आज है तुलसीदास जयंती, जानें उन्होंने जेल में कैसे की थी हनुमान चालीसा की रचना
धर्म अध्यात्म: श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के सातवें दिन तुलसीदास की जयंती मनाई जाती है. महान कवि तुलसीदास के कार्यों के सम्मान में तुलसीदाय जयंती हर साल मनायी जाती है. तुलसीदास एक प्रसिद्ध भारतीय कवि और संत थे, जिन्होंने 16वीं सदी में जीवन गुजारा. उन्होंने 'रामचरितमानस' नामक महाकाव्य लिखा, जो भगवान श्रीराम की कथा को सुनाता है. यह महाकाव्य अवधी भाषा में है और हिन्दू धर्म के प्रमुख धार्मिक और साहित्यिक ग्रंथों में से एक है. तुलसीदास का योगदान हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है और उन्हें भक्ति आंदोलन की आज भी सराहना की जाती है.
हनुमान चालीसा के लेखक भी तुलसीदास ही हैं, जिन्होंने इसे 16वीं सदी में अवधी भाषा में लिखा था. यह चालीसा हनुमान जी की महिमा को व्यक्त करने वाली एक प्रसिद्ध भक्ति रचना है जो चालीस स्त्रोतों से मिलकर बनी है. इसे 'चालीसा' के नाम से जाना जाता है क्योंकि इसमें 40 श्लोक होते हैं. हनुमान चालीसा को तुलसीदास जी ने अपने महाकाव्य 'रामचरितमानस' के एक खंड में भी शामिल किया था.
हनुमान चालीसा की शक्ति के बारे में तो हम सब जानते हैं लेकिन शायद आप ये नहीं जानते कि इसे तुलसीदास जी ने जेल में कैद के दौरान लिखा था. लेकिन एक कवि को जेल कैसे हुई इसकी कहानी भी रोचक है.
महान कवि और संत तुलसीदास को कैसे हुई जेल
कहते हैं एक बार मुगल सम्राट अकबर ने उन्हें अपने दरबार में बुलाया और उनसे कहा कि वो उनकी प्रशंसा करते हुए उनके लिए एक ग्रंथ लिख दें. लेकिन तुलसीदास तो अपने मन से काम करते थे. भगवान राम और हनुमान बाबा के परम भक्त तुलसीदास ने मुगल सम्राट अकबर ने साफ मना कर दिया. तुलसीदास के मुंह से ना सुनना सम्राट अकबर को नागवार गुज़रा और उन्होंने उसे कैद कर लिया.
जेल में तुलसीदास जी ने कैसे लिखी हनुमान चालीसा
कैद में तुलसीदास जी ने सोचा कि उन्हें इस संकट से कोई बाहर निकाल सकता है तो वो संकटमोचन हनुमान ही है. उन्होंने इस 40 दिन की कैद में चालीस चौपाईयां लिखी. जिसका पाठ वो लगातार 40 दिनों तक करते रहे. फिर प्रभु कृपा से 40 दिन बाद बंदरों के एक झुंड ने राजा के महल पर हमला कर दिया और सब बर्बाद कर दिया. तब मंत्रियों की सलाह पर राजा मुगल बादशाह अकबर ने तुलसीदास को जेल की कैद से आज़ाद कर दिया.
ऐसा भी कहा जाता है कि जब तुलसीदास जी ने पहली बार हनुमान चालीसा का पाठ किया था उसे सुनने स्वयं हनुमान जी आए थे. इतना ही नहीं जब उन्होंने रामचरित्रमानस महाकाव्य की रचना कर उसे पढ़ना शुरु किया तो उसे सुनने आए सभी व्यक्ति एक-एक कर वहां से चले गए लेकिन अंत तक एक बूढ़ा व्यक्ति वहां बैठा रहा. कहते हैं वो बूढ़ा व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि साक्षात हनुमान बाबा ही थे.
हालांकि इनका जन्म कहां हुआ ये विवाद आज भी बना हुआ है लेकिन अधिकतर लोग मानते हैं कि तुलसीदास का जन्म 1532 उत्तरप्रदेश के राजापुर गांव में हुआ था. तुलसीदास ने अपना अधिकांश जीवन वाराणसी शहर में बिताया. वाराणसी में गंगा नदी पर प्रसिद्ध तुलसी घाट का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है. तो आप अब तक अगर हनुमान चालीसा का सिर्फ पाठ करते थे तो इसके पीछे की ये रोचक कहानी जानकर आप अब और श्रद्धापूर्वक इसका पाठ करेंगे.