Solah Somvar Vrat : माता पार्वती ने की थी सोलह सोमवार के व्रत की शुरुआत, जानिए व्रत के लाभ
सोलह सोमवार का व्रत मुख्य रूप से किसी विशेष मनोकामना पूर्ति के लिए रखा जाता है।
सोलह सोमवार का व्रत मुख्य रूप से किसी विशेष मनोकामना पूर्ति के लिए रखा जाता है। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि सोलह सोमवार का व्रत रखने से पति को दीर्घायु की प्राप्ति होती है और आपकी संतान भी सुखी रहती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सोलह सोमवार के व्रत की शुरुआत खुद माता पार्वती ने की थी। एक बार जब उन्होंने इस धरती पर अवतार लिया था तो वह एक बार पुनः भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए उन्होंने 16 सोमवार व्रत रखकर कठिन तपस्या की थी। शास्त्रों में ऐसा बताया गया है कि सोलह सोमवार के व्रत की शुरुआत सावन मास से करना सबसे शुभ माना जाता है। आज हम आपको बताएंगे सोलह सोमवार के व्रत की विधि, उद्यापन विधि और व्रत कथा।
सोलह सोमवार व्रत पूजा सामग्री
शिव जी की मूर्ति, भांग, बेलपत्र, जल, धूप, दीप, गंगाजल, धतूरा, इत्र, सफेद चंदन, रोली, अष्टगंध, सफेद वस्त्र, नैवेद्य जिसे आधा सेर गेहूं के आटे को घी में भूनकर गुड़ मिलाकर बना लें।
व्रत का संकल्प
किसी भी पूजा या व्रत को आरंभ करने के लिए सर्वप्रथम संकल्प करना चाहिए। व्रत के पहले दिन संकल्प किया जाता है। उसके बाद आप नियमित पूजा और व्रत करें। सबसे पहले हाथ में जल, अक्षत, पान का पत्ता, सुपारी और कुछ सिक्के लेकर शिव मंत्र के साथ संकल्प करें।
ऊं शिवशंकरमीशानं द्वादशार्द्धं त्रिलोचनम्।
उमासहितं देवं शिवं आवाहयाम्यहम्॥
सोलह सोमवार व्रत की पूजाविधि
हाथ में लिये हुए फूल और अक्षत शिव भगवान को समर्पित करें।
सबसे पहले भगवान शिव पर जल समर्पित करें।
जल के बाद सफेद वस्त्र समर्पित करें।
सफेद चंदन से भगवान को तिलक लगायें एवं तिलक पर अक्षत लगायें।
सफेद पुष्प, धतुरा, बेल-पत्र, भांग एवं पुष्पमाला अर्पित करें।
अष्टगंध, धूप अर्पित कर, दीप दिखायें।
भगवान को भोग के रूप में ऋतु फल या बेल और नैवेद्य अर्पित करें।
इस तरह करें व्रत की कथा
इसके बाद सोमवार व्रत कथा को पढ़े अथवा सुनें। ध्यान रखें कम-से-कम एक व्यक्ति इस कथा को अवश्य सुनें। कथा सुनने वाला भी शुद्ध होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा स्थल के पास बैठें। तत्पश्चात शिव जी की आरती करें। दीप आरती के बाद कर्पूर जलाकर कर्पूरगौरं मंत्र से भी आरती करें। उपस्थित जनों को आरती दें और स्वयं भी आरती लें। इस दिन भगवान की महिमा का गुणगान सुनना और सुनाना अत्यंत लाभदायक है इसलिए सामर्थ्य अनुसार शिव चालीसा, शिवपुराण आदि का पाठ करें।
16 सोमवार व्रत उद्यापन विधि
उद्यापन 16 सोमवार व्रत की संख्या पूरी होने पर 17 वें सोमवार को किया जाता है। श्रावण मास के प्रथम या तृतीय सोमवार को करना सबसे अच्छा माना जाता है। वैसे कार्तिक, श्रावण, ज्येष्ठ, वैशाख या मार्गशीर्ष मास के किसी भी सोमवार को व्रत का उद्यापन कर सकते हैं। सोमवार व्रत के उद्यापन में उमा-महेश और चन्द्रदेव का संयुक्त रूप से पूजन और हवन किया जाता है।
इस व्रत के उद्यापन के लिए सुबह जल्दी उठ कर स्नान करें, और आराधना हेतु चार द्वारों का मंडप तैयार करें। वेदी बनाकर देवताओं का आह्वान करें और कलश की स्थापना करें। इसके बाद उसमें पानी से भरे हुए पात्र को रखें। पंचाक्षर मंत्र (ऊं नमः शिवाय) से भगवान् शिव जी को वहां स्थापित करें। गंध, पुष्प, धप, नैवेद्य, फल, दक्षिणा, ताम्बूल, फूल, दर्पण, आदि देवताओ को अर्पित करें। इसके बाद आप शिव जी को पंच तत्वों से स्नान कराएं और हवन आरंभ करें। हवन की समाप्ति पर दक्षिणा, और भूषण देकर आचार्य को गो का दान दें। पूजा का सभी सामान भी उन्हें दें और बाद में उन्हें अच्छे से भोजन कराकर भेजे और आप भी भोजन ग्रहण करें।