शिव कवच: ये चमत्कारी पाठ बड़ी से बड़ी विपत्ति से दिलाएंगा छुटकारा

हर कोई अपने जीवन में सुख शांति और समृद्धि चाहता हैं इसके लिए लोग दिनों रात प्रयास भी खूब करते हैं लेकिन फिर भी अगर जीवन में परेशानियां बनी हुई हैं और ये पीछा छोड़ने का नाम नहीं ले रही हैं तो ऐसे में आप हर सोमवार के दिन शिव कवच का पाठ जरूर करें माना जाता हैं कि इस चमत्कारी पाठ को करने से बड़ी से बड़ी विपत्तियों का नाश हो जाता हैं और जीवन में सुख शांति व आनंद बना रहता हैं।

Update: 2023-07-24 04:16 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हर कोई अपने जीवन में सुख शांति और समृद्धि चाहता हैं इसके लिए लोग दिनों रात प्रयास भी खूब करते हैं लेकिन फिर भी अगर जीवन में परेशानियां बनी हुई हैं और ये पीछा छोड़ने का नाम नहीं ले रही हैं तो ऐसे में आप हर सोमवार के दिन शिव कवच का पाठ जरूर करें माना जाता हैं कि इस चमत्कारी पाठ को करने से बड़ी से बड़ी विपत्तियों का नाश हो जाता हैं और जीवन में सुख शांति व आनंद बना रहता हैं। तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं शिव कवच का पाठ।

