देवउठनी एकादशी की क्या है मान्यता
आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है.
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क | आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है. इस दिन भगवान विष्णु पाताल लोक में चार महीनों के विश्राम करने चले जाते हैं. कहा जाता है देवशयनी से लेकर देवउठनी एकादशी तक नारायण योग निद्रा में रहते हैं. इस चार माह की अवधि को चतुर्मास कहा जाता है.
इस अवधि में मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है. हालांकि व्रत, देव दर्शन और धार्मिक नियमों के पालन किया जाता है. वहीं सृष्टि के संचालन का जिम्मा महादेव पर होता है. इस बार देवशयनी एकादशी 20 जुलाई को पड़ रही है. इस मौके पर आपको बताते हैं कि देवशयनी एकादशी के दिन विष्णु भगवान के आराम करने के पीछे क्या है मान्यता.
पहली कथा
कहा जाता है कि शंखचूर नाम के असुर से भगवान विष्णु का लंबा युद्ध चला और आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन भगवान ने शंखचूर का वध कर दिया. इतने लंबे युद्ध को करते हुए भगवान बहुत थक गए और तब देवताओं ने उनसे आराम करने का आग्रह किया. इसके बाद भगवान विष्णु ने शिव जी को सृष्टि का कार्यभार सौंपा और चार विश्राम के लिए पाताल लोक में चले गए. तब से उस एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाने लगा. चार माह बाद उनकी निद्रा खुली. जिस दिन भगवान जागे उस दिन को देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. तब से आज तक देवशयनी से लेकर देवउठनी एकादशी तक शिव जी संसार को संभालते हैं और ये समय नारायण के विश्राम का माना जाता है.
दूसरी कथा
एक अन्य कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु ने वामन बनकर राजा बलि से तीन पग में तीनों लोक मांग लिए थे तो राजा बलि को पाताल वापस जाना पड़ा. लेकिन बलि की भक्ति और उदारता से भगवान वामन मुग्ध थे. उन्होंंने बलि से वरदान मांगने को कहा. तब बलि ने कहा कि मैं चाहता हूं कि आप हमेशा मेरे साथ पाताल में निवास करें. भक्त की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान पाताल में रहने लगे. इससे लक्ष्मी मां दुखी हो गईं और भगवान विष्णु को वहां से मुक्त कराने के लिए एक गरीब स्त्री बनकर पाताल लोक पहुंच गईं.
लक्ष्मी मां के दीन हीन अवस्था को देखकर बलि ने उन्हें अपनी बहन बना लिया. तब उन्होंने राजा बलि को राखी बांधी और कहा कि अगर तुम अपनी बहन को खुश देखना चाहते हो तो मेरे पति को मेरे साथ बैकुंठ विदा कर दो. बलि ने बहन की बात को टाला नहीं और श्रीहरि को बैकुंठ भेज दिया. तब भगवान विष्णु ने बलि के त्याग को देखकर कहा कि अब से आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन तक वे हर साल पाताल में निवास करेंगे.
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)