शुक्र प्रदोष व्रत के दिन जरुर करें इस स्तोत्र का पाठ, कई समस्याओं से मिलेंगी राहत

Update: 2024-03-22 02:52 GMT
नई दिल्ली : हिंदू पंचांग के मुताबिक, हर महीने की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत किया जाता है। पुराणों में वर्णन मिलता है कि पूरे विधि-विधान से प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति को महादेव की कृपा प्राप्त हो सकती है, जिससे जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और सुख-समृद्धि बनी रहती है। ऐसे में आप प्रदोष व्रत की पूजा के दौरान शिव जी के लिंगाष्टकम स्तोत्र का पाठ करके जीवन में विशेष लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त (Pradosh Vrat Shubh muhurat)
इस बार फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी 22 मार्च को प्रातः 04 बजकर 44 मिनट पर शुरू हो रहा है। वहीं, त्रयोदशी तिथि 23 मार्च को सुबह 07 बजकर 17 मिनट पर समाप्त हो रही है। ऐसे में फाल्गुन माह का दूसरा प्रदोष व्रत 22 मार्च, शुक्रवार के दिन किया जाएगा। इस दौरान पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 06 बजकर 34 से 08 बजकर 55 मिनट तक रहने वाला है। इसे शुक्र प्रदोष व्रत भी कहा जाएगा, क्योंकि यह व्रत शुक्रवार के दिन पड़ रहा है।
प्रदोष व्रत पूजा विधि
शुक्र प्रदोष व्रत के दिन सुबह उठकर स्नान आदि से निवृत हो जाएं। इसके बाद शिव जी का ध्यान कर व्रत का संकल्प लें। पूजा स्थल पर भोलेनाथ और माता पार्वती की तस्वीर स्थापित करें और उन्हें तिलक लगाएं। फिर उन्हें फूल व फल और भोग आदि अर्पित करें। इसके बाद दिनभर फलाहार करें। प्रदोष काल में पुनः शिव जी की पूजा-अर्चना करें। आप शिव जी की कृपा प्राप्ति के लिए लिंगाष्टकम स्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं।
लिंगाष्टकम स्तोत्र (Shiv Lingastakam Stotra)
ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् ।
जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥१॥
देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम् ।
रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥२॥
सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम् ।
सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥३॥
कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम् ।
दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥४॥
कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम् ।
सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥५॥
देवगणार्चितसेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम् ।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥६॥
अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गं सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम् ।
अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥७॥
सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गं सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम् ।
परात्परं परमात्मकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥८॥
लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
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