वैशाख अमावस्या पर पूजा के समय करें विष्णु चालीसा का पाठ, पितृ दोष से मिलेगी मुक्ति
नई दिल्ली : सनातन धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है। इस दिन पूजा, जप-तप, दान-पुण्य किया जाता है। गरुड़ पुराण में निहित है कि अमावस्या तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति को पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। अतः बड़ी संख्या में श्रद्धालु गंगा समेत पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान कर विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। ज्योतिषियों की मानें तो कुंडली में पितृ दोष लगने से जातक को अपने जीवन में ढ़ेर सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। अगर आप भी पितृ दोष से पीड़ित हैं, तो वैशाख अमावस्या पर स्नान-ध्यान के बाद विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय इस चालीसा का पाठ करें।
श्री विष्णु चालीसा
दोहा
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥
चौपाई
नमो विष्णु भगवान खरारी,
कष्ट नशावन अखिल बिहारी ।
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी,
त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥
सुन्दर रूप मनोहर सूरत,
सरल स्वभाव मोहनी मूरत ।
तन पर पीताम्बर अति सोहत,
बैजन्ती माला मन मोहत ॥
शंख चक्र कर गदा विराजे,
देखत दैत्य असुर दल भाजे ।
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे,
काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥
सन्तभक्त सज्जन मनरंजन,
दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ।
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन,
दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥
पाप काट भव सिन्धु उतारण,
कष्ट नाशकर भक्त उबारण ।
करत अनेक रूप प्रभु धारण,
केवल आप भक्ति के कारण ॥
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा,
तब तुम रूप राम का धारा ।
भार उतार असुर दल मारा,
रावण आदिक को संहारा ॥
आप वाराह रूप बनाया,
हिरण्याक्ष को मार गिराया ।
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया,
चौदह रतनन को निकलाया ॥
अमिलख असुरन द्वन्द मचाया,
रूप मोहनी आप दिखाया ।
देवन को अमृत पान कराया,
असुरन को छवि से बहलाया ॥
कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया,
मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ।
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया,
भस्मासुर को रूप दिखाया ॥
वेदन को जब असुर डुबाया,
कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया ।
मोहित बनकर खलहि नचाया,
उसही कर से भस्म कराया ॥
असुर जलन्धर अति बलदाई,
शंकर से उन कीन्ह लड़ाई ।
हार पार शिव सकल बनाई,
कीन सती से छल खल जाई ॥
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी,
बतलाई सब विपत कहानी ।
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी,
वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥
देखत तीन दनुज शैतानी,
वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ।
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी,
हना असुर उर शिव शैतानी ॥