Mahabaleshwar का प्रसिद्ध पंच गंगा मंदिर, जानें इसका पौराणिक इतिहास

Update: 2024-06-14 17:50 GMT
Mahabaleshwar में कई पुराने मंदिर हैं. यहां पंचगंगा नाम का एक मंदिर है जहां 5 नदियों का पानी एक साथ गौमुख से आता है. ये पानी जिस झरने में आकर गिरता है वो इतना छोटा है कि लगातार पानी आने के बावजूद वो पानी बाहर नहीं फैलता और कुदरत के इस चमत्कार को देखने के लिए ही लोग दूर-दूर से यहां आते हैं. ये पानी कहां जाता है इस बारे में आजतक किसी को कुछ पता नहीं चल पाया है. हेमाडपंथी शैली में बना ये मंदिर कितना पुराना है ये किसी को नहीं पता.
किन पांच नदियों का यहां संगम होता है ?
Panchganga Temple पांच नदियों के संगम पर निर्मित पंचगंगा मंदिर एक प्रमुख धार्मिक स्थल है और वर्षभर भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है. ये ऐतिहासिक पंचगंगम मंदिर महाबलेश्वर में स्थित है. इस प्रसिद्ध मंदिर को राजा सिंहदेव द्वारा बनवाया गया था. वह तेरहवीं शताब्दी में देवगिरी के यादव राजा थे. यह मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है. मंदिर की कहानी त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और शिव पर सावित्री के श्राप के निकटता पर जुड़ी हुई है जो यहां कोयना, कृष्णा और वेना नदियों के रूप में बहती है. मंदिर में एक सुंदर नकाशीदार गौमुखी भी है, जिसमे से पांच नदियों का पानी बहता है. यह पांच अलग अलग नदियों कृष्णा, वेना, सावित्री, कोयना और गायत्री से बना है. पांच नदियों के संगम की वजह से इस स्थान का नाम पंचगंगा है जहाँ पंच का अर्थ है पांच तथा गंगा का अर्थ है नदी. सभी नदियां गाय के मुख से निकलती है जो पत्थर से बनाई गई है.
पंच गंगा मंदिर का इतिहास
कुछ लोग ये मानते हैं कि ये मंदिर 5000 साल से भी ज्यादा पुराना है और इसे पांडवों ने बनाया था. बाद में 1880 के आसपास रत्नागारी के राजा ने इसे फिर से बनवाया. इस मंदिर में एक शिवलिंग भी है और भगवान कृष्ण की भी एक काफी सुंदर मूर्ति है जिसे कृष्णा बाई नाम दिया गया है. कहते हैं इस मंदिर का नाम कृष्णा बाई इसलिए भी पड़ा क्योंकि इसी मंदिर के पास से कृष्णा नदी भी बहती है.
पंच गंगा मंदिर की विशेषताएं
इस मंदिर के हर एक पत्थर से लेकर गाय की मूर्ति तक यहां सब देखने लायक ही है. यहां की सबसे खास बात ये है कि इस झरने का पानी कभी भी खत्म नहीं होता. ये झरना निरंतर बहता रहता है. इस मूर्ति के सामने एक कुंड है, ये कोई मामूली कुंड नहीं है बल्कि इसे काफी सोच समझकर बनाया गया था. इस कुंड में भले ही निरंतर पानी आता रहता है, लेकिन इस कुंड की वाटर लेवल हमेशा इतनी ही रहती है. ये कुंड पानी से कभी भी ओवरफ्लो नहीं होता. लेकिन ये पानी जाता कहां है इसका आजतक कोई पता नहीं लगा पाया है.
इस मंदिर को बनाने के लिए सैकड़ों अलग-अलग आकार के पत्थरों का इस्तेमाल हुआ है. इनमे से कुछ काफी छोटे थे तो कुछ बहुत बड़े-बड़े पत्थर थे.इतने बड़े की इन्हें इस जगह पर लाया कैसे होगा? इन्हें यहां लगाया कैसे होगा ये सोचने वाली बात है. ये मंदिर कई फिट जमीन के अंदर नीचे धसा हुआ है. उस समय के जो भी मंदिर रहते थे उनकी ऊंचाई काफी ज्यादा होती थी. लेकिन इस मंदिर को अगर हम देखें तो वो काफी कम हाइट पर दिखाई देता है.
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