श्री शिव कवच—
वज्रदंष्ट्रं त्रिनयनं कालकण्ठमारिंदमम् । सहस्रकरमप्युग्रं वन्दे शम्भुमुमापतिम् ॥
ऋषभ उवाच
अथापरं सर्वपुराणगुह्यं निःशेषपापौघहरं पवित्रम् ।
जयप्रदं सर्वविपद्विमोचनं वक्ष्यामि शैवं कवचं हिताय ते ॥
नमस्कृत्य महादेवं विश्वव्यापिनमीश्वरम् ।
वक्ष्ये शिवमयं वर्म सर्वरक्षाकरं नृणाम् ॥
शुचौ देशे समासीनो यथावत्कल्पितासन: ।
जितेन्द्रियो जितप्राणश्चिंमतयेच्छिवमव्ययम् ॥
ह्रत्पुंडरीक तरसन्निविष्टं स्वतेजसा व्याप्तनभोवकाशम् ।
अतींद्रियं सूक्ष्ममनंतताद्यंध्यायेत्परानंदमयं महेशम् ॥
ध्यानावधूताखिलकर्मबन्धश्चयरं चितानन्दनिमग्नचेता: ।
षडक्षरन्याससमाहितात्मा शैवेन कुर्यात्कवचेन रक्षाम् ॥
मां पातु देवोऽखिलदेवत्मा संसारकूपे पतितं गंभीरे तन्नाम ।
दिव्यं वरमंत्रमूलं धुनोतु मे सर्वमघं ह्रदिस्थम् ॥
सर्वत्रमां रक्षतु विश्वामूर्तिर्ज्योतिर्मयानंदघनश्चियदात्मा ।
अणोरणीयानुरुशक्तिररेक: स ईश्व र: पातु भयादशेषात् ॥
यो भूस्वरूपेण बिर्भीत विश्वंो पायात्स भूमेर्गिरिशोऽष्टमूर्ति: ।
योऽपांस्वरूपेण नृणां करोति संजीवनं सोऽवतु मां जलेभ्य: ॥
कल्पावसाने भुवनानि दग्ध्वा सर्वाणि यो नृत्यति भूरिलील: ।
स कालरुद्रोऽवतु मां दवाग्नेर्वात्यादिभीतेरखिलाच्च तापात् ॥
प्रदीप्तविद्युत्कनकावभासो विद्यावराभीति कुठारपाणि: ।
चतुर्मुखस्तत्पुरुषस्त्रिनेत्र: प्राच्यां स्थितं रक्षतु मामजस्त्रम् ॥
कुठारवेदांकुशपाशशूलकपालढक्काक्षगुणान् दधान: ।
Recite shri shiv kavach path on Monday
चतुर्मुखोनीलरुचिस्त्रिनेत्र: पायादघोरो दिशि दक्षिणस्याम् ॥
कुंदेंदुशंखस्फटिकावभासो वेदाक्षमाला वरदाभयांक: ।
त्र्यक्षश्चितुर्वक्र उरुप्रभाव: सद्योधिजातोऽवस्तु मां प्रतीच्याम् ॥
वराक्षमालाभयटंकहस्त: सरोज किंजल्कसमानवर्ण: ।
त्रिलोचनश्चायरुचतुर्मुखो मां पायादुदीच्या दिशि वामदेव: ॥
वेदाभ्येष्टांकुशपाश टंककपालढक्काक्षकशूलपाणि: ।
सितद्युति: पंचमुखोऽवतान्मामीशान ऊर्ध्वं परमप्रकाश: ॥
मूर्धानमव्यान्मम चंद्रमौलिर्भालं ममाव्यादथ भालनेत्र: ।
नेत्रे ममा व्याद्भगनेत्रहारी नासां सदा रक्षतु विश्व नाथ: ॥
पायाच्छ्र ती मे श्रुतिगीतकीर्ति: कपोलमव्यात्सततं कपाली ।
वक्रं सदा रक्षतु पंचवक्रो जिह्वां सदा रक्षतु वेदजिह्व: ॥
कंठं गिरीशोऽवतु नीलकण्ठ: पाणि: द्वयं पातु: पिनाकपाणि: ।
दोर्मूलमव्यान्मम धर्मवाहुर्वक्ष:स्थलं दक्षमखातकोऽव्यात् ॥
मनोदरं पातु गिरींद्रधन्वा मध्यं ममाव्यान्मदनांतकारी ।
हेरंबतातो मम पातु नाभिं पायात्कटिं धूर्जटिरीश्व रो मे ॥
ऊरुद्वयं पातु कुबेरमित्रो जानुद्वयं मे जगदीश्वतरोऽव्यात् ।
जंघायुगंपुंगवकेतुख्यातपादौ ममाव्यत्सुरवंद्यपाद: ॥
महेश्वनर: पातु दिनादियामे मां मध्ययामेऽवतु वामदेव: ॥
त्रिलोचन: पातु तृतीययामे वृषध्वज: पातु दिनांत्ययामे ॥
पायान्निशादौ शशिशेखरो मां गंगाधरो रक्षतु मां निशीथे ।
गौरी पति: पातु निशावसाने मृत्युंजयो रक्षतु सर्वकालम् ॥
अन्त:स्थितं रक्षतु शंकरो मां स्थाणु: सदापातु बहि: स्थित माम् ।
तदंतरे पातु पति: पशूनां सदाशिवोरक्षतु मां समंतात् ॥
तिष्ठतमव्याद्भुुवनैकनाथ: पायाद्व्रेजंतं प्रथमाधिनाथ: ।
वेदांतवेद्योऽवतु मां निषण्णं मामव्यय: पातु शिव: शयानम् ॥
मार्गेषु मां रक्षतु नीलकंठ: शैलादिदुर्गेषु पुरत्रयारि: ।
अरण्यवासादिमहाप्रवासे पायान्मृगव्याध उदारशक्ति: ॥
कल्पांतकोटोपपटुप्रकोप-स्फुटाट्टहासोच्चलितांडकोश: ।
घोरारिसेनर्णवदुर्निवारमहाभयाद्रक्षतु वीरभद्र: ॥
पत्त्यश्वटमातंगघटावरूथसहस्रलक्षायुतकोटिभीषणम् ।
अक्षौहिणीनां शतमाततायिनां छिंद्यान्मृडोघोर कुठार धारया ॥
निहंतु दस्यून्प्रलयानलार्चिर्ज्वलत्रिशूलं त्रिपुरांतकस्य ।
शार्दूल सिंहर्क्षवृकादिहिंस्रान्संत्रासयत्वीशधनु: पिनाक: ॥
दु:स्वप्नदु:शकुनदुर्गतिदौर्मनस्यर्दुर्भिक्षदुर्व्यसनदु:सहदुर्यशांसि ।
उत्पाततापविषभीतिमसद्ग्रवहार्ति व्याधींश्च् नाशयतु मे जगतामधीश: ॥
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