शिव-पार्वती का दांपत्‍य जीवन से हमें यह सीखना चाहिए, जिंदगी आसान हो जायेगी

आज के समय में बिखरते रिश्तों को थामकर रखने का महत्व बहुत बढ़ गया है।

Update: 2021-03-10 02:34 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क:  आज के समय में बिखरते रिश्तों को थामकर रखने का महत्व बहुत बढ़ गया है। पति-पत्नी के लिए समझना जरूरी है कि उनका साथ और उनकी समझ ही उनकी शक्ति है। भगवान शिव और देवी पार्वती की जोड़ी ऐसा ही सात्विक जुड़ाव लिए है। इसमें एक-दूसरे की शक्ति बनने के भाव समाहित हैं। समय चाहे कितना भी बदल जाए, पति या प्रेमी के तौर पर शिव की प्रासंगिकता कभी खत्म नहीं होगी। गौरा को अर्धांगिनी बनाने वाले शिव प्रेतों और पिशाचों से घिरे रहते हैं। उनका रूप बड़ा अजीब है। शरीर पर मसानों की भस्म, गले में सर्पहार, कंठ में विष, जटाओं में जगत-तारिणी पावन गंगा और माथे पर प्रलयंकारी ज्वाला उनकी पहचान है। शिव यानी कल्याण करने वाला।

आज के परिवेश में जहां मनुष्य अपने चरित्र, वाणी, कर्म और संस्कारों को खो चुका है, अपनी शक्तियों का प्रयोग मानवता को खत्म करने में कर रहा है। ऐसे में शिव का चरित्र उसको सही दिशा दिखाने के लिए सर्वथा प्रासंगिक है। भगवान शिव और पार्वती का दांपत्य हमें बहुत कुछ सिखाता है। अनगिनत इच्छाओं को पूरा करने की चाहत और भागम-भाग की जिंदगी में सहूलियतें जुटा लेना ही जिंदगी को सुखी नहीं बना सकता। सुख-सुविधाओं से परे स्नेह से सिंचित उनका दांपत्य हमारे लिए बड़ी सीख है। महादेव के परिवार का जीवन साधारण और सरल रहा है, तभी तो आम लोग इससे प्रेरणा प्राप्त करते हैं। अपने रिश्तों और दायित्वों में यदि संतुलन बना कर चला जाए, तो सरलता से जीवन व्यतीत किया जा सकता है। शिव-पार्वती का दांपत्य आत्मीय प्रेम और स्वीकार्यता का भी प्रतीक है। शिव को भूत, पिशाच और विचित्र भेष में पाकर भी पार्वती ने उन्हें मन से अपनाया।
हम अपने परिवेश और प्रकृति से छूटते जा रहे हैं जबकि अपने परिवार के साथ प्रकृति और समाज सभी का साथ होना जरूरी है। यही उदाहरण देने लिए शिव ने अपने परिवार में भूत-पिशाच, देव-दानव-गण सभी को मिलाया है। सबको साथ लेकर चलने की सोच शिव परिवार में देखने को मिलती है, और हमें सीखना चाहिए कि सबके साथ से जीवन को आनंदित बनाया जा सकता है। वैसे भी वैवाहिक जीवन तो जिम्मेदारियों और खुशियों का सुंदर मिलन ही है। जरूरत है अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए जीवन में संतुलन बना कर चला जाए और नहीं भूलना चाहिए कि जिम्मेदारियों को संभाल कर चलना ही संतुष्टि का आधार है।
शिव का प्रेम सरल है, सहज है। उसमें समर्पण के साथ सम्मान भी है। शिव प्रथम पुरुष हैं, फिर भी उनके किसी स्वरूप में पुरुषोचित अहंकार यानी मेल ईगो नहीं झलकता। सती के पिता दक्ष से अपमानित होने के बाद भी उनका मेल ईगो उनके दांपत्य में कड़वाहट नहीं जगाता। अपने लिए न्यौता नहीं आने पर भी सती के मायके जाने की जिद का शिव ने सहजता से सम्मान किया।
अलग-अलग लोक कथाओं में शिव और शक्ति कई बार एक-दूसरे से दूर हुए, लेकिन हर बार उन्‍होंने एक-दूसरे को ढूंढ़कर अपनी संपूर्णता को पा लिया। इसलिए शिव और पार्वती का प्रेम स्थापित मान्यताओं को चुनौती देता हुआ, हमेशा सामयिक रहेगा। क्योंकि शिव होने का मतलब प्रेम में बंधकर भी निर्मोही हो जाना है, शिव होने का मतलब प्रेम में आधा बंटकर भी संपूर्ण हो जाना है।


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