सुकृति संभु तन बिमल बिभूती, शिव जी के शरीर पर लिपटी भस्म ही है गुरु रज, तुलसीदास जी ने गुरु रज की बताई अद्भुत महिमा
पृथ्वी की वस्तुएं को देखते है उसी प्रकार मैं गुरु की पद की रज को अंजन की भांति लगाकर विवेक रूपी नेत्रों को स्वच्छ करके श्री रामचरित का वर्णन करता हूं.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Motivational Quotes, Chaupai, ramcharitmanas : तुलसीदास जी ने मानस के प्रारंभ में गुरु की चरणों की रज का माहत्म बताया है. गुरु के पद नख के प्रकाश की महिमा का भी चौपाइयों में उल्लेख किया है. तुलसीदास जी की चौपाइयों का मर्म है की साधक आदि सुंदर अंजन लगाकर इस पृथ्वी की वस्तुएं को देखते है उसी प्रकार मैं गुरु की पद की रज को अंजन की भांति लगाकर विवेक रूपी नेत्रों को स्वच्छ करके श्री रामचरित का वर्णन करता हूं.
बंदउँ गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।।
अमिअ मूरिमय चूरन चारू।
समन सकल भव रुज परिवारू।।
मैं गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वन्दना करता हूँ, जो सुंदर स्वाद, सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है. वह अमर मूल यानी संजीवनी बूटी का सुन्दर चूर्ण है, जो सम्पूर्ण भव रोगों यानी बार-बार जन्म मरण एवं काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मान, ममता, ईर्ष्या, दम्भ, कपट, तृष्णा, राग, द्वेष इत्यादि के बंधन से मुक्त करने वाला होता है.
सुकृति संभु तन बिमल बिभूती ।
मंजुल मंगल मोद प्रसूती ।।
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी ।
किएँ तिलक गुन गन बस करनी ।।
वह रज धर्मशील एवं पुण्यवान पुरुष रूपी शिवजी के शरीर पर सुशोभित निर्मल विभूति है और सुन्दर कल्याण और आनन्द की जननी है, भक्त के मन रूपी सुन्दर दर्पण के मैल को दूर करने वाली और तिलक करने से गुणों के समूह को वश में करने वाली है
श्रीगुर पद नख मनि गन जोती ।
सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती ।।
दलन मोह तम सो सप्रकासू ।
बड़े भाग उर आवइ जासू ।।
श्री गुरु महाराज के चरण-नखों की ज्योति मणियों के प्रकाश के समान है, जिसके स्मरण करते ही हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो जाती है. वह प्रकाश अज्ञान रूपी अंधकार का नाश करने वाला है. वह जिसके हृदय में आ जाता है,वह बहुत ही भाग्यशाली हैं
उघरहिं बिमल बिलोचन ही के।
मिटहिं दोष दुख भव रजनी के।।
सूझहिं राम चरित मनि मानिक।
गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक।।
श्रीगुरु के प्रकाश से हृदय के निर्मल नेत्र खुल जाते हैं और संसार रूपी रात्रि के दोष-दुःख मिट जाते हैं एवं श्रीरामचरित्र रूपी मणि और माणिक्य गुप्त रूप और प्रकट रूप से जहाँ जो जिस खान में होते हैं, वह सब दिखायी पड़ने लगते हैं.
दोहा :
जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान ।
कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान ।।1।।
जैसे सिद्ध अंजन को नेत्रों में लगाकर साधक, सिद्ध और सुजान पर्वतों, वनों और पृथ्वी के अंदर की खानों की कौतुक को बहुत ही सहजता से देख लेता हैं.
गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन ।
नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन ।।
तेहिंकरि बिमल बिबेक बिलोचन ।
बरनउँ राम चरित भव मोचन ।।
श्री गुरु महाराज के चरणों की रज, कोमल और सुन्दर नयनो का अमृत -अंजन है, जो नेत्रों के दोषों का नाश करने वाला है. उस अंजन से विवेक रूपी नेत्रों को निर्मल करके मैं संसार रूपी बन्धन से छुड़ाने वाले श्रीरामचरित का वर्णन करता हूँ.