद शुभ माना जाता है. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान के मोक्ष की प्राप्ति होती है. साथ ही पूर्णिमा पर भगवान विष्णु की भी पूजा का विधान है. इस दिन शुभ मुहूर्त में पूजा पाठ करने से विष्णु जी प्रसन्न होते हैं और जातक की हर मनोकामना पूरी करते हैं.
Paush Purnima 2022 Date: हिंदू धर्म में पूर्णिमा तिथि का खास महत्व माना जाता है. पौष पूर्णिमा सोमवार 17 जनवरी, 2022 को है. इस तिथि को चंद्रमा अपने पूर्ण आकार में होता है. वहीं पौष माह में पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि और भी खास हो जाती है. क्योंकि पौष माह को सूर्य का माह कहा जाता है. इस तिथि को सूर्य और चंद्रमा का यह अद्भूत संगम बेहद शुभ माना जाता है. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान के मोक्ष की प्राप्ति होती है. साथ ही पूर्णिमा पर भगवान विष्णु की भी पूजा का विधान है. इस दिन शुभ मुहूर्त में पूजा पाठ करने से विष्णु जी प्रसन्न होते हैं और जातक की हर मनोकामना पूरी करते हैं. जानें पौष पूर्णिमा की व्रत और पूजा विधि...
पौष पूर्णिमा का महत्व
वैदिक ज्योतिष और हिंदू धर्म से जुड़ी मान्यता के मुताबिक, पौष सूर्य देव का माह कहलाता है. कहा जाता है कि इस मास में सूर्य देव की आराधना से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसलिए पौष पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में के पूजन से मनोकामनाएं पूर्ण होती है और जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं. पौष पूर्णिमा के दिन काशी, प्रयागराज और हरिद्वार में गंगा स्नान का बड़ा महत्व होता है. इस दिन पूजा, जप, तप और दान से न केवल चंद्र देव, बल्कि भगवान श्रीहरि की भी कृपा मिलती है. पूर्णिमा और अमावस्या को पूजा और दान करने से व्यक्ति के समस्त पाप कट जाते हैं.
पौष पूर्णिमा 2022 मुहूर्त
पौष पूर्णिमा 17 जनवरी, 2022 दिन सोमवार को है. पूर्णिमा तिथि 17 जनवरी को सुबह 3 बजकर 18 मिनट से शुरू होकर 18 जनवरी को सुबह 5 बजकर 17 मिनट पर समाप्त होगी.
पूर्णिमा पूजा विधि
1. पौष पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल स्नान से पहले व्रत का संकल्प लें.
2. पवित्र नदी या कुंड में स्नान करें और स्नान से पूर्व वरुण देव को प्रणाम करें.
3. स्नान के पश्चात सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए.
4. स्नान से निवृत्त होकर भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए और उन्हें नैवेद्य अर्पित करना चाहिए.
5. किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर दान-दक्षिणा देनी चाहिए.
6. दान में तिल, गुड़, कंबल और ऊनी वस्त्र विशेष रूप से देने चाहिए.