Shani Pradosh Vrat: भाद्रपद मास का अंतिम प्रदोष व्रत 18 सितंबर को है, जानें पूजा का शुभ मुहूर्तऔर महत्व

प्रदोष काल में भगवान शिव की विधि पूर्वक उपासना की जाती है. परंतु जब भी यह प्रदोष व्रत अर्थात त्रयोदशी तिथि शनिवार को पड़ती है तो उसे शनि प्रदोष कहते हैं. शनि प्रदोष व्रत शिव उपासना के महत्व और अधिक बढ़ा देता है

Update: 2021-09-15 09:34 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Shani Pradosh Vrat: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत भगवान शिव की पूजा करने और उन्हें प्रसन्न करने के लिए उत्तम दिन होता है. मास के हर त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है और प्रदोष काल में भगवान शिव की विधि पूर्वक उपासना की जाती है. परंतु जब भी यह प्रदोष व्रत अर्थात त्रयोदशी तिथि शनिवार को पड़ती है तो उसे शनि प्रदोष कहते हैं. शनि प्रदोष व्रत शिव उपासना के महत्व और अधिक बढ़ा देता है.

पंचांग के अनुसार हर माह में दो प्रदोष व्रत होता है. संयोग से भाद्रपद मास का दोनों प्रदोष व्रत शनि प्रदोष है. भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत भी 4 सितंबर शनिवार को पड़ा था. तथा इसका दूसरा या अंतिम प्रदोष व्रत 18 सितंबर दिन शनिवार को पड़ेगा. इस प्रकार से भादो का महीना भगवान शिव उपासना के लिए और उन्हें प्रसन्न करने के लिए अति उत्तम रहा है.
शनि प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त
शनि शुक्ल प्रदोष व्रत- 18 सितंबर 2021 शनिवार को
त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ - 18 सितंबर 2021 को 06:54 एएम बजे
त्रयोदशी तिथि समाप्त - 19 सितंबर 2021 को 05:59 एएम बजे
प्रदोष पूजा मुहूर्त – 18 सितंबर को शाम 06:23 बजे से 08:44 बजे तक
अवधि - 02 घण्टे 21 मिनट
प्रदोष व्रत पूजा कब?
जिस दिन त्रयोदशी तिथि प्रदोष काल के समय व्याप्त होती है, उसी दिन प्रदोष का व्रत किया जाता है. प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में करना उत्तम होता है. प्रदोष काल सूर्यास्त से प्रारम्भ हो जाता है.
जब त्रयोदशी तिथि और प्रदोष साथ-साथ होते हैं (जिसे त्रयोदशी और प्रदोष का अधिव्यापन भी कहते हैं) वह समय शिव पूजा के लिये सर्वश्रेष्ठ होता है.
शनि प्रदोष व्रत का महत्व
धार्मिक मान्यता है कि शनि प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति पर भगवान शिव और शक्ति दोनों की कृपा प्राप्त होती है और संतान की प्राप्ति होती है. ज्योतिषाचार्य नि:संतान दंपत्तियों को शनि प्रदोष व्रत रखने की सलाह देते हैं


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