Surya Dev Janm Katha: देवताओं को वापस स्वर्ग ले गए थे भगवान सूर्य, पढ़ें उनके जन्म की कथा
Surya Dev Janm Katha: वैसै रोजाना ही भगवान सूर्य को अर्ध्य देने का विधान है. भगवान सूर्य आत्मविश्वास और उर्जा के कारक माने गए हैं. वहीं भगवान सूर्य का जन्म तरह हुआ, इसका वर्णन ब्रह्म पुराण में मिलता है|
ब्रह्म पुराण में कहा गया है कि पहले सृष्टि मेंं कोई उजाला नहीं था. उजाला न होने की वजह से पहले दिन और रात में कोई अंतर पता नहीं चलता था. एक बार देवता और असुरों में युद्ध छिड़ गया. असुरों ने युद्ध में देवताओं को पराजित कर दिया. इसके बाद देवताओं से स्वर्ग छिन गया. फिर देवता अपनी मता अदिति के पास गए और उनसे सहायता के लिए आग्रह किया|
देवताओं की माता ने भगवान सूर्य की अराधना-
इसके बाद देवताओं की माता ने भगवान सूर्य की अराधना की. अदिति ने भगवान सूर्य से उनके पुत्र के रूप में जन्म लेने का वरदान मांगा, जिसके बाद भगवान सूर्य की कृपा से एक किरण जिसका नाम सुषुम्ना था, उसने अदिति के गर्भ के भीतर प्रवेश किया. फिर अदिति गर्भावस्था में ही रोज सूर्य देव का कठिन व्रत करने लगीं|
भगवान सूर्य के प्रकट होने से संसार में उजाला-
एक दिन उनके पति ऋषि कश्यप ने उनसे कहा कि रोजाना इस कठीन व्रत के कारण उनके गर्भ में पल रहे शिशु को नुकसान पहुंच सकता है. तब अदिति ने अपने योग के बल के दम पर अंड रूप में गर्भ को बाहर निकाल दिया. अदिति ने अंड रूप में जो गर्भ निकाला उससे एक दिव्य प्रकाश हुआ. फिर उस गर्भ से भगवान सूर्य के शिशु रूप में प्रकट होने से सारा संसार रौशनी से जगमगा उठा|
भगवान सूर्य की तेज रौशनी से डरे असुर-
भगवान सूर्य की तेज रौशनी से असुर डरकर स्वर्ग छोड़कर भाग गए. देवताओं को इसके बाद स्वर्ग वापस मिल गया. मान्यता है कि उसी दिन से भगवान सूर्य अंडज रूप में आसमान में दिखाई देने लगे. दरअसल, भगवान सूर्य ने माघ महीने की सप्तमी तिथि को जन्म लिया था. हिंदू धर्म में भगवान सूर्य के जन्म के दिन को रथ सप्तमी के रूप में मनाने की मान्यता है|