ज्येष्ठ माह की मासिक दुर्गाष्टमी पर बना रहा खास योग, जानें शुभ मुहूर्त और महत्व
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, हर मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत रखा जाता है। इस खास दिन मां दुर्गा की विधि-विधान से पूजा करने से मां अंबे हर कष्ट से छुटकारा दिलाती हैं।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, हर मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत रखा जाता है। इस खास दिन मां दुर्गा की विधि-विधान से पूजा करने से मां अंबे हर कष्ट से छुटकारा दिलाती हैं। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दुर्गा अष्टमी का व्रत रखा जा रहा है। इस बार दुर्गाष्टमी का दिन काफी खास है क्योंकि इस दिन सिद्धि योग के साथ उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र लग रहा है। मान्यता है कि इस खास मौके पर पूजा करने से व्यक्ति को हर कष्ट से छुटकारा मिल जाता है और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। जानिए ज्येष्ठ मास में पड़ने वाली मासिक दुर्गा अष्टमी का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।
मासिक दुर्गाष्टमी का शुभ मुहूर्त
ज्येष्ठ माह में अष्टमी तिथि प्रारम्भ- 07 जून को सुबह 07 बजकर 54 से शुरू
अष्टमी तिथि का समापन- 08 जून को सुबह 08 बजकर 30 मिनट तक
उदया तिथि के आधार पर इस साल ज्येष्ठ माह में मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत 8 जून को रखा जाएगा।
सिद्धि योग- 8 जून सुबह 4 बजकर 27 मिनट से शुरू होकर 9 जून सुबह 3 बजकर 26 मिनट तक
उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र- 8 जून को सुबह 3 बजकर 49 मिनट से शुरू होकर 9 जून सुबह 4 बजकर 31 मिनट तक
मासिक दुर्गाष्टमी की पूजा विधि
दुर्गाष्टमी तिथि के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें।
स्नान के बाद साफ वस्त्र धारण कर लें।
अगर व्रत रखने की इच्छा है, तो मां दुर्गा का मनन करते हुए संकल्प ले लें।
पूजा घर में जाकर एक चौकी में ला वस्त्र बिछाकर मां दुर्गा की तस्वीर या फिर मूर्ति स्थापित कर लें।
आप चाहे तो पूजा घर में ही तस्वीर रखकर पूजा कर सकते हैं।
अब थोड़ा सा जल अपने ऊपर छिड़कर शुद्धिकरण करके आसन में बैठ जाए।
मां दुर्गा को फूल, माला, लाल रंग के फूल, चुनरी सहित अन्य सोलह श्रृंगार चढ़ा दें।
इसके साथ ही एक पान में एक सुपारी, 1 इलायची, 2 लौंग, 2 बताशा और एक सिक्का रखकर अर्पित कर दें।
अब भोग में मिठाई, हलवा, चना आदि खिला दें। इसके बाद जल दें।
अब घी का दीपक, धूप आदि जला लें और श्रद्धाभाव के साथ मां का स्मरण करते हुए दुर्गा चालीसा का पाठ कर लें।
अंत में माता रानी की आरती कर लें।