कल है मासिक शिवरात्रि, इस तरह करें विधि-विधान
हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि के तौर पर मनाया जाता है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि (Masik Shivratri) के तौर पर मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन भोलेनाथ का व्रत रखने से वे अत्यंत प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की समस्याओं का अंत करते हैं. इसके अलावा हर माह मासिक शिवरात्रि का व्रत रखने से घर में सुख शांति और समृद्धि का वास होता है. साल 2021 की दूसरी मासिक शिवरात्रि 10 फरवरी को मनाई जाएगी.
ऐसे करें पूजन
सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र पहनें. कोशिश करें कि पीले रंग के वस्त्र हों. इसके बाद घर के मंदिर में रखी महादेव और माता पार्वती की तस्वीर के समक्ष हाथ जोड़कर व्रत रखने का संकल्प लें. इसके बाद पंचामृत चढ़ाएं. चंदन लगाएं और बेलपत्र, फल, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य, दक्षिणा और इत्र वगैरह भगवान को अर्पित करें. इसके बाद शिव चालीसा, शिवाष्टक, शिव मंत्र करें. शिव मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से करें. आखिर में गणपति की आरती गाकर शिव आरती करें. दिन में फलाहार लें. अगले दिन स्नान करने के बाद व्रत खोलें.
ये है महत्व
मासिक शिवरात्रि का व्रत बहुत प्रभावशाली होता है. मान्यता है कि मासिक शिवरात्रि का व्रत करने से मनोवांछित वर की प्राप्ति होती है और विवाह में आ रही रुकावटें दूर होती हैं. जिन लोगों को संतान नहीं है, उन्हें संतान सुख प्राप्त होता है.
पूजा के दौरान भूलकर भी न करें ये गलतियां
1- शिव जी के पंचामृत में भूलकर भी तुलसी का प्रयोग न करें कहा जाता है की भगवान शिव ने जालंधर नामक राक्षस का वध किया था और जालंधर की पत्नी वृंदा बाद में तुलसी का पौधा बन गई थीं. इसलिए शिव जी की पूजा में तुलसी का प्रयोग वर्जित है.
2- सिंदूर को विवाहित स्त्रियों का गहना माना गया है. लेकिन ये माता पार्वत को तो चढ़ाया जाता है लेकिन शिवजी पर नहीं. भगवान शिव विध्वंसक के रूप में भी जाने जाते हैं और सिंदूर का रंग लाल होता है. इसलिए शिवजी पर सिंदूर या कुमकुम नहीं चढ़ाना चाहिए.
3- शिवलिंग पर नारियल अर्पित किया जाता है लेकिन इससे अभिषेक नहीं करना चाहिए. इसलिए शिव पर नारियल का जल नहीं चढ़ाना चाहिए.
4- शिव जी को कभी भी शंख से जल अर्पित नहीं किया जाता है और न ही भगवान शिव की पूजा में शंख का उपयोग किया जाता है. दैत्य शंखचूड़ का भगवान शंकर ने त्रिशूल से वध किया था, जिसके बाद उसका शरीर भस्म हो गया. मान्यता है शंखचूड़ के भस्म से ही शंख की उत्पत्ति हुई थी.