Govardhan Puja ज्योतिष न्यूज़ : हिंदू धर्म में पांच दिन के दीपोत्सव का बेहद खास महत्व है. इस दीपोत्सव के दौरान गोवर्धन पूजा का बड़ा महत्व माना गया है. गोवर्धन पूजा का दूसरा नाम अन्नकूट पूजा भी है. इस दिन भगवान कृष्ण और गिरिराज पर्वत की पूजा की जाती है. पंचांग के अनुसार, यह पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर मनाया जाता है. इस बार गोवर्धन पूजा आज यानी 2 नवंबर 2024 को मनाई जा रही है. पांच दिवसीय दीपोत्सव पर्व का यह चौथा दिन होता है. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और गिरिराज पर्वत की गोबर से प्रतिमा बनाकर विधिपूर्वक पूजा की जाती है.गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन महाराज की प्रतिमा बनाकर उनकी परिक्रमा की जाती है. इस दिन पूजा के दौरान गोवर्धन कथा का पाठ करना बेहद जरूरी होता माना गया है. ऐसा माना जाता है कि इस कथा के पाठ से भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है. इस कथा का पाठ किए बिना गोवर्धन पूजा अधूरी मानी जाती है. ऐसे में चलिए पढ़ते हैं गोवर्धन पूजा की कथा.
गोवर्धन पूजा तिथि 2024
वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा 1 नवंबर की शाम 6:16 मिनट से शुरू हुई जो कि आज यानी 2 नवंबर को रात 8:21 मिनट पर समाप्त होगी. उदयातिथि के अनुसार, आज ही यानी 2 नवंबर को गोवर्धन पूजा की जाएगी.
इस मुहूर्त में करें गोवर्धन पूजा 2024
2 नवंबर की सुबह गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त 6:34 से लेकर सुबह 8:46 तक रहेगा. इसके अलावा, गोवर्धन पूजा का दूसरा शुभ मुहर्त 2 नवंबर की दोपहर 3:22 से लेकर शाम 5:34 तक रहेगा.
गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा
गोवर्धन पूजा का पर्व भगवान श्री कृष्ण की अद्भुत लीलाओं का स्मरण कराता है. इस पूजा में विशेष रूप से गोवर्धन पर्वत, गाय की कृपा के लिए हमारी कृतज्ञता को प्रकट किया जाता है. आइए पढ़ते हैं गोवर्धन की भागवत कथा…शास्त्रों में वर्णित गोवर्धन पूजा कथाओं के अनुसार, द्वापर युग की बात है एक बार देवराज इंद्र को अपनी पूजा आदि किए जाने का अहंकार हो गया. उस समय द्वापर युग में धरती पर लीला कर रहे भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव का अंहकार तोड़ने का सोचा.
श्रीकृष्ण ने यशोदा मय्या से किया सवाल
एक बार जब सभी बृजवासी अन्नकूट के लिए पकवान बना रहे थे और इंद्रदेव की पूजा की तैयारी कर रहे थे तो कान्हा ने यशोदा मां से पूछा, “मईया, ये आप लोग किसकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं? मां यशोदा ने कहा, लल्ला हम देवराज इंद्र की पूजा करने जा रहे हैं. वह वर्षा करते हैं जिससे हमारी फसलें उग पाती हैं. भगवान कृष्ण ने कहा, मईया हमें तो गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि हमारी गायें वहीं चरती हैं और इंद्र का दर्शन भी नहीं होता और वह तो पूजा न करने पर क्रोधित भी हो जाते हैं.भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज के वासियों से इंद्रदेव की पूजा करने के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए कहा. श्रीकृष्ण की इस सलाह पर सभी बृजवासी इंद्र की पूजा के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे. जब इंद्रदेव को इस बात का पता चला तो उन्होंने इसे अपना अपमान समझा और क्रोधित होकर मूसलधार बारिश शुरू कर दी. इस बारिश ने सभी बृजवासी भयभीत हो गए और उन्होंने भगवान कृष्ण को दोषी ठहराना शुरू कर दिया और बचाने के लिए उन्हें ही कुछ उपाय बताने के लिए कहने लगे.
श्रीकृष्ण ने उठाया गोवर्धन पर्वत
इसपर भगवान कृष्ण ने सभी ब्रजवासियों से गोवर्धन पर्वत के पास इकट्ठा होने के लिए कहा. जब सब ब्रजवासी गोवर्थन पर्वत के पास इकट्ठा हो गए तो श्रीकृष्ण ने अपनी मुरली को कमर में बांधकर अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और सभी ब्रजवासियों को अपने गाय और बछड़ों के साथ गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण दी. इस पर इंद्र का क्रोध और बढ़ गया और उन्होंने बारिश और तेज कर दी. इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए, भगवान कृष्ण ने सुदर्शन चक्र को आदेश दिया कि वह पर्वत के ऊपर रहकर बारिश की गति को नियंत्रित करें. इस प्रकार भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों की रक्षा की.इंद्रदेव को यह सब देखकर महसूस हुआ कि कृष्ण कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं. फिर इंद्रदेव ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और अपनी समस्या बताई. तब ब्रह्मा जी ने इंद्र को समझाया कि भगवान कृष्ण स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं. इसपर इंद्रदेव का घमंड टूट गया और उन्होंने भगवान कृष्ण से क्षमा मांगकर उनकी पूजा करने का निर्णय लिया. इसके बाद से ब्रज समस्त संसार में इस दिन गोवर्धन पूजा होने लगी और कान्हा को अन्नकूट भोग लगाया जाने लगा.