आज इन दो शुभ योगों के बीच मनाई जा रही है फाल्गुन अमावस्या.....जानें महत्व
फाल्गुन मास की अमावस्या तिथि हिंदू वर्ष के हिसाब से साल की आखिरी अमावस्या तिथि होती है. शास्त्रों में बेहद शुभ माना गया है. इस बार फाल्गुन अमावस्या पर दो शुभ योग बनने से इसका महत्व कहीं ज्यादा बढ़ गया है. जानिए फाल्गुन अमावस्या से जुड़ी खास बातें.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आज 2 मार्च को फाल्गुन मास की अमावस्या (Phalguna Amavasya) मनाई जा रही है. शास्त्रों में अमावस्या (Amavasya) तिथि को पितरों के लिए समर्पित माना गया है. मान्यता है कि इस दिन पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण व दान आदि करने से पितर संतुष्ट रहते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं. पितरों का आशीर्वाद उनके बच्चों के जीवन में तमाम संकटों को दूर करके उनके जीवन को खुशहाल बनाता है. इसलिए इस तिथि को बेहद शुभ माना गया है. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना भी बेहद फलदायी माना गया है. पितृदोष निवारण (Pitra Dosh Upay) के लिए भी अमावस्या का दिन एकदम उपर्युक्त माना गया है. यहां जानिए फाल्गुन अमावस्या तिथि से जुड़ी खास बातें.
बन रहे हैं दो शुभ योग
अमावस्या तिथि 1 मार्च, मंगलवार को देर रात 01:00 बजे से शुरू हो चुकी है, और 02 मार्च बुधवार को रात 11:04 बजे तक रहेगी. इस बार फाल्गुन अमावस्या पर दो शुभ योग बन रहे हैं, जिसके कारण अमावस्या तिथि का महत्व कहीं ज्यादा बढ़ गया है. आज सुबह 08:21 बजे तक शिव योग है और उसके बाद से सिद्ध योग प्रारंभ हो जाएगा. सिद्ध योग अगले दिन 03 मार्च को प्रात: 05:43 बजे तक रहेगा. दोनों ही योग में शुद्ध मन से किए गए किसी भी शुभ काम का फल कई गुना बढ़ जाता है.
फाल्गुन मास का महत्व
फाल्गुन अमावस्या हिंदू वर्ष के हिसाब से साल की आखिरी अमावस्या होती है. इस दिन देश के कई हिस्सों में फाल्गुन मेले का आयोजन किया जाता है. मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदियों में देवी और देवता निवास करते हैं, इस कारण नदी स्नान का विशेष महत्व बताया गया है. वहीं पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्ध, तर्पण, दान आदि करने और गीता का पाठ पढ़ने से पितरों को कई यातनाओं से मुक्ति मिलती है. ऐसे में पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और संतान का जीवन सुखद बनता है.
अमावस्या के दिन क्या करना चाहिए
– किसी भी पवित्र नदी में स्नान करें या घर में ही जल में गंगाजल डालकर स्नान करें, इसके बाद सूर्यदेव को अर्घ्य दें. पितरों का तर्पण करें.
– पीपल के पेड़ की पूजा करें. पीपल को मीठा जल अर्पित करें औ सरसों के तेल का दीपक जलाएं. संभव हो तो इस दिन किसी स्थान पर पीपल का पौधा भी लगाएं और उसकी सेवा करें.
– महादेव और नारायण का पूजन करें. दूध, दही, शहद, घी और बूरा से महादेव का अभिषेक करें.
– शनिदेव का पूजन करें और उन्हें सरसों का तेल चढ़ाएं. उनके समक्ष सरसों के तेल का दीपक जलाएं और काली उड़द, काले तिल, लोहे की वस्तु, काली दाल, सरसों का तेल आदि किसी निर्धन को दान करें.
ये काम न करें
– अमावस्या के दिन दोपहर का समय पितरों के लिए होता है, इसलिए दिन में सोना नहीं चाहिए.
– इस दिन तमाम लोग व्रत भी रखते हैं. अगर आपने भी व्रत रखा है, तो व्रत में सेंधा नमक का इस्तेमाल न करें.
– अगर दरवाजे पर कोई भिक्षुक आ जाए तो उसे खाली हाथ न लौटाएं. कुछ न कुछ अवश्य दें.
– स्वच्छ वस्त्र पहनें, लेकिन काले रंग के वस्त्र न पहनें. क्रोध न करें, प्रेमपूर्वक आचरण करें